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N-8 काम भावना क्या है ?

• स्वामी राम सुखदास जी ने श्लोक नं. ३.३७ की व्याख्या में लिखा है कि "मेरी मन चाही हो” यही काम है। और लिखा है, "यह मुझे मिल जाए " । इस प्रकार की इच्छा काम कहलाती है।


• स्वामी मुकुन्दानन्दजी इसी श्लोक नं. ३.३७ की व्याख्या में लिखते हैं, "वेदों में काम शब्द का उपयोग केवल यौन इच्छा के लिए नहीं उपयोग हुआ है, बल्कि यह शरीर से जुड़े सभी प्रकार के आनंद की इच्छा के लिए हुआ है।

उदाहरण के तौर पर धन की इच्छा, सत्ता की इच्छा, मान सम्मान की इच्छा, इन सभी के लिए काम शब्द का उपयोग हुआ है।
(www.holybhagwad-gita.org)

• मैंने अपनी रिसर्च से पाया कि इसका अर्थ है, "हमारी ऐसी प्रबल इच्छा कि हम उसे पूरा करने में धार्मिक नियमों को भी छोड़ दें।"

जैसे एक धार्मिक व्यक्ति ईश्वर की प्रार्थना में लगा रहता है। ऐसे ही जिसमें काम भावना प्रबल होती है वह अपनी इच्छा पूरी करने में लगा रहता है।

तो जैसे ईश्वर की प्रार्थना को ईश्वर की भक्ति कहते हैं, ऐसे ही धर्म को छोड़कर अपनी इच्छा को पूरा करने को "इच्छा भक्ति” कहते हैं। श्लोक नं. ३.३७ में इसे वैरिणम (महान शत्रु) महापाप्मा (महान पाप) महाअशन (विनाश का कारण) लिखा है।

• पवित्र कुरआन में भी इच्छा भक्ति का इन शब्दों में निषेध है।
“( हे मुहम्मद ) क्या तुमने उसे देखा जिसने अपना ईश्वर (पुज्य) अपनी (तुच्छ) इच्छा को बना रखा है? तो क्या तुम उस (को सीधे मार्ग पर लाने) के जिम्मेदार हो सकते हो?

क्या तुम समझते हो कि इनमें अधिकतर सुनते या समझते हैं? ये तो बस चौपायों की तरह है बल्कि ये और बढ़ कर मार्ग से भटके हुए हैं।" (पवित्र कुरआन, सूरह अल-फूरकान- २५, आयत ४३-४४)

• अर्थात धर्म को भूल कर अपनी इच्छा को पूरा करने में लगे मनुष्य जानवर की तरह होता है। इन्हें सत्य के मार्ग पर पैगम्बर भी नहीं ला सकते।