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N-1.6 आकाशवाणी क्या है?

आकाशवाणी को समझने के लिए हम शिव पुराण का अध्ययन करते हैं। शिव पुराण के कुछ श्लोक इस प्रकार हैं।

शंकरजी के जन्म से संबंधित श्लोक इस प्रकार है।

• तपस्यतश्च सृष्ट्यर्थं ध्रुवोघ्रणस्य मध्यतः ।
अविमुक्ताभिधाद्देशात् स्वकीयान्मे विशेषतः ।

(शिव पुराण, भाग - १, रूद्रसंहिता, सती खण्ड-१, अध्याय-१५ पेज नं-२४६, श्लोक-५५-५६)

अर्थात जब ब्रह्माजी ईश्वर की याद में ध्यान लगाए बैठे थे, तब शंकरजी उनके माथे से प्रकट हुए।

स्वर्ग लोक में दक्ष ने शंकरजी का घोर अपमान किया था। उसके शब्द इस प्रकार है।

• एते हि सर्वे च सुराऽसुरा भृशं नमन्ति मां विप्रवरास्तथर्षयः ।
कथं हासां दुर्जनवन्महामनास्त्वभूत्तु यः प्रेतपिषाचसंवृतः ।१४।

(शिव पुराण, भाग- १, रुद्रसंहिता, सती खण्ड २ अध्याय २६, पेज नं ३८७, श्लोक १४)

इन सभी देवताओं, ऋषियों, ब्राह्मणों तथा राक्षसों ने मुझे आता देखकर प्रणाम किया। परन्तु प्रेत-पिशाचों से युक्त इस महामनस्वी शिव ने मेरे साथ इस प्रकार दुर्जन के समान आचरण कैसे किया। १४।

• श्मशानवासी निरपत्रपो ह्ययं कथं प्रमाणं न करोति मेऽ धुना।
लुप्तक्रियो भूतपिशाचसेवितो मत्तोऽविधो नीतिविदूषकः सदा ।१५।

(शिव पुराण, भाग- १, रुद्रसंहिता, सती खण्ड - २, अध्याय २६, पेज नं ३८७, श्लोक-१५)

शमशानवासी, निर्लज्ज, क्रियाहीन, भूत पिशाचों से सेवित, उन्मत्त और नीतिपथ को दूषित करने वाले इस शिव ने मुझे प्रणाम क्यों नहीं किया ? १५ ।

• पाखण्डिनो दुर्जनपापशीला दृष्टवा द्विजं प्रोद्धतानिन्दाच सदासक्तरतिप्रवीणस्तस्मादमुं शप्तुमहं प्रवृत्तः । १६ । (शिव पुराण, भाग- १, रुद्रसंहिता, सती खण्ड - २, अध्याय २६, पेज नं ३८७, श्लोक-१६)

पाखण्डी, दुर्जन, पापशील, ब्राह्मणों को देखकर उनकी निन्दा करने वाले, उच्छृड्डल, स्त्री में आसक्त तथा व्यभिचारी, ये शाप के योग्य हैं, इसलिए मैं इस पापी रुद्र को शाप दे रहा हूँ।

• स्वर्ग लोक में सती शंकरजी की पत्नी थी। शंकरजी का अपमान उनसे सहन न हुआ और उन्होंने अपने आपको जला डाला।

इस घटना से क्रोधित होकर आकाशवाणी ने इन शब्दों में दक्ष को शाप दिया और देवताओं को चेतावनी दी।

• जगत्पिता शिवः शक्तिर्जगन्ता च सासती ।
सत्कृतौ न त्वया मूढ! कथं श्रेयो भविष्यति ।।२५।।


(शिव पुराण, रुद्रसंहिता, सती खण्ड २, अध्याय ३१, पेज नं-४०९, श्लोक-२५ )

• शिव एवं सती इस जगत् के माता-पिता हैं।
हे मूढ़ ! तुमने उनका सत्कार नहीं किया, अतः किस प्रकार तुम्हारा कल्याण होगा?॥२५॥

• यदी देवाः करिष्यन्ति साहाय्यमधुना तव ।
तदा नाशं समाप्स्यन्ति शलभा इव वहिना ।।२९।।


यदि इस समय किसी भी देवता ने तुम्हारी सहायता की तो वह अग्नि में शलभ (पतंगे) के समान नष्ट हो जाएगा।

• ज्वलत्वद्य मुखं ते वै यज्ञध्वंसो भवत्वति ।
सहायास्तव यावन्तस्ते ज्वलन्त्वद्य सत्वरम् ।३०।


अवश्य ही सती के इस अपमान से तेरा मुख जल जावे, यज्ञ नष्ट हो जावे तथा ये सभी तुम्हारे सहायक देवता भी शीघ्र जलकर नष्ट हो जावें । ३० ।

• निर्गच्छन्त्वमराः वोकमेतदध्ववरमण्डपात् ।
अन्यथा भवतां नाशो भविष्यत्यद्य सर्वथा ।३२|


देवता लोग शीघ्र ही इस यज्ञमण्डप से बाहर हो जावें अन्यथा इनका अवश्य विनाश हो जायेगा |३२|

• निर्गच्छ त्वं हरे शीघ्रमेतध्वरमण्डपात् ।
अन्यथा भवतो नाशो भविष्यत्यद्य सर्वथा ।३४।

(शिव पुराण, रुद्रसंहिता, सती खण्ड-२ अध्याय ३१, पेज नं ४०९, श्लोक ३४)

हे विष्णो! तुम भी इस यज्ञ मण्डप से बाहर चले जाओ, अन्यथा तुम्हारा भी विनाश हो जाएगा। ३४।

• निर्गच्छ त्वं विधे! शीघ्रमेतदध्वरमण्डपात् ।
अन्यथा भवतो नाशो भविष्यत्यद्य सर्वथा ।३५।

(शिव पुराण, रुद्रसंहिता, सती खण्ड-२, अध्याय ३१, पेज नं ४०९, श्लोक-३५)

हे विधाता (ब्रह्मा) तुम शीघ्र इस स्थान से बाहर हो जाओ, अन्यथा तुम्हारा सर्वथा नाश हो जाएगा। ३५।

• इत्युक्त्वाऽध्वरशालायामखिलायां सुसंस्थितान् ।
व्यरमत् सा नभोवाणी सर्वकल्याणकारीणी |३६|


इस प्रकार सबका कल्याण करने वाली वह आकाशवाणी यज्ञमण्डप में आये हुए सभी लोगों को सुनाते हुए मौन हो गयी। ३६।

• तच्छ्रुत्वा व्योगवचनं सर्वे हर्यादयः सुरोः ।
अकार्षुर्विस्ययं तात मुनयश्च तथाऽपरे ।३७।

(शिव पुराण, भाग १, रुद्रसंहिता, सती खण्ड २, अध्याय ३१, पेज नं ४०९, · श्लोक-३६-३७)

आकाशवाणी को सुनते ही विष्णुआदि देवगण तथा समस्त मुनिगण आश्चर्य से स्तम्भित हो गये। ३७।

• बाईबल (Exodus 3 NIV) में लिखा है कि जब हजरत मूसा 'मदायन' से मिस्र (Egypt) जा रहे थे तो Sinai पहाड़ के ऊपर उन्हें रोशनी (Light) दिखाई दी, तो आप वहां आग लाने गए। मगर जब आप उस रोशनी के पास पहुंचे तो एक आकाशवाणी सुनाई दी, "ऐ मूसा मैं तुम्हारा ईश्वर हूँ। तुम इस समय तवा के पवित्र स्थान पर हो, इसलिए अपने जूते उतार दो। मैं तुम्हें इस्रराईल समुदाय का पैगंबर (संदेष्टा) नियुक्त करता हूँ।"

• यही बात कुरआन में सुरे नं २० आयत नं ११-१२ में भी लिखी हुई है।

• तो आकाशवाणी यह ईश्वर की आवाज है।

• अपने जन्म के बाद जब ब्रह्मा जी अपने जन्मदाता को जानना चाहा तो इसी

आकाशवाणी ने आपका मार्गदर्शन किया था। और तप करने का आदेश दिया था।

• हजरत आदम, हजरत हव्वा और इब्लीस को जो भी आदेश प्राप्त हुए, वे सब आकाशवाणी के रुप में थे। किसी ने ईश्वर को अपनी आँखो से कभी नहीं देखा।

• तो आकाशवाणी यह ईश्वर की आवाज है। शिव पुराण के श्लोकों को पढ़ कर हम समझ सकते हैं कि शंकरजी. विष्णु जी और ब्रह्माजी इन सबका अस्तित्व है और यह सब दिव्य और आदरणीय है। किन्तु ईश्वर का अपना एक अलग अस्तित्व है और वह सबसे महान है और उसने ही इन सबकी रचना की है।

• भगवद् गीता के श्लोक नं. ८.४ में ईश्वर ने कहा कि मैं ही अधिदैवतम् हूँ अर्थात देवताओं का ईश्वर हूँ।

तो देवता और मनुष्य सबका मालिक एक है।