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अध्याय 7 ,श्लोक 1



श्लोक

श्रीभगवानुवाच
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्र मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥1॥

श्री भगवान उवाच,
मयि आसक्त मनाः पार्थ योगम् युज्जन् मत आश्रयः । असंशयम् समग्रम् माम् यथा ज्ञास्यसि तत् शृणु ॥१॥

शब्दार्थ

( श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा (पार्थ) हे अर्जुन! (मयि) मुझमें (मनाः) अपने मन को (आसक्त) लगाते हुए (मत-आश्रयः) मेरी शरण लेते हुए। (योगम् युज्जन्) अनुसूचित समय पर मेरी प्रार्थना करो। (असंशयम्) बिना किसी संदेह के (समग्रम्) पूरी तरह से (यथा) जैसे (माम्) मुझे (ज्ञास्यसि) जान सकते हो वह (शृणु) सुनो।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, हे अर्जुन! मुझमें अपने मन को लगाते हुए मेरी शरण लेते हुए अनुसूचित समय पर मेरी प्रार्थना करो। बिना किसी संदेह के पूरी तरह से जैसे मुझे जान सकते हो वह सुनो।