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अध्याय 6 ,श्लोक 36



श्लोक

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः । वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ||36||

असंयत आत्मना योगः दुष्प्रापः इति मे मतिः । वश्य आत्मना तु यत्त शक्यः अवाप्तुम् उपायतः ।।३६।।

शब्दार्थ

(असंयत) बेकाबू (अनियंत्रित) (आत्मना) मन (के कारण) (योगः) ईश्वर में ध्यान लगाना (दुष्प्राप) कठिन है (उपायतः) अपनी क्षमता के अनुसार (वश्य आत्मना ) मन को वश में करने का (यतता) प्रयास (करने से) (अवाप्तुम् ) ( ईश्वर में ध्यान लगा) पाना (शक्यः) सम्भव है। (इति) यह (मे) मेरा (मतिः) मत है।

अनुवाद

बेकाबू (अनियंत्रित) मन (के कारण) ईश्वर में ध्यान लगाना कठिन है। अपनी क्षमता के अनुसार मन को वश में करने का प्रयास करने से) (ईश्वर में ध्यान लगा ) पाना सम्भव है। यह मेरा मत है।