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अध्याय 9 ,श्लोक 15



श्लोक

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते। एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।15।।

ज्ञान-यज्ञेन च अपि अन्ये यजन्तः माम् उपासते। एकत्वेन पृथक्तेन बहुधा विश्वतः मुखम् ।।१५।।

शब्दार्थ

(इस संसार में मनुष्यों के दो समूह हैं) (ज्ञान यज्ञेन) (पहला समूह उन लोगों का है जो) धार्मिक शिक्षा के अनुसार प्रार्थना करते हैं। (च) और (अपि) नि:संदेह (अन्ये यजन्तः) (दूसरा समूह उन मनुष्यों का है जो) दूसरों की प्रार्थना करते हैं। (माम् उपासते) (पहला समूह) मेरी प्रार्थना करता है। (एकत्वेन) (मुझे) एक (ईश्वर) मानकर (बहुधा) (दूसरा समूह) बहुत सारे (और) (विश्वतः) संसार के (पृथक्त्वेन) विभिन्न (मुखम्) आकार (और चीजों की प्रार्थना करते हैं।)

अनुवाद

इस संसार में मनुष्यों के दो समूह है पहला समूह उन लोगों का है जो धार्मिक शिक्षा के अनुसार प्रार्थना करते हैं और नि:संदेह दूसरा समूह उन मनुष्यों का है जो दूसरों की प्रार्थना करते हैं। पहला समूह मेरी प्रार्थना करता है मुझे एक (ईश्वर) मानकर। (दूसरा समूह) बहुत सारे और संसार के विभिन्न आकार और चीजों की प्रार्थना करते हैं।