Home Chapters About



अध्याय 6 ,श्लोक 45



श्लोक

प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः । अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो यात परां गतिम् ॥45॥

प्रयत्नात् यतमानः तु योगी संशुद्ध किल्विषः । अनेक जन्म संसिद्धः ततः याति पराम् गतिम् ।।४५।।

शब्दार्थ

( तु) किन्तु ( इस प्रकार का स्वर्ग मिलना कम होता है। जो साधारण तौर से होता है वह यह है की) (योगी) ईश्वर की कम प्रार्थना करने वाला भक्त जो (यतमानः) कड़ी मेहनत के साथ (प्रयत्नात्) (ईश्वर की प्रार्थना का) प्रयत्न करता था (अनेक जन्म) नरक में कई बार (दंड के कारण) मृत्यु पाकर नया जीवन पाने के बाद (किल्बिषः) सभी पापों से (संसिद्धः) पूरी तरह (सशुद्ध) मुक्त हो जाता है। (ततः) (उसके बाद) ( परम् गतिम्) जीवन का सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य (गतिम्) प्राप्त करता है।

अनुवाद

किन्तु (इस प्रकार का स्वर्ग मिलना कम होता है। जो साधारण तौर से होता है वह यह है कि) ईश्वर की कम प्रार्थना करने वाला भक्त जो कड़ी मेहनत के साथ (ईश्वर की प्रार्थना का) प्रयत्न करता था, नरक में कई बार (दंड के कारण) मृत्यु पाकर नया जीवन पाने के बाद सभी पापों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। उसके बाद) जीवन का सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य (स्वर्ग) प्राप्त करता है।