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अध्याय 14 - गुण त्रय विभाग योग


INTRODUCTION :


●अध्याय नं. २ में हमने जाना कि हमारे कुछ अनिवार्य कर्तव्य हैं।

अध्याय नं. ३ में हमने जाना कि धर्म में श्रद्धा
और कर्म दोनों महत्त्वपूर्ण हैं।

अध्याय नं. ४ में हमने धार्मिक ज्ञान प्राप्त
किया।

अध्याय नं. ५ में कर्म को गहराई से समझा और
कर्म योग और कर्म सन्यास को जाना।

अध्याय ६ में हमने ध्यान योग सीखा। अध्याय - ७ से १३ तक हमने ईश्वर को पहचाना और हमारी ईश्वर में दृढ श्रद्धा हो गई।

इसके बाद क्या ? क्या अब हमारा जीने का तरीका बदल जाएगा और हम ऋषि मुनि जैसा जीवन गुजारेंगे? कभी नहीं!

● यदि हमारा स्वभाव तमो गुण वाला है तो हम इस पुस्तक को प्रसाद की तरह हाथ में लेंगे। माथे से लगाऐंगे और घर में सबसे ऊपर की अलमारी में रखेंगे कि भूल से किसी का हाथ न लग जाए।

यदि हमारा स्वभाव रजो गुण वाला है तो हम इस दिव्य पुस्तक को अपने टेबल पर रखेंगे। हमारा दृढ संकल्प होगा कि हम इसे पढ़ेंगे और अमल भी करेंगे। किन्तु हाथ में जो काम है। इसको खत्म करने के बाद और हमारे काम कभी खत्म नहीं होंगे।

यदि हम सत्वों गुण वाले हैं तो रोज सवेरे हम इसे पढ़ेंगे। प्रेरित होंगे। ईश्वर की प्रार्थना भी करेंगे और फिर सब कुछ घर पर छोड़ कर कारोबार में लग जाऐंगे। अर्थात सवेरे का १ घंटा ईश्वर की इच्छा अनुसार और बाकी २३ घंटे हमारे इच्छा के अनुसार और सवेरे के १ घंटे की प्रार्थना और अर्चना से हम संतुष्ट रहते हैं और अपने आप को धार्मिक समझते हैं।

● ईश्वर जिसने हमारी रचना की है वह हमारे इन स्वभावों से अच्छी तरह अवगत है। इस कारण यह अध्याय अवतरित किया है।

हवाई जहाज का अविष्कार १९०३ में हुआ। पहले विश्व युद्ध में हवाई जहाज का उपयोग हुआ किन्तु वह इतने साधारण थे कि बंदुक की गोली से भी गिराए जाते थे। तो जहाज़ के पायलट हमेशा डरे रहते कि कब कोई बम या गोली लगे और वह धरती पर आ जाएं।

अंग्रेज कई सौ साल से युद्ध कला में सबसे निपुर्ण रहे हैं। उन्होंने अपने पायलटों से कहा की तुम अपने आपको पहले से ही मरा हुआ मान लो और फिर युद्ध करो। पायलटों ने जब इस मानसिकता से युद्ध किया तो बहुत वीरता से लड़े।

● पैगंबर मुहम्मद (स.) ने एक तीस वर्ष के युवक अब्दुला इब्ने उमर से कहा कि तुम अपने आप को मरे हुए लोगों में गिनो। (मस्नद इमाम अहमद कि हदीस)

वह युवक ८३ वर्ष की आयु तक जीवित रहे और उनकी गिनती इस्लाम के महान विद्वानों में होती है।

●इस अध्याय में यही सबसे महत्त्वपूर्ण उपदेश है।
श्लोक नं. १४.२० में ईश्वर ने कहा अतीत व्यक्ति जो छोड़ देता है तीनों गुणों को, वह जन्म, मृत्यु, और बुढ़ापे के दुःख से मुक्ति पाकर स्वर्ग प्राप्त करता है।
फिर अर्जुन श्लोक नं. १४.२१ में प्रश्न करते हैं कि (अतीत) की पहचान क्या है ?

इसके उत्तर में ईश्वर ने १४.२२ से १४.२८ तक अतीत व्यक्ति के गुणों का वर्णन किया है।

● नालन्दा विशाल शब्द कोश (पेज नं. ३४) में अतीत शब्द के बहुत से अर्थ बताए है। उनमें से एक है "मरा हुआ।"

● श्लोक नं. १४.२४ इस प्रकार है
(अतीत हुआ व्यक्ति) सुख दुःख (में) एक समान रहता है। वह अपने आपको वश में रखता है। मिट्टी का ढेला, पत्थर, सोने का टुकड़ा (उसके लिए) एक समान है। मित्र और रिश्तेदारों, (और) वह लोग जो उसे पसंद नहीं है सबसे एक समान व्यवहार करता है। उसकी निन्दा करने पर या उसकी प्रशंसा करने पर धीरज रखता है, और एक समान रहता है।

सोचो वह व्यक्ति जो अपने आपको अमर समझता है क्या कभी ऐसी सोच रखेगा? कभी नहीं। हाँ ऐसा व्यक्ति जो यह कल्पना करे कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। अब वह जो जीवित है तो यह अधिक जीवन अवधि उसे ईश्वर की ओर से उपहार मिला है। अब इस Extra time में वह ईश्वर की खूब (अधिक) प्रार्थना कर ले, सत्कर्म कर ले, जिससे उसे स्वर्ग में उच्च स्थान मिले तो उसके स्वभाव श्लोक नं. १४.२४ के अनुसार हो सकते हैं और यही इस अध्याय का उद्देश्य है।

SUMMARY OF SHLOKS :


इस अध्याय में ईश्वर ने श्लोक नं. १४.१ १४.५ तक अपना परिचय दिया। श्लोक नं. १४.६ से १४.१३ तक तीनों गुणों (सत्व,रजो, तमों गुणों) का वर्णन किया।

श्लोक नं. १४.१४ में सत्व गुण की प्रशंसा है किन्तु १४.१८ में कहा की तीनों गुण वाले नरक में जाऐंगे। (कारण पुण्य कर्म की कमी हो सकती है )

श्लोक नं. १४.२० से १४.२५ तक अतीत गुण का वर्णन है।

श्लोक नं. १४.२६ और १४.२७ में मानवजाति के लिए महत्त्वपूर्ण उपदेश है ।

SHLOKS :

भगवद गीता - श्लोक 14.1 View

ईश्वर ने (कृष्ण जी के माध्यम से) कहा, (अब मैं तुम्हें) दोबारा सब ज्ञानों में सबसे महान और दिव्य ज्ञान को कहूँगा जिसे जानकर सभी मुनियों ने इस ( संसार में) ईश्वर की प्रार्थना में (Perfection) पूर्णता सिद्धि प्राप्त की।

भगवद गीता - श्लोक 14.2 View

इस ज्ञान के सहारे (जीवन व्यतीत करने से व्यक्ति) ) मेरी (इच्छा के अनुसार) स्वभाव (को) प्राप्त कर लेता है। और (फिर) न (ही) (इस) संसार में (और) न (ही) प्रलय के दिन फिर से जीवित किए जाने के बाद भी उसे किसी प्रकार की कठिनाई होगी।

भगवद गीता - श्लोक 14.3 View

हे भारत (अर्जुन)! में (सबसे महान ईश्वर) ने ही गर्भ की रचना की है। (और फिर) मेरे निर्मित किए हुए वीर्य की इसमें (मैं परवरिश करता हूँ) और फिर इस तरह सम्पूर्ण प्राणियों का जन्म होता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.4 View

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! सभी वीर्यों से जो (अलग अलग) आकार वाले शरीर निर्मित होते हैं। उन सभी वीर्य का महान ईश्वर और रचना का स्त्रोत (मूल कारण) और उसका निर्माण करने वाले (निर्माता) मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 14.5 View

हे महान भुजाओं वाले (अर्जुन)! सत्व, रजो, तमो गुण यह (तीन) गुण ईश्वर ने बनाए हैं। अविनाशी (ईश्वर ने उन्हें शरीर वाले मनुष्य के शरीर से बांध दिया है।

भगवद गीता - श्लोक 14.6 View

हे पापरहित (अर्जुन)! उस (ईश्वर की ओर से प्रदान किए गए गुणों में जो) सत्वगुण है वह पवित्र करने वाला, प्रकाशित करने वाला, (मनुष्य को) पापों से मुक्त रखने वाला (गुण है)। (कारण कि यह) धार्मिक ज्ञान के साथ मनुष्य को बाँधकर सुख-शान्ति से जोड़ देता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.7 View

रजो गुण जोश, राग, उत्साह, वासना की भावना उत्पन्न करता है। (इस बात को अच्छी तरह) समझ लो कि इस गुण से मनुष्य में लोभ (लालच की) भावना पैदा हो जाती है। हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! यह लोभ ही मनुष्य को निरंतर काम करने के साथ बांध देती है।

भगवद गीता - श्लोक 14.8 View

किन्तु तमो गुण अज्ञान से उत्पन्न होती है। हे अर्जुन! ( इस बात को) समझ लो कि सम्पूर्ण देहधारी मनुष्य (इसी गुण के कारण) भ्रम में हैं। यह गुण मनुष्य को लापरवाही, आलस (सुस्ती) और निद्रा से बाँध देता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.9 View

ईश्वर ने कहा, हे भारत (अर्जुन)! सत्व गुण सुख शान्ति (से) बाँधता है। रजो गुण (निरंतर) काम में लगाता है। किन्तु तमोगुण ज्ञान को ढक देता है, (और) लापरवाही (से) बाँध देता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.10 View

हे भारत (अर्जुन)। (कभी) सत्वगुण रजो गुण और तमो गुण को दबाकर प्रबल हो जाती है। और इसी तरह कभी रजो गुण सत्व गुण और तमो गुण (से आगे बढ़ जाती है) और इस तरह कभी तमो गुण सत्व गुण और रजो गुण से आगे बढ़ जाती है।

भगवद गीता - श्लोक 14.11 View

(ईश्वर) इस तरह कह रहा है कि जब इस शरीर के सारे द्वारों में ज्ञान का प्रकाश प्रकट होने लगे, तब यह समझ लो कि सत्व गुण बढ़ा हुआ है। (शरीर के द्वारों में ज्ञान का प्रकाश प्रकट होने का अर्थ है कि शरीर के अंग धार्मिक ज्ञान के अनुसार ही काम करने लगे।)

भगवद गीता - श्लोक 14.12 View

हे भारत वंशियों में श्रेष्ठ (अर्जुन)! लालच में वृद्धि (बढ़त)। व्यापार के काम में व्यस्त रहना, अशान्ति, (बेकाबू) इच्छाएँ। यह सब उत्पन्न होते हैं रजो गुण के बढ़ने से है।

भगवद गीता - श्लोक 14.13 View

हे अर्जुन! तमो गुण के बढ़ने से निसंदेह लापरवाही और अज्ञानता और (चरित्र) में गिरावट यह सारे (गुण) उत्पन्न होते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 14.14 View

(किन्तु) जब (जीवन के) अन्त होने तक (मृत्यु के समय तक) शरीर वाले मनुष्य के सत्व गुण (में) बढ़त होती रहे। तब ऐसा मनुष्य मृत्यु के बाद बड़े विद्वानों के पवित्र लोक (स्वर्ग को) प्राप्त करेगा।

भगवद गीता - श्लोक 14.15 View

जीवन के अंत के बाद रजो गुण वाले नर्क में नया जीवन पाएंगे उन लोगों में जो जीवन में निंरतर काम में लगे थे। इस तरह जीवन के अंत के बाद तमो गुण वाले नर्क में नया जीवन पाएंगे मूर्खों के समूह में।

भगवद गीता - श्लोक 14.16 View

ईश्वर ने कहा सत्व गुण के कारण शुभ कर्म होते हैं और उनका फल भी निर्मल पवित्र होता है। रजो गुण के कारण किए गए कर्मों का फल (परिणाम) कष्ट वाला होता है। (और) तमो गुण के कारण (किए गए कर्मों का) फल (परिणाम) अज्ञान ही होता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.17 View

सत्वात् सन्जायते ज्ञानम् रजसः लोभः एव च । प्रमाद मोहौ तमसः भवतः अज्ञानम् एवच ।।१७।। नि:संदेह, सत्वगुण से ज्ञान और रजो गुण से

भगवद गीता - श्लोक 14.18 View

मृत्यु पाया हुआ व्यक्ति गुणों के आधार पर नर्क में इस तरह जाऐंगे। सत्वगुण में स्थित रहने वाले (नर्क में) ऊपरी भाग में स्थित किए जाऐंगे। रजो गुण वाले (नर्क में) मध्य भाग में स्थित किए जाएंगे और सबसे निचले भाग में तमो गुण वाले जाऐंगे। सत्व गुण वाले तीन कारणों से नर्क में जाऐंगे। १. सत्कर्मों का कम होना। २. ईश्वर में श्रद्धा न होना। ३. ईश्वर को प्रसन्न करने के बदले पुण्य को अधिक महत्त्व देना।

भगवद गीता - श्लोक 14.19 View

तब देखने वाले यह समझते हैं कि प्राकृतिक गुण के अतिरिक्त कोई दूसरी चीज़ सारे कर्मों को नहीं (करती) तब वह सच्चाई को देखता है और जान लेता है कि महान ईश्वर ने इन गुणों को उत्पन्न किया और मनुष्य के शरीर से जोड़ दिया है और ( तब वह ) मुझमें श्रद्धा वाली भावना (स्वभाव) पा लेता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.20 View

(जब कोई व्यक्ति) इन तीनों गुणों को छोड़ देता है (जो) मनुष्य के शरीर से जुड़ी हुई है, तो वह मुक्त हो जाता है जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था (बुढ़ापा), और दुःख से और प्राप्त करता है वह स्थान जहाँ मृत्यु नहीं (अर्थात स्वर्ग)

भगवद गीता - श्लोक 14.21 View

अर्जुन ने कहा, हे प्रभो, इन तीनों गुणों से बचने वाले अतीत हुआ मनुष्य (मुनी) के क्या लक्षण होते हैं? (और) इन तीनों गुणों से (वह) कैसे बचता है; और उसके आचरण कैसे होते हैं?

भगवद गीता - श्लोक 14.22 View

ईश्वर ने कहा, (अतीत हुआ व्यक्ति) न द्वेष (नफरत) करता है प्रसिद्धि से, और समृद्धी (तरक्की) से, और भ्रम से (धनवान मित्रों और रिश्तेदारों से) जब वह सब अधिक होने लगे। (और) न इच्छा करता है जब ( प्रसिद्धि, समृद्धि, मित्र और रिश्तेदार) कम होने लगे।

भगवद गीता - श्लोक 14.23 View

(वह) जो निष्पक्ष (Impartial) रहता है ( इन तीनों) गुणो से परेशान नहीं होता (इन) गुणों (के) उकसाने (Provocation) से। इसी तरह वह नि:संदेह दृढता से स्थित रहता है (और) डगमगाता नहीं।

भगवद गीता - श्लोक 14.24 View

(अतीत हुआ व्यक्ति) सुख-दुःख (में) एक समान रहता है। वह अपने आपको वश में रखता है। मिट्टी का ढ़ेला, पत्थर, सोने का टुकड़ा (उसके लिए) एक समान है। मित्र और रिश्तेदारों, (और) वह लोग जो उसे पसंद नहीं है सबसे एक समान व्यवहार करता है। उसकी निन्दा करने पर या उसकी प्रशंसा करने पर धीरज रखता है, और एक समान रहता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.25 View

ईश्वर ने कहा वह जो तीनों गुणों को छोड़ देता है। ऐसे व्यक्ति के लिए मान अपमान एक समान होते हैं। मित्र (और) शत्रु या कोई और पक्ष से वह एक समान व्यवहार करता है। वह (सारे) व्यर्थ काम (भी) छोड़ देता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.26 View

वह (अतीत व्यक्ति) (ऐसी) प्रार्थना करता है (जो उसे) मुझसे जोड़ दे। और संगम (शिर्क) नहीं करता। वह मेरा दास बन जाता है। वह (व्यक्ति) ऊपर उठ जाता है इन (तीनों) गुणों से (और वह) ईश्वर से बहुत निकट हो जाता है।

भगवद गीता - श्लोक 14.27 View

मैं (ने ही) स्थापना किया है इस ब्रह्मांड का और अमर स्थान (स्वर्ग का) जहाँ मृत्यु नहीं होगी। और सदैव स्थित रहने वाले सनातन धर्म का। और समाज में सुख शांति का और (मैं) एक ईश्वर ही आरम्भ और अन्त हूँ, (मेरे अतिरिक्त और कोई ईश्वर नहीं है।)