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अध्याय 6 ,श्लोक 44



श्लोक

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः । जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥44॥

पूर्व अभ्यासेन तेन एव ह्यियते हि अवशः अपि सः । जिज्ञासुः अपि योगस्य शब्द बहा अतिवर्तते ।।४४।।

शब्दार्थ

(कम प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को भी स्वर्ग में स्थान इस कारण मिलता है क्योंकि) (पूर्व) पहले के (सांसारिक जीवन में) (अवशः) स्वयम् (तेन) वह (अभ्यासेन) वेदों के अभ्यास (पढ़ने) की ओर (हियते) आकर्षित था (अपि सः) और वह (जिज्ञासुः) प्रयास करता था (योगस्य) ईश्वर की प्रार्थना की। (अपि) और (उसने) (शब्द ब्रह्म) ईश्वर के नाम के जाप करने में भी (अतिवर्तते) प्रगति की थी।

अनुवाद

(कम प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को भी स्वर्ग में स्थान इस कारण मिलता है क्योंकि) पहले के (सांसारिक जीवन में ) स्वयम् वह वेदों के अभ्यास (पढ़ने) की ओर आकर्षित था, और वह प्रयास करता था ईश्वर के प्रार्थना की। और (उसने) ईश्वर के नाम के जाप करने में भी प्रगति की थी।