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अध्याय 9 - राज विद्या योग


INTRODUCTION :


● इस अध्याय का उद्देश ईश्वर में श्रद्धा को और शुद्ध करना है और अन्य लोक में श्रद्धा को प्रबल करना है।

SUMMARY OF SHLOKS :


● ईश्वर में श्रद्धा को शुद्ध करने के लिए ईश्वर ने श्लोक नं. ९.४ में कहा कि सारे प्राणी मुझ पर निर्भर करते हैं और मैं किसी पर निर्भर नहीं

● श्लोक नं. ९.५ में ईश्वर ने कहा है कि न मैं किसी प्राणी में रहता हूँ और न कोई मुझमें रहेगा।

● श्लोक नं. ९.६ में ईश्वर ने कहा कि जैसे वायु (हवा) प्राणियों के लिए अत्यंत आवश्यक है और जिसके कारण वह जीवित है। इसी प्रकार सारे प्राणी मुझसे जीवित हैं।

● श्लोक नं. ९.७ और ९.८ में ईश्वर कहते हैं कि जैसे मैंने सृष्टी की पहली बार रचना की थी उसी प्रकार प्रलय के समय सबकी फिर रचना करूंगा और जीवित करूंगा।

● श्लोक ९.११ में ईश्वर ने कहा मुझे किसी आकार में मानना मेरा अपमान करना है।

● श्लोक नं. ९.१६ में ईश्वर ने कहा कि यज्ञ में उपयोग होने वाली सारी सामग्री मेरी ही रचना है। इस कारण मुझे छोड़कर किसी और की उपासना मत करो।

● इसी प्रकार श्लोक नं. ९.१७, ९.१८, ९.१९ में ईश्वर ने बहुत सी गलतफहमी को दूर किया है।

● श्लोक नं. ९.२३, ९.२४, ९.२५ में संगम के कारण और उनके परिणाम को बताया है।

● और अन्त में ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले को जो सफलता मिलेगी उसका वर्णन है।

SHLOKS :

भगवद गीता - श्लोक 9.1 View

ईश्वर ने कहा (हे अर्जुन), तुम (किसी से) ईर्ष्या नहीं करते हो ( इसलिए) अत्यन्त गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान (में तुमसे) कह रहा हूँ। जिसे जानकर (तुम) संसार के अशुभ स्थितियों से मुक्त हो जाओगे।

भगवद गीता - श्लोक 9.2 View

शान्ति व सुख वाले धर्म का यह ज्ञान सारे ज्ञानों का राजा है। गोपनीय ज्ञानों का राजा है और अत्यंत पवित्र ज्ञान है। यह सबसे श्रेष्ठ और अविनाशी निर्माता (ईश्वर की ओर से) सीधा आया हुआ है।

भगवद गीता - श्लोक 9.3 View

हे अर्जुन! (जो) मनुष्य श्रद्धा नहीं रखते इस धर्म में वह मेरे (स्वर्ग को) प्राप्त नहीं कर पाते। वह मृत्यु के संसार (नर्क) (के) मार्ग पर लौट जाते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.4 View

मेरी न दिखाई देने वाले अस्तित्व के कारण इस संपूर्ण जगत का फैलाव है। सब प्राणी मुझसे स्थित हैं ( मुझ पर निर्भर है), और मैं उनसे स्थित ( उन पर निर्भर) नहीं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.5 View

न सारे प्राणी मुझमें रहते है और न (मैं) प्राणियों में रहता हूँ। मुझसे जुड़ी महान प्रकृती को देखो। मैं स्वयं सारे प्राणियों का रचनाकार हूँ, और सारे प्राणियों का अन्नदाता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.6 View

जिस प्रकार वायु हमेशा और हर जगह आकाश में उपस्थित है। (और जीवन के लिए अत्यंत) महत्त्वपूर्ण है। इस तरह इस (सत्य को समझो कि) सारे प्राणी मुझ पर निर्भर हैं। (मेरे कारण जीवित हैं।)

भगवद गीता - श्लोक 9.7 View

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! मैंने ब्रह्मांड के आरम्भ में इन सारे ( मनुष्यों) को निर्माण किया है और ब्रह्माण्ड के अंत (प्रलय) के समय मेरी इच्छा से ईश्वरीय प्रकृति के द्वारा सारे मनुष्य दुबारा (उठाए) जाऐंगे। (जीवित किए जाएंगे)

भगवद गीता - श्लोक 9.8 View

मेरी अपनी प्रकृति के सहारे प्राणियों के विभिन्न समुदाय का बार-बार निर्माण कर रहा हूँ। (इसी प्रकार) इन सबका (प्रलय के समय दोबारा) अवश्य निर्माण करूंगा। (कारण कि यह मेरी निर्माण करने वाली) प्रकृति के वश में है।

भगवद गीता - श्लोक 9.9 View

हे अर्जुन! यह सब (निर्माण के) कर्म मुझे नहीं बांधते (थकाते) और स्वार्थरहित (अनासक्त) बिना जुड़े, मैं इन कामों में लगा रहता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.10 View

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! मेरे आदेश से जो मैं प्रकृति को देता हूँ यह सब जीवित प्राणी और निर्जीव अस्तित्व में आते हैं और इस कारण इस जगत (में) परिवर्तन होता है।

भगवद गीता - श्लोक 9.11 View

मूर्ख लोग मुझ महान ईश्वर (को) (सभी) प्राणियों (का) महान रचियता नहीं मानते। (वह मुझे) मनुष्य की तरह आकार या शरीर वाला मानकर मेरा अपमान करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.12 View

निःसंदेह ईश्वर को मनुष्य के समान शरीरवाला समझना राक्षसी सोच या दृष्टिकोण है और इस भ्रम के कारण लोगों ने आसुरिक शक्तियों की शरण ली है। इस कारण उनके मृत्यु के बाद के जीवन में सफलता की कोई आशा नहीं है। उनके सब सत्कर्म नष्ट हो गए और उनका ज्ञान भी व्यर्थ हो गया।

भगवद गीता - श्लोक 9.13 View

हे अर्जुन ज्ञानी, मुनि, पवित्र लोग नि:संदेह इस ज्ञान के साथ कि मैं प्राणियों का आरम्भ करने वाला, रचना करने वाला अविनाशी (ईश्वर हूँ) । मेरी दैविक प्रकृती शक्ति पर श्रद्धा रखते हैं ( शरण लेते हैं)। और मन को दुसरों की ओर भटकाए बिना मेरी प्रार्थना करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.14 View

ज्ञानी, मुनि, पवित्र लोग सदैव मेरी प्रशंसा करते हैं और प्रयास करते हैं दृढ़ संकल्प के साथ मुझे नमस्कार (सजदा / प्रणाम) करने की और श्रद्धा के साथ मेरे प्रार्थना में सदैव लगे रहते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.15 View

इस संसार में मनुष्यों के दो समूह है पहला समूह उन लोगों का है जो धार्मिक शिक्षा के अनुसार प्रार्थना करते हैं और नि:संदेह दूसरा समूह उन मनुष्यों का है जो दूसरों की प्रार्थना करते हैं। पहला समूह मेरी प्रार्थना करता है मुझे एक (ईश्वर) मानकर। (दूसरा समूह) बहुत सारे और संसार के विभिन्न आकार और चीजों की प्रार्थना करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.16 View

(दूसरे समूह के भ्रम को ईश्वर ने अगले चार श्लोकों में स्पष्ट किया है, वह निम्नलिखित है।) मैं वैदिक विधि हूँ (अर्थात वेदों के अनुसार जो प्रार्थनाएं की जाती है वह मेरे लिए हैं ) । वह मैं हूँ, जिसके लिए यज्ञ किया जाता है। वह वस्तु जो यज्ञ के समय अग्निकुंड में डाली जाती है, वह भी मेरी रचना है। वह मैं हँ जो औषधी में उपचार प्रभाव (Healing effect) पैदा करता है। वह मैं हूँ, जो मंत्रो में प्रभाव पैदा करता है। वह अग्नि मेरी ही रचना है, जिसे तुम यज्ञ के समय जलाते हो। नि:संदेह मैंने ही घी की रचना की है जिसे तुम यज्ञ के समय अग्नि में डालते हो, यज्ञ के समय जो भी वस्तु तुम हवन में ड़ालते हो वह मेरे द्वारा ही तुम्हें दी गई है।

भगवद गीता - श्लोक 9.17 View

मैं पिता समान हूँ जिसके कारण तुम जन्म लेते हो। मैं इस जगत की माँ के समान हूँ जो पालती है। मैं तुम्हारे पित्र का जीवनदाता हूँ जिसे तुम्हें जानना चाहिए। मैं पापों से पवित्र करने वाला हूँ। मैं अविनाशी ईश्वर ॐ हूँ, और नि:संदेह ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद मेरे द्वारा ही अवतरित किए गए हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.18 View

मैं ही तुम्हारे जीवन का लक्ष्य हूँ। मैं ही संसार का रचनाकार हूँ। मैं ही संसार का प्रभु हूँ। तुम जो पाप या पुण्य करते हो उसका साक्षी मैं हूँ । केवल मेरी ही शरण है जिसमें तुम सुरक्षित रहोगे। मैं तुम्हारा मित्र हूँ जो तुम्हारा ख्याल रखता है। इस ब्रह्मांड का निर्माण मैंने ही किया है। मैं ही ब्रह्मांड का अंत करूंगा। वह स्थान जहाँ तुम जीवन व्यतीत करते हो वह मेरी ही रचना है। मृत्यु के बाद तुम्हारा शरीर जहाँ होगा वह भी मेरी ही रचना है। मैं अविनाशी हूँ। हर वस्तु का बीज (अस्तित्व का कारण) मुझे ही समझो।

भगवद गीता - श्लोक 9.19 View

मैं ही उस गर्मी का ईश्वर हूँ जो सूर्य में हैं और मैं ही वर्षा करता हूँ जो सूर्य के गर्मी से उत्पन्न होती है। मैं ही वर्षा भेजता हूँ और उसे रोक लेता हूँ और मैं उस स्वर्ग का स्वामी हूँ जहाँ मृत्यु नही और नि:संदेह, मैं ही उस नर्क का स्वामी हूँ जहाँ हर क्षण मृत्यु होती है। और हे अर्जुन, इस नाशवान संसार, और उस अविनाशी अन्य लोक का मैं ही स्वामी हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.20 View

(पहला समूह जो ईश्वर की प्रार्थना में व्यस्त रहता हैं वह) तीनों वेदों के अनुसार सोम रस के लिए (और) श्रेष्ठ लक्ष, स्वर्ग के लिए, मेरी प्रार्थना करते हैं और पुण्य कर्म करते हैं और पापों से पवित्र हो जाते हैं। फिर पुण्य कर्मों के फलस्वरुप स्वर्ग में महान देवताओं के लोक में देवताओं द्वारा दी गई आनंद का अनुभव दिलाने वाली वस्तुओं से दिव्य आनंद का अनुभव करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.21 View

तीनों वेदों में बताए गए धर्म के नियमों का पालन करने वाले, पुण्य कर्मों में कमी के कारण मृत्यु लोक (नरक) में गिराए जाते हैं। उसके बाद दण्ड की अवधि पूरी करने के बाद यह लोग उस विशाल स्वर्ग लोक का आनंद लेते हैं। और अपनी इच्छाओं की पूर्ती में लगे हुए लोगों को मिलता है वह स्थान, जहाँ आना-जाना लगा रहता है। (अर्थात नर्क में जलकर अस्तित्व मिट जाता है और दण्ड की अवधि पूरी करने के लिए फिर अस्तित्व में आते हैं।)

भगवद गीता - श्लोक 9.22 View

जो मनुष्य मेरी भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। किसी और के बारे में सोचे बिना हमेशा मेरी भक्ति में लगे हुए हैं। मैं उन लोगों की रक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर चलता हूँ।जो मनुष्य मेरी भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। किसी और के बारे में सोचे बिना हमेशा मेरी भक्ति में लगे हुए हैं। मैं उन लोगों की रक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर चलता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.23 View

हे कुन्ती पुत्र अर्जुन, नि:संदेह जो दूसरे देवताओं की भक्ति करते हैं। और श्रद्धा के साथ उनकी भक्ति में लगे रहते हैं। नि:संदेह वह भी मेरी ही भक्ति करना चाहते हैं किंतु ज्ञान न होने के कारण नियमों का उल्लंघन करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.24 View

नि:संदेह! मैं ही वह ईश्वर हूँ जिसके लिए सारी प्रार्थनाएं की जाती है। किन्तु (जो ) इस सत्य को नहीं जानते, वह इस अज्ञानता के कारण नर्क में गिराए जाते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 9.25 View

मृत्यु के बाद देवताओं के पुजारी देवताओं के पास जाऐंगे। पितरों का पूजन करने वाले पितरों के पास जाऐंगे। भूत प्रेतों का पूजन करने वाले भूत प्रेतों के पास जाएंगे। केवल मेरी प्रार्थना करने वाले मेरे (स्वर्ग में) जाएंगे।

भगवद गीता - श्लोक 9.26 View

भक्त जो अपने मन को पवित्र रखता है, और भक्ति की भावना से जो कुछ भी मुझे अर्पण करता है। जैसे की पत्ता, फुल, फल, जल वह सब मैं स्वीकार कर लेता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.27 View

हे कुन्ती पुत्र! (अर्जुन) (तुम) जो कुछ (कर्म) करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो, जो कुछ दान देते हो, जो कुछ तपस्या करते हो वह केवल मुझे ही अर्पित करो।

भगवद गीता - श्लोक 9.28 View

निःस्वार्थ कर्म करो (फल की आशा न करो) अपने आपको मेरी भक्ति में व्यस्त रखो, यही पापों से मुक्ति का मार्ग है। इस तरह तुम शुभ अशुभ कर्मों के फल से और अनिवार्य कर्तव्य के बन्धन से मुक्त हो जाओगे और मुझे प्राप्त कर लोगे, मेरे स्वर्ग को प्राप्त कर लोगे। अर्थात निस्वार्थ कर्म करने से और ईश्वर की याद में लगे रहने से पाप भी नहीं होते और अनिवार्य कर्तव्य भी कुशलता से पूर्ण हो जाती है और मृत्यु के बाद मनुष्य स्वर्ग ही पाता है।

भगवद गीता - श्लोक 9.29 View

सर्व प्राणी मेरे लिए समान हैं। न मैं किसी से द्वेष करता हूँ और न प्रेम करता हूँ। किन्तु जो मेरी श्रद्धा के साथ प्रार्थना करते हैं, वह मेरे लिए हैं और मैं उनके लिए हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 9.30 View

यदि अत्यन्त दुराचारी (पापी) श्रद्धा रखता है मुझमें और अनन्य ( देवताओं) की भक्ति नहीं करता है तो नि:संदेह उसे पवित्र व्यक्ति (मुनि) मानना चाहिए। निःसंदेह वह सही परिपूर्ण संकल्प वाला (श्रद्धावाला) है।

भगवद गीता - श्लोक 9.31 View

बहुत जल्दी वह पवित्र व्यक्ति बन जाएगा। और मृत्यु के बाद निरन्तर शांत रहने वाला स्थान (स्वर्ग) प्राप्त करेगा। हे कुन्तीपुत्र अर्जुन घोषित कर दो कि मेरी प्रार्थना करने वालों का कभी पतन नहीं होता।

भगवद गीता - श्लोक 9.32 View

हे पार्थ! (अर्जुन), मेरी भक्ति करके मेरी शरण लेने वाले जो भी मनुष्य हैं, चाहे वह पापियों की पीढ़ी से हों, स्त्रियां हों, खेती या व्यापार करने वाले वैश्य हों, अथवा शुद्रा हो । निःसंदेह यह सभी (स्वर्ग की) सबसे श्रेष्ठ लक्ष को पाएंगे।

भगवद गीता - श्लोक 9.33 View

फिर ब्राह्मण, पवित्र मनुष्य, प्रार्थना करने वाले, और राज करने वाले ऋषियों का कहना। इसलिए अस्थायी और दुःखों से भरे इस संसार को प्राप्त करके क्या करोगे? हमेशा की सफलता के लिए मेरी प्रार्थना में लग जाओ।

भगवद गीता - श्लोक 9.34 View

मुझे अपने मन में रखो। मेरे भक्त बन जाओ । मेरी प्रार्थना करो। मुझे नमस्कार (सजदा) करो। अपने आपको मेरी प्रार्थना में व्यस्त रखो। नि:संदेह, इस तरह मेरे सहारे तुम मुझे पा लोगे।