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अध्याय 8 ,श्लोक 11



श्लोक

यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो
वीतरागाः ।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥11॥

यत् अक्षरम् वेद-विदः वदन्ति विशन्ति यत् यतयः वीत- रागाः । यत् इच्छन्तः ब्रह्मचर्यम् चरन्ति तत् ते पदम् सडग्रहेण प्रवक्ष्ये ।।११।।

शब्दार्थ

(यत्) (वह स्वर्ग) जिसमें (विशन्ति ) प्रवेश करने के लिए (वेद-विदः) वेदों के विद्वान (अक्षरम्) अविनाशी ईश्वर के ( वदन्ति ) (नाम का) जाप करते हैं। (यतयः) बड़े मुनि (वीत रागाः) क्रोध को छोड़ देते हैं (और) (ब्रह्मचर्य चरन्ति) ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन बिताते हैं। (तत्) उस (पदम) स्थान (स्वर्ग के बारे में) (सङग्रहेण) संक्षिप्त में (प्रवक्ष्ये) कहूँगा।

अनुवाद

(वह स्वर्ग) जिसमें प्रवेश करने के लिए वेदों के विद्वान अविनाशी ईश्वर के (नाम का) जाप करते हैं। बड़े मुनि क्रोध को छोड़ देते हैं (और) ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन बिताते हैं। उस स्थान (स्वर्ग के बारे में ) संक्षिप्त में कहूँगा।