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अध्याय 8 ,श्लोक 21



श्लोक

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् ।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥21॥

अव्यक्तः अक्षरः इति उक्तः तम् आहुः परमाम् गतिम । यम् प्राप्य न निवर्तन्ते तत् धाम परमम मम ।।२१।।

शब्दार्थ

(तम्) इस (अन्य लोक) को ईश्वर (अव्यक्तः) न दिखाई देने वाली (अक्षर) और अविनाशी (उक्तः) कह रहा है (इति) इसी तरह (ईश्वर) (परमाम् ) इसे सबसे श्रेष्ठ (गतिम) लक्ष्य, स्थान (आहु) भी कह रहा है (यम्) जिसे (प्राप्य) प्राप्त कर लेने के बाद (निवर्तन्ते) (मनुष्य संसार में) दोबारा (न) नहीं आते (तत्) (ईश्वर यह भी कह रहा है कि) वह (अन्य लोक का) (परमम्) सबसे श्रेष्ठ धाम ही (मम्) मेरे (धाम) रहने का स्थान है।

अनुवाद

इस (अन्य लोक) को ईश्वर न दिखाई देने वाली और अविनाशी कह रहा है। इसी तरह (ईश्वर) इसे सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य, स्थान भी कह रहा है। जिसे प्राप्त कर लेने के बाद (मनुष्य संसार में ) दोबारा नहीं आते। (ईश्वर यह भी कह रहा है कि) वह (अन्य लोक का) सबसे श्रेष्ठ धाम ही मेरे रहने का स्थान है।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, “हर एक जीव को मौत का मज़ा चखना है।” फिर तुम्हें हमारी ओर पलट कर आना होगा। जो लोग ईमान लाए और अनुकूल कर्म किए, उन्हें हम स्वर्ग के भवनों में बसायेंगे जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ वह सदैव रहेंगे। क्या ही अच्छा बदला है, सत्कर्म करने वालों के लिए। (सूरह अल अनकबूत- २९, आयत ५७-५८)