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अध्याय 6 ,श्लोक 39



श्लोक

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः । त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥39॥

एतत् मे संशयम् कृष्ण छेत्तुम् अर्हसि अशेषतः । त्वत् अन्यः संशयस्य छेत्ता न हि उपपद्यते ।।३९।।

शब्दार्थ

(कृष्ण) हे कृष्ण (एतत्) यह (मे) मेरी (संशयम्) शंका है (अशेषतः) जिसे पूरी तरह (छेत्तुम् ) दूर करने के लिए (अर्हसि ) आपसे विनंती करता हूँ (हि) नि:संदेह (त्वत्) आपके (सिवा ) (अस्य ) इस (संशयस्य) शंका को (छेत्ता) दूर करने वाला (अन्यः) दूसरा ( न उपपद्यते) कोई हो नहीं सकता।

अनुवाद

हे कृष्ण! यह मेरी शंका है, जिसे पूरी तरह दूर करने के लिए आपसे विनंती करता हूँ। नि:संदेह आपके (सिवा) इस शंका को दूर करने वाला दूसरा कोई हो नहीं सकता।