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N-6 धार्मिक ग्रंथों में संगम का अर्थ क्या है?

• नालन्दा विशाल शब्द सागर कोश में पेज नं. १३७३ पर संगम के चार अर्थ लिखे हैं। वह इस प्रकार है।
१. सम्मेलन
२. वह स्थान जहाँ दो नदियाँ मिलती हैं
३. साथ, सोहबत
४. दो या अधिक वस्तुओं का एक साथ मिलना।

• धार्मिक ग्रन्थों में संगम का अर्थ है (शिर्क) “अर्थात एक ईश्वर की प्रार्थना के साथ किसी और की प्रार्थना भी करना"। भगवद् गीता में इससे १९ बार मना किया गया है। उन श्लोकों के नं. निम्नलिखित हैं।

२.४८, ३.९, ४.२३, ५.१०, ५.११, ८.२२, ९.१५, ९.२२, ९.३०, ११.५५, १२.६, १२.१८, १३.११, १४.२६, १५.३, १८.२६. १५.५, १८.९, १८.२३,

भगवद् गीता का श्लोक नं. २.४८ इस प्रकार है।

• योगस्थः कुरु कर्माणि सड् म् त्यक्त्वा धनजय।
सिद्धि-असिद्धयोः समः भुत्वा समत्वम् योग: उच्यते ।।२.४८।।


(उच्यते) ईश्वर ने कहा (धनंजय) हे अर्जुन (संगम) संगम (त्यकत्वा) छोड़ दो (कर्माणि) अपने कर्तव्य का पालन करो (योगस्थ) ईश्वर के संपर्क में रहो। (सिद्धि) सफलता और (असिद्धयो) विफलता में (सम:) धैर्य से एक समान (भूत्वा ) रहो। (समत्वम-योग) ऐसा करना धैर्य (कर्म) द्वारा ईश्वर की प्रार्थना है।

ईश्वर कहा, हे अर्जुन संगम छोड़ दो। अपने हे कर्तव्य का पालन करो। ईश्वर के संपर्क में रहो। सफलता और विफलता में धैर्य के साथ एक समान रहो। ऐसा करना धैर्य (कर्म) द्वारा ईश्वर की प्रार्थना है।

• अन्य श्लोक आप स्वयम् इस पवित्र पुस्तक में पढ़ लीजिए।

• ईश्वर ने पवित्र कुरआन में निम्नलिखित शब्दों में 'संगम' की निन्दा की है।

“निःसंदेह ईश्वर इसको क्षमा नहीं करेगा कि उसका सहभागी ठहराया जाए। और उसके सिवा जो कुछ पाप मनुष्य करता है उसे जिसके लिए चाहेगा क्षमा कर देगा और जो कोई ईश्वर का सहभागी ठहराए, उसने बहुत बड़ा पाप किया है।” (पवित्र कुरआन अन- निसा, ४, आयत नं. ४८ )
सहभागी ठहराना का अर्थ है। किसी और को भी ईश्वर कहना या किसी की ईश्वर की तरह प्रार्थना करना। इसको 'शिर्क' या 'संगम' भी कहते हैं।