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अध्याय 7 ,श्लोक 4



श्लोक

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥4॥

भूमिः आपः अनलः वायुः खम् मनः बुद्धिः एव च। अहंकारः इति इयम् मे भिन्ना प्रकृतिः अष्टधा ।।४।।

शब्दार्थ

(भूमिः) पृथ्वी (मिट्टी) (आपः) जल (अनलः) अग्नि (वायुः) वायु (खम्) आकाश (इति) इसी प्रकार (मनः) मन (बुद्धिः) बुद्धि (च एवं) और निःसंदेह (अहंकारः) अहंकार (इति इयम्) यह (इस संसार में) (मे) मेरी (अष्टधा) आठ प्रकार की ( भिन्ना) अलग-अलग ( प्रकृतिः) सृष्टि की रचना करने के पदार्थ हैं।

अनुवाद

पृथ्वी (मिट्टी), जल, अग्नि, वायु, आकाश । इसी प्रकार मन, बुद्धि और नि:संदेह अहंकार । यह (इस संसार में) मेरी आठ प्रकार की अलग अलग सृष्टि की रचना करने के पदार्थ हैं।