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अध्याय 6 ,श्लोक 43



श्लोक

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥43॥

तत्र तम् बुद्धि-संयोगम् लभते पौर्व-देहिकम् । यतते च ततः भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन || ४३ ।।

शब्दार्थ

(कुरुनन्दन) हे अर्जुन (कम प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को भी स्वर्ग में स्थान इस कारण मिलता है कि) (तत्र) वह (तम्) उस (पौर्व देहिकम्) पहले के सांसारिक जीवन में (बुद्धि संयोगम् ) मन से ईश्वर में श्रद्धा (लभते) रखता था (च) और (ततः) वह (भूयः) बार बार (संसिद्धौ ) परिपूर्ण या हर तरह से सही होने का ( यतते) प्रयास करता था।

अनुवाद

हे अर्जुन! (कम प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को भी स्वर्ग में स्थान इस कारण मिलता है कि) वह उस पहले के सांसारिक जीवन में मन से ईश्वर में श्रद्धा रखता था और वह बार-बार परिपूर्ण या हर तरह से सही होने का प्रयास करता था।