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अध्याय 8 ,श्लोक 12



श्लोक

सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।
मूर्त्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् ||12||

सर्व-द्वाराणि संयम्य मनः हृदि निरुध्य च । मूर्ध्नि आधाय आत्मनः प्राणम् आस्थितः योग धरणाम् ।।१२।।

शब्दार्थ

(सर्व-द्वाराणि) शरीर के सब द्वारो पर ( अंगो पर) (संयम्य) नियंत्रण रखो (मनः) इच्छाओं को (हृदि ) हृदय में (निरुध्य) सीमित (कैद ) रखो (च) और (योग-धारणाम् ) ईश्वर से जोड़ने वाली प्रार्थना को (आस्थितः) स्थापित करो (कायम करो) (आत्मन) मन को (मुर्ध्नि आधाय) (दो भौऔं के मध्य में ) मस्तक में स्थापित करके (प्राणम्) ईश्वर में ध्यान लगाओ।

अनुवाद

(ईश्वर के स्वर्ग को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कर्म आवश्यक है) शरीर के सब द्वारो पर (अंगो पर) नियंत्रण रखो। इच्छाओं को हृदय में सीमित (कैद) रखो, और ईश्वर से जोड़ने वाली प्रार्थना को स्थापित करो (कायम करो)। मन को (दो भौऔं Eyebrow के मध्य में) मस्तक में स्थापित करके ईश्वर में ध्यान लगाओ।