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अध्याय 6 ,श्लोक 7



श्लोक

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः । शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥7॥

जित-आत्मनः प्रशान्तस्य परम आत्मा समाहितः।
शीत उष्ण सुख दुःखेषु तथा मान अपमानयोः ।।७।।

शब्दार्थ

(जित आत्मा) वह जो आत्मा को जीत लेता है। ( प्रशान्तस्य ) वह शान्ति से रहता है (और) (शीत) सर्दी (दरिद्रता) (उष्ण) गर्मी (समृद्धि) (सुख) सुख (दुखेषु) दुःख (तथा ) इसी प्रकार (मान) मान (अपजानयो) अपमान ( में भी) ( सम्मोहित ) दृढ़ता से (परम-आत्मा) ईश्वर की प्रार्थना में लगा रहता है।

अनुवाद

वह जो आत्मा को जीत लेता है। वह शान्ति से रहता है। (और) सर्दी (दरिद्रता), गर्मी (समृद्धि), सुख-दुःख, इसी प्रकार मान अपमान (में भी) दृढ़ता से ईश्वर की प्रार्थना में लगा रहता है।