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अध्याय 8 ,श्लोक 14



श्लोक

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः । तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ॥14॥

अनन्य-चेताः सततम् यः माम् स्मरति नित्यशः । तस्य अहम् सु-लभः पार्थ नित्य युक्तस्य योगिनः ।।१४।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (यः) जो मुनि (अनन्य चेताः) किसी अन्य (देवता) के बारे में सोचे बिना (नित्यशः) नियमित तौर पर (सततम्) सदैव (माम् स्मरति) मेरे स्मरण ( में व्यस्त रहता है) (तस्य) उसके लिए (अहम) मुझे (सु-लभ ) पाना सरल है (योगिनः) (यह वह) भक्त (है जो सदैव मेरी प्रार्थना में) (युक्तस्य) व्यस्त रहता है।

अनुवाद

हे पार्थ! जो मुनि किसी अन्य (देवता) के बारे में सोचे बिना नियमित तौर पर सदैव मेरे स्मरण ( में व्यस्त रहता है)। उसके लिए मुझे पाना सरल है। (यह वह) भक्त ( है जो सदैव मेरी प्रार्थना में) व्यस्त रहता है।