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अध्याय 6 ,श्लोक 28



श्लोक

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः । सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥28॥

युज्जन् एवम् सदा आत्मानम् योगी विगत कल्मषः । सुखेन ब्रह्म-सस्पर्शम् अत्यन्तम् सुखम् अश्नुते ।।२८।।

शब्दार्थ

(योगी) ईश्वर की प्रार्थना करने वाला ( एवम् ) इस तरह जब (आत्मानम्) अपने आप को (सदा ) सदैव (युञ्जन) एक ईश्वर की प्रार्थना में लगाता है, तो (विगत कल्मषः) पापों से मुक्त हो जाता है। और (ब्रह्म संस्पर्शम्) वह ईश्वर के अस्तित्व का अनुभव करके (सुखेन) (इस जीवन में) शान्ति पाता है (अत्यन्तम् सुखम् अश्नुते ) (और इस जीवन के बाद) अत्यंत सुख शान्ति वाले स्थान (स्वर्ग) को भी प्राप्त कर लेता है।

अनुवाद

ईश्वर की प्रार्थना करने वाला इस तरह जब अपने आपको सदैव एक ईश्वर की प्रार्थना में लगाता है तो वह ईश्वर के अस्तित्व का अनुभव करके (इस जीवन में) शान्ति पाता है। (और इस जीवन के बाद) अत्यंत सुख-शान्ति वाले स्थान (स्वर्ग) को भी प्राप्त कर लेता है।

नोट

ईश्वर नि:संदेह (ईश्वर से) ड़र रखने वाले निश्चिन्तता की जगह (स्वर्ग) में होंगे। बाग़ों और स्त्रोतों में। बारीक और गाढ़े रेशम के वस्त्र पहने हुए, एक-दूसरे के आमने-सामने उपस्थित (बैठे) होंगे। ऐसा ही उनके साथ मामला होगा। और हम साफ गोरी, बड़ी आंखों वाली स्त्रियों से उनका विवाह कर देंगे। वे वहाँ निश्चिन्तता के साथ हर प्रकार के स्वादिष्ट फल इच्छानुसार मँगवाते होंगे। वहाँ (स्वर्ग में) वे मृत्यु का मज़ा कभी न चखेंगे। बस पहली मृत्यु जो हुई, सो हुई और उसने ( ईश्वर ने उन्हें भड़कती हुई आग की यातना से बचा लिया।” (सूरे अल दुखखान (४४) आयत (५१-५६))