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अध्याय 7 ,श्लोक 11



श्लोक

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् ।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥11॥

बलम् बल-वताम् च अहम् काम राग विवर्जितम् धर्माविरुद्धः भूतेषु कामः अस्मि भरत ऋषभ ।।११।।

शब्दार्थ

(भारत ऋषभ) हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन ( बलवताम् ) बलवानों में (विवर्जितम्) काम और क्रोध से रहित (बलम्) शक्ति (अहम्) मैं हूँ (च) और (भूतेषु) प्राणियों में (कामः) आनंद का अनुभव करने की ऐसी इच्छा (अस्मि) हूँ (धर्माविरुद्धः) जो धर्म विरोधी नहीं।

अनुवाद

हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! बलवानों में काम और क्रोध से रहित शक्ति मैं हँ और प्राणियों में आनंद का अनुभव करने की ऐसी इच्छा हूँ जो धर्म विरोधी नहीं।