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अध्याय 8 ,श्लोक 28



श्लोक

वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।
अत्येत तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥28॥

वेदेषु यज्ञेषु तपः सु च एव दानेषु यत् पुण्य -फलम् प्रदिष्टम् ।
अत्येति तत् सर्वम् इदम् विदित्वा योगी परम् स्थानम् उपैति च आद्यम् ।।२८।।

शब्दार्थ

(योगी) ईश्वर की प्रार्थना करने वाला भक्त को (एवं) नि:संदेह (वेदेषु) वेदों के अभ्यास ( यज्ञेषु ) प्रार्थना (तपःसु ) तप (च) और ( दानेषु ) दान इत्यादी (पुण्य) पुण्य (फलम् ) के फल ( प्रदिष्टम् ) की जानकारी दी गई है। (यत्) जो (अत्येति) कभी नष्ट नहीं होगी (इदम् ) इन (पुण्य को) (विदित्वा) (भक्त) अच्छी तरह जानता है (और पुण्य कर्म करता है) (च) और (वह) (तत्) इन (सर्वम) सब (पुण्य के कर्मों के फल को) (आद्यम्) (ईश्वर के आश्वासन के अनुसार) मूल रुप में ( उपैति ) (स्वर्ग में अवश्य) प्राप्त करेगा।

अनुवाद

ईश्वर की प्रार्थना करने वाले भक्त को नि:संदेह वेदों के अभ्यास, प्रार्थना, तप और दान इत्यादी पुण्य के फल की जानकारी दी गई है। जो कभी नष्ट नहीं होगी। इन ( पुण्य को) (भक्त) अच्छी तरह जानता है (और पुण्य कर्म करता है)। और (वह) इन सब ( पुण्य के कर्मों के फल को) (ईश्वर के आश्वासन के अनुसार) मूल रुप में (स्वर्ग में अवश्य) प्राप्त करेगा।

नोट

पुण्य कर्म का बदला मिलने के बारे में कुरआन की एक आयत इस प्रकार है। अगर तुम ईश्वर को अच्छा कर्ज दोगे। (अर्थात दान करोगे) तो वह उसे तुम्हारे लिए कई गुना बढ़ा देगा (अर्थात अधिक पुण्य देगा) और तुम्हें क्षमा कर देगा, और ईश्वर तो कद्रदान है, बुद्धिवान है। (सूरह अल तगाबून-६४, आयत १७)