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अध्याय 8 ,श्लोक 15



श्लोक

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नु महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥15॥

माम् उपेत्य पुनः जन्म दुःख आलयम् अशाश्रवतम् न आप्नुवन्ति महा-आत्मानः संसिद्धिम् परमाम् गताः ।। १५ ।।

शब्दार्थ

(माम्) (इस तरह) मुझे (उपत्ये) प्राप्त करके (महा-आत्मानः) मुनि (पवित्र व्यक्ति) (अशाश्वतम्) स्थायी (दुःख ) कष्ट से भरी (आलयम्) (नर्क) के स्थान में ( पुनः) बार-बार (जन्म) नया जीवन (न) नहीं पाता है. (संसिद्धिम्) (बल्कि) पुर्णत: मेरी प्रार्थना में लगकर (परमाम्) (स्वर्ग को जो) सबसे श्रेष्ठ (गताः) लक्ष्य है (आप्नुवन्ति ) प्राप्त करता है ।

अनुवाद

(इस तरह) मुझे प्राप्त करके पवित्र व्यक्ति स्थायी कष्ट से भरी नर्क के स्थान में बार-बार नया जीवन नहीं पाता है। (बल्कि) पुर्णत: मेरी प्रार्थना में लगकर (स्वर्ग को जो) सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य है उसे प्राप्त करता है।