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अध्याय 9 ,श्लोक 2



श्लोक

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् । प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥2॥

राज- विद्या राज-गुह्यम् पवित्रम् इदम् उत्तमम | प्रत्यक्ष अवगमम् धर्म्यम् सु-सुखम् कर्तुम् अव्ययम् ॥२॥

शब्दार्थ

(सु-सुखम्) शान्ति व सुख वाले (धर्म्यम्) धर्म का यह ज्ञान (विद्या) सारे ज्ञानों का ( राज) राजा है (गुह्यम्) गोपनीय ज्ञानों का ( राज) राजा है (पवित्रम) और अत्यंत पवित्र ज्ञान है (इदम्) यह (उत्तमम् ) सबसे श्रेष्ठ और (अव्ययम्) अविनाशी ( कर्तुम) निर्माता (ईश्वर की ओर से) (प्रत्यक्ष) सीधा (अवगमम्) आया हुआ है।

अनुवाद

शान्ति व सुख वाले धर्म का यह ज्ञान सारे ज्ञानों का राजा है। गोपनीय ज्ञानों का राजा है और अत्यंत पवित्र ज्ञान है। यह सबसे श्रेष्ठ और अविनाशी निर्माता (ईश्वर की ओर से) सीधा आया हुआ है।