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अध्याय 9 ,श्लोक 27



श्लोक

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् । यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥27॥

यत करोषि यत् अश्नासि यत् जुहोषि ददासि
यत् । यत् तपस्यसि कौन्तेय तत् कुरुष्व मत् अर्पणम् ।।२७।।

शब्दार्थ

(कौन्तेय) हे कुन्ती पुत्र! (अर्जुन) (यत) (तुम) जो कुछ (करोषि) (कर्म) करते हो (यत्) जो कुछ (अश्नासि) खाते हो (यत) जो कुछ (जुहोषि) अर्पित करते हो (यत ) जो कुछ ( ददासि ) दान देते हो (यत) जो कुछ (तपस्यसि) तपस्या करते हो (मत- अर्पणम्) वह केवल मुझे ही अर्पित (कुरुष्व) करो।

अनुवाद

हे कुन्ती पुत्र! (अर्जुन) (तुम) जो कुछ (कर्म) करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो, जो कुछ दान देते हो, जो कुछ तपस्या करते हो वह केवल मुझे ही अर्पित करो।