Home Chapters About



N-1.4 ईश्वर ब्रह्माण्ड को कैसे चलाता है ?

इस बात को समझने के लिए कि ईश्वर ब्रह्माण्ड को कैसे चलाता है? निम्नलिखित गीता के श्लोक के अर्थ को याद रखिए।

सर्व इन्द्रिय गुण आभासम् सर्व इन्द्रिय विवर्जितम् ।
असक्तम् सर्वभृत् च एव निर्गुणम् गुण-भोक्तृ च ।।१३.१५।।


(वह ईश्वर) सभी इन्द्रिये (Sensory organ) (और) गणों (को) प्रकाशित करने वाला है, (उनमें जान डालने वाला है) । (किन्तु वह) सभी इन्द्रियों के बिना है और वह सबको पालता है, किन्तु वह किसी पर निर्भर नहीं (किसी की सहायता से जुड़ा नहीं है)। नि:संदेह ( वह ईश्वर) (मनुष्यों में) गुणों का रचयिता है, किन्तु वह (स्वयम) निर्गुण है।

• बहि: अन्तः च भूतानाम् अचरम् चरम् एव च ।
सूक्ष्मत्वाम् तत् अविज्ञेयम् दूर-स्थम् च अन्तिके च तत् ।। १३.१६॥


नि:संदेह, वह (ईश्वर) जीवित और अजीवित प्राणियों के बाहर और भीतर है। और वह अत्यंत सूक्ष्म होने से जानने में नहीं आता। और (वह ईश्वर) दूर से दूर तथा नजदीक से नज़दीक भी है।

• अनादित्वात् निर्गुणत्वात् परम आत्मा अयम् अव्ययः ।
शरीर-स्थ: अपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥१३.३२।।


हे कुन्ति पुत्र (अर्जुन)। वह (ईश्वर) आरंभ के बिना है (अजन्म है)। (उसमें मनुष्य जैसे) गुण नहीं, ईश्वर महान है, अमर है, (अविनाशी है)। वह हृदय में स्थित है, (किन्तु) (वह न) कुछ करता है (और) न (ही) किसी से जुड़ा है।

• यथा आकाश स्थितः नित्यम् वायुः सर्वत्र-ग:
महान् तुा सर्वाणि भूतानि मत्-स्थानि इति उपधारय ।।९.६।।


जिस प्रकार वायु हमेशा और हर जगह आकाश
में उपस्थित है। और जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस तरह इस सत्य को समझो कि) सारे प्राणी मुझ पर निर्भर है। मेरे बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते।

ऊपर वर्णन किए गए श्लोक से हम समझ सकते हैं कि हम और ब्रह्माण्ड की सारी वस्तुएं ईश्वर के तेज के एक अंश से जीवित हैं। इस बात को अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित उदारहण और पढ़िए।

• सोलर घड़ी किस तरह काम करती है?

सूर्य के प्रकाश से चलने वाली घड़ी को यदि हम अंधेरे में रखें तो वह रुक जाएगी और यदि उसे सूर्य के प्रकाश में रखें तो चलने लगती है।

ऐसा क्यों ?

सूर्य पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है और उसका १.५ करोड़ डिग्री सेन्ट्रीग्रेड तापमान है। यदि वह पृथ्वी के निकट भी आ जाए तो सोलर घड़ी और पृथ्वी सब कुछ जल जाएगा। जैसे वर्षा में पानी की बुंदे बरसती है। इसी प्रकार के प्रकाश से फोटोन बरसते हैं। Photon यह प्रकाश की बूंद या एक अंश है। जब यह सोलर घड़ी के Photo cell पर पड़ते है तो ऊर्जा उत्पन्न होती है और उस ऊर्जा से घड़ी चलने लगती है।

तो हम कह सकते हैं कि सूर्य सोलर घड़ी के चलने का कारण है। किन्तु हम यह भी जानते है कि यदि सूर्य पृथ्वी के निकट भी आ जाए तो सब कुछ जल जाएगा। तो सूर्य सोलर घड़ी के अंदर भी है और बहुत दूर भी है।

इसी प्रकार ईश्वर के तेज के एक अंश से हमारा हृदय धड़कता है और हम जीवित हैं। किन्तु ईश्वर अगर धरती पर प्रगट हो जाए तो सारी धरती जल जाए, जैसे पैगंबर मूसा (अ.) के साथ हुआ था। और जिसका वर्णन पवित्र कुरआन के सूरे नं. ७ आयत नं. १४३ में है।

तो ईश्वर हमारे अंदर भी है और बहुत दूर भी हैं। इसी प्रकार जो कुछ संसार में होता है वह सब ईश्वर के कारण होता है। किन्तु वह संसार में उपस्थित नहीं है और न किसी से जुड़ा है।

इसी सच्चाई को ईश्वर ने पवित्र कुरआन और भगवद् गीता में इस तरह कहा है।

• ईश्वर ही धरती और आकाश का प्रकाश है।(पवित्र कुरआन २४.३१)

भगवद गीता के तीन श्लोक इस प्रकार हैं।

• यथा प्रकाशयति एकः कृत्स्नम् लोकम् इ॒मम् रविः ।
क्षेत्रम् क्षेत्री तथा कृत्स्नम् प्रकाशयति भारत ।। १३.३४।।


हे अर्जुन जिस प्रकार एक सूर्य इस (संसार को) प्रकाशित (जीवित) करता है। इसी प्रकार इस शरीर को (केवल एक) ईश्वर (ही) प्रकाशित (जीवित) करता है।

• यत् यत् विभूति मत् सत्त्वम् श्री- मत् उर्जितम् एव वा ।
तत् तत् एव अवगच्छ त्वम् मम तेज: अंश सम्भवम् ।।१०.४१।।


( संसार में ) जो जो दिव्य रचनाऐं या समृद्धि ऊर्जा (या ज्ञान) या सुख शान्ति (और) मानवता (सच्चाई) मानी जाती है। नि:संदेह उन सबको तुम मेरे तेज के अंश से उत्पन्न हुई है ऐसा समझो।

अथवा बहुना एतेन किम् ज्ञातेन तब अर्जुन ।
विष्टभ्य अहम् इदम् कृत्स्नम् एक अंशेन स्थितः जगत् ।।१०.४२॥


किन्तु हे अर्जुन तुम्हें इस प्रकार बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है? मैंने इस

सम्पूर्ण जगत को अपने केवल एक तेज के अंश से स्थित और फैला रखा है।

• ईश्वर के तेज का अंश जो हम सब प्राणियों के शरीर में हैं इसे हम प्राण या जान कहते है।

हमारा प्रश्न था कि ईश्वर ब्रह्माण्ड को कैसे चलाता है? तो उत्तर है कि यह ब्रह्माण्ड ईश्वर के तेज के एक अंश से उसी प्रकार जीवित और सक्रिय है जैसे सोलर घड़ी सूर्य के प्रकाश से जीवित और सक्रिय रहती है।