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अध्याय 6 ,श्लोक 27



श्लोक

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् । उपैति शांतरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥27॥

प्रशान्त मनसम् हि एनम् योगिनम् सुखम्
उत्तमम् । उपैति शान्त रजसम् ब्रह्म-भूतम् अकल्मषम ।।२७।।

शब्दार्थ

(हि) नि:स्संदेह (एनम्) उस (योगिनम्) ईश्वर की प्रार्थना करने वाले भक्त को ( प्रशान्त मनसम्) मन की शान्ति (सुखम् उत्तमम्) और बहुत अधिक सुख प्राप्त होगा। (ब्रह्म-भूतम् ) ईश्वर की भक्ति में लगे मनुष्य के (शान्त-रजसम्) रजो गुण (और तमो गुण) भी शान्त (कम) होंगे। (अकल्मषम्) और पापों से मुक्ति भी पा लेगा।

अनुवाद

नि:स्संदेह उस ईश्वर की प्रार्थना करने वाले भक्त को मन की शान्ति और बहुत अधिक सुख प्राप्त होगा। ईश्वर की भक्ति में लगे मनुष्य के रजो गुण (और तमो गुण) भी शान्त (कम) होंगे, और पापों से मुक्ति भी पा लेगा।