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अध्याय 6 ,श्लोक 41



श्लोक

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥41॥

प्राप्य पुण्य कृताम् लोकान् उषित्वा शाश्वतीः
समाः ।
शुचीनाम् श्री मताम् गेहे योग-भ्रष्टः अभिजायते ।।४१।।

शब्दार्थ

(योग-भ्रष्ट) ईश्वर की कम प्रार्थना वाला व्यक्ति ( पुण्य कृताम) उसने जो कुछ भी पुण्य ( लोकान) इस संसार में किए ( उनके कारण) (उषित्वा शाश्वती) स्थायी स्वर्ग का (समा) वही (स्थान) (प्राप्य) पाता है (जो स्थान पवित्र व्यक्तियों को मिलता है) (अभिजायते) (वह स्वर्ग में) नया जीवन (शुचीनाम श्री-मताम् ) पवित्र और महान पद वाले लोगों के (गेहे) घर में या समूह में पाता है।

अनुवाद

ईश्वर की कम प्रार्थना वाला व्यक्ति, उसने जो कुछ भी पुण्य इस संसार में किए ( उनके कारण) स्थायी स्वर्ग का वही (स्थान) पाता है (जो स्थान व्यक्तियों को मिलता है)। (वह स्वर्ग में) नया जीवन पवित्र और महान पद वाले लोगों के घर में या समूह में पता में

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है, “और वे लोग जो इमान ले आए और उनकी संतान भी ईमान लाकर उनके सत्य मार्ग पर चली तो हम उनकी संतान को भी उनके पद तक पहुचा देंगे (स्वर्ग में उनके साथ कर देंगे) और उनके पुण्य में कुछ कम न करेंगे। हर व्यक्ति जो कर्म उसने किए उससे बंधा हुआ है।” (सुरे अत तूर ५२, आयत २१)