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अध्याय 8 ,श्लोक 13



श्लोक

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥13॥

ॐ इति एक अक्षरम् ब्रह्म व्याहरन् माम् अनुस्मरन् । यः प्रयाति त्यजन् देहम् सः याति परमाम् गतिम् ।।१३।।

शब्दार्थ

(इति) इस प्रकार (यः) जो (मुनि) (देह) शरीर को ( प्रयाति त्यजन) त्यागते समय (मृत्यु के समय) (मम्) मुझ (ईश्वर को) (अनुस्मरन्) याद करता है (व्यावहरन्) (और) कहता है (ॐ) ॐ (अक्षरम्) अविनाशी (ब्रह्म) ईश्वर (एक) एक है (सः) वह (मुनि) (याति) प्राप्त करता है (परमाम् ) सबसे महान (गतिम) जीवन का लक्ष्य (अर्थात स्वर्ग)।

अनुवाद

इस प्रकार जो (मुनि) शरीर को त्यागते समय (मृत्यु के समय) मुझ (ईश्वर को) याद करता है। (और) कहता है ॐ, अविनाशी ईश्वर एक है। वह (मुनि) प्राप्त करता है, सबसे महान जीवन का लक्ष्य (अर्थात स्वर्ग)। (श्लोक नं. १७.२३ में है कि ॐ तत सत यह तीन ईश्वर के नाम है।)

नोट

1.पैगंबर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा मरते समय जिस व्यक्ति के अन्तिम शब्द होगे “ईश्वर एक है। उसके अतिरिक्त दुसरा कोई प्रार्थना योग्य नही" तो उसका स्वर्ग में जाना निश्चित है। अरबी में यह शब्द इस प्रकार कहे जाते हैं "ला इलाहा इल-लल् लाह" (हदीस अहमद- २१५२९ अबु दाउद ३११६) इस का अर्थ इस प्रकार है। ला= नही है इलाहा= प्रार्थना के योग्य (कोई) इल =अतिरिक्त (अन्य ) (शेष भाग अगले पेज़ पर है।) 2. लल-लाह = नही (सिवाय एक) ईश्वर के नही है प्रार्थना के योग्य (कोई) ईश्वर के सिवाय । नोट: पूरा कलमा इस तरह है “ला इलाहा इल लल लाह, मुहम्मादूर रसूल अल्लाह” इसके आधे भाग का ऊपर वर्णन है। “ॐ एक अक्षरम ब्रह्मा" का अर्थ इस प्रकार है। ● ॐ ईश्वर (के नाम से आरम्भ करता हूँ) (श्लोक १७:२३ के अनुसार ॐ ईश्वर का नाम है।) एक= एक है अक्षरम= अविनाशी ब्रह्मा = ईश्वर ॐ, ईश्वर एक और अविनाशी है। (अक्षरम् शब्द यह श्लोक नं. ८.११, ११.१८, ११.३७, १२.१, १२.३, १२.४, में आया है और कुल मिलाकर इसका अर्थ है ईश्वर के अतिरिक्त प्रार्थना के योग्य कोई नहीं।)