Home Chapters About



अध्याय 6 ,श्लोक 42



श्लोक

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् ।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ।।42।।

अथवा योगिनाम् एव कुले भवति धी-मताम् ।
एतत् हि दुर्लभ-तरम् लोके जन्म यत् ईदृशम् ।।४२।।

शब्दार्थ

(अथवा) या (वह कम प्रार्थना वाला व्यक्ति) (योगिनाम्) तपस्वी ( एवं) और (धी मताम्) बुद्धिजीवियों के (कुले) समूह में (भवति) स्थान पाता है (एतत् हि) किन्तु ऐसा (दुर्लभ तरम् ) बहुत कम होता है (यत् ईदृशम्) अर्थात इस तरह का (लोके) परलोक में (जन्म) स्वर्ग में पवित्र लोगों में नया जीवन पाना।

अनुवाद

या (वह कम प्रार्थना वाला व्यक्ति) तपस्वी और बुद्धिजीवियों के समूह में स्थान पाता है किन्तु ऐसा बहुत कम होता है। अर्थात इस तरह का परलोक में स्वर्ग में पवित्र लोगों में नया जीवन पाना।