Home Chapters About



अध्याय 6 ,श्लोक 34



श्लोक

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् । तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥34॥

चज्वलम् हि मनः कृष्ण प्रमाथि बल-वत् दृढम् । तस्य अहम् निग्रहम् मन्ये वायोः इव सु-दुष्करम् ।।३४।।

शब्दार्थ

(कृष्ण) हे कृष्ण! (हि) नि:संदेह (मनः) मन (चञ्चलम्) चंचल है (प्रमाथि) उत्तेजित है (बलवत्) बलवान है (और) (दृढम्) ज़िद्दी है है (तस्य ) उसको ( निग्रहम् ) वश में करना (अहम्) मैं (वायोः) वायु ( को वश में करने ) (इवं) जैसा ही (सु-दुष्करम् ) बहुत कठिन (मन्ये) मानता हूँ।

अनुवाद

हे कृष्ण!, नि:संदेह, मन चंचल, उत्तेजित, बलवान, ज़िद्दी (है)। इसको वश में करना मैं वायु (हवा) (को वश में करने ) जैसा बहुत कठिन मानता हूँ।