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अध्याय 8 ,श्लोक 2



श्लोक

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥2॥

अधियज्ञः कथम् कः अत्र देहे अस्मिन् मुधुसूदन । प्रयाण-काले च कथम् ज्ञेयः असि नियत आत्मभिः ॥२॥

शब्दार्थ

( अधियज्ञः ) वह ईश्वर जिसके लिए सारी प्रार्थनाएं की जाती हैं। (कथम्) (उसे मैं) कैसे (जानू) (मधुसुदन) हे कृष्ण (अत्र) यहाँ (अस्मिन) इस (देहे) शरीर में (कः) कौन है (च) और (प्रयाण-काले) मृत्यु के समय (नियत-आत्मभिः) मन को वश में करके (कथम्) कैसे (उस ईश्वर को) (ज्ञेय) जाना (असि) (जा सकता) है।

अनुवाद

वह ईश्वर जिसके लिए सारी प्रार्थनाएं की जाती हैं (उसे मैं) कैसे (जानू)? हे कृष्ण यहाँ इस शरीर में कौन है ? और मृत्यु के समय मन को वश में करके कैसे (उस ईश्वर को) जाना (जा सकता) है? (या स्मरण किया जा सकता है।)