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अध्याय 9 ,श्लोक 12



श्लोक

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः । राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ।।12।।

मोघ आशाः मोघ-कर्माणः मोघ-ज्ञानाः विचेतसः। राक्षसीम् आसुरीम् च एव प्रकृतिम् मोहिनीम् श्रिताः ।। १२ ।।

शब्दार्थ

(ए) नि:संदेह (ईश्वर को मनुष्य के समान शरीरवाला समझना) (राक्षसीम्) राक्षसी (विचेतसः) सोच या दृष्टीकोण है (च) और (मोहिनीम) इस भ्रम के कारण (आसुरीम् ) (लोगों ने) आसुरिक (प्रकृतिम्) शक्तियों की (श्रिताः) शरण ली है (इस कारण उनके ) (मोघ आशा) (मृत्यु के बाद के जीवन में सफलता की कोई) आशा नहीं है। (मोघ कर्माणः) उनके सब सत्कर्म नष्ट हो गए। (मोघ ज्ञानाः) और उनका ज्ञान भी व्यर्थ हो गया।

अनुवाद

निःसंदेह ईश्वर को मनुष्य के समान शरीरवाला समझना राक्षसी सोच या दृष्टिकोण है और इस भ्रम के कारण लोगों ने आसुरिक शक्तियों की शरण ली है। इस कारण उनके मृत्यु के बाद के जीवन में सफलता की कोई आशा नहीं है। उनके सब सत्कर्म नष्ट हो गए और उनका ज्ञान भी व्यर्थ हो गया।