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अध्याय 6 ,श्लोक 30



श्लोक

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति । तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥30॥

यः माम् पश्यति सर्वत्र सर्वम् च मयि पश्यति । तस्य अहम् न प्रणश्यामि सः च मे न
प्रणश्यति ।।३०।।

शब्दार्थ

(यः) वह व्यक्ति (माम् ) मुझे (ही) (पश्यति) देखता है (सर्वत्र) सभी ओर (सर्वम्) (जो) सभी ओर (मयि) (सभी चीज़ को) मेरी (पश्यति ) ( रचना के रुप में) देखता है। (तस्य) (इस दृष्टिकोण के बाद) वह (अहम् ) मुझसे ( प्रणश्यामि ) दूर (न) नहीं (च) और (न) न (मे) मैं (सः) उससे (प्रणश्यति) दूर हूँ।

अनुवाद

वह व्यक्ति मुझे (ही) देखता है सभी ओर, (जो) सभी ओर (सभी चीज़ को) मेरी (रचना के रुप में) देखता है। (इस दृष्टिकोण के बाद) वह मुझसे दूर नहीं और न मैं उससे दूर हूँ।