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अध्याय 8 ,श्लोक 25



श्लोक

धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्। तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥25॥

धूमः रात्रिः तथा कृष्णः पण मासाः दक्षिण
अयणम् ।
तत्र चान्द्र-मसम् ज्योतिः योगी प्राप्य निवर्ततेः ।।२५।।

शब्दार्थ

(निवर्ततेः) नर्क ( प्राप्य ) प्राप्त करने वाले (योगी) भक्त (कृष्णः) अंधेरे मार्ग के द्वारा (नरक) जाएंगे (षण) वहाँ (ऐसा लगेगा जैसे) छह (मासाः) महीने (दक्षिण) सूर्य दक्षिण में (अयणम्) चला गया है। (रात्रि) (जिसके कारण) अंधेरी रात है। (धूमः) धुआँ है (तथा) और (चान्द) चंद्र के (मसम्) महीनों की (ज्योति) धुंधली रौशनी है।

अनुवाद

नर्क प्राप्त करने वाले भक्त अंधेरे मार्ग के द्वारा (नरक) जाएंगे। वहाँ (ऐसा लगेगा जैसे) छह महीने सूर्य दक्षिण में चला गया है। (जिसके कारण) अंधेरी रात है। धुआँ है और चंद्र के महीनों की धुंधली रौशनी है।