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अध्याय 10 - ज्ञान विज्ञान योग


INTRODUCTION :


● इस अध्याय का सातवां श्लोक इस प्रकार है जो (व्यक्ति) इन सब मेरी महानता की निशानियों में चिंतन करता है वह मुझे जान लेता है। वह व्यक्ति सत्य (को भी) पहचान लेता है। फिर मेरी प्रार्थना में लग जाता है। इस बात में कोई संशय नहीं है।

ईश्वर की महानता को पहचानना और उसकी प्रार्थना में लग जाना यही इस ग्रंथ और इस अध्याय का उद्देश है।

SUMMARY OF SHLOKS :


● इस अध्याय में ईश्वर ने श्लोक नं. १०.१, १०.२, १०.३ में अपना परिचय दिया है।

● श्लोक नं. १०.४ १०.६ में ईश्वर ने उन गुणों का वर्णन किया है जो उसने मनुष्य में रखे हैं। ऐसे गुण कोई वैज्ञानिक किसी कम्प्युटर में नहीं रख सकता।

● श्लोक नं. १०.७-१०.८-१०.९ में ईश्वर में श्रद्धा के महत्त्व का वर्णन है।

● श्लोक नं. १०.१० और १०.११ में ईश्वर ने कहा जो ईश्वर में श्रद्धा रखने का प्रयास करते हैं उन्हें ईश्वर बुद्धियोगम् देता है। इसे मुस्लिम इमान कहते हैं।

● जैसे कोई पत्र लिखते समय पहले डीयर सर या प्रिय महोदय लिखते हैं फिर अपनी आवश्यकता का वर्णन करते हैं। इसी प्रकार अर्जुन ने तीन श्लोकों में (१०.१२/१०.१३/१०.१४) ईश्वर की प्रशंसा की फिर तीन श्लोकों में (१०.१६/१०.१७/१०.१८) में ईश्वर की महान रचनाओं को देखने की इच्छा प्रकट की।

● श्लोक नं. १०.१९ से १०.४० तक ईश्वर की महान रचनाओं का वर्णन है। इन श्लोकों में विष्णु, श्री कृष्ण, अर्जुन और महाऋषी वेद व्यास जी को भी ईश्वर की महान रचना कहा गया है।

● अन्त में ईश्वर ने कहा कि इतनी सारी रचनाओं में चिन्तन करने से अच्छा है कि तुम मेरे तेज के अंश को समझो, जिससे यह सारा ब्रह्माण्ड जीवित है।

(नोट जैसे सोलर घड़ी सूर्य के प्रकाश से चलती है। इसी प्रकार प्राणियों में जो प्राण है और जो अन्तरात्मा है वह ईश्वर के तेज से है।)

SHLOKS :

भगवद गीता - श्लोक 10.1 View

हे महान भुजाओं वाले अर्जुन! दोबारा सुनो मेरे सबसे श्रेष्ठ और दिव्य वचन (शिक्षा) को, जो मैं तुम्हारी हित की कामना से कहूँगा । निःसंदेह तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो।

भगवद गीता - श्लोक 10.2 View

न मुझे जानते हैं देवता (और) न मेरे अस्तित्व को (जानते हैं) महर्षि। नि:संदेह मैं सबसे पहले से हूँ ( इस कारण) सारे देवताओं को और महाऋषियों को जानता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.3 View

जो मुझे अजन्मा अनादि (आरंभ के बिना) और ब्रह्माण्ड का महान ईश्वर मानता है वह मूर्ख नहीं है। मृत्यु के बाद वह सब पापों से भी मुक्त हो जाएगा।

भगवद गीता - श्लोक 10.4 View

बुद्धिः ज्ञान का उपयोग करना, मोहित न होना, क्षमा करना, सत्य मार्ग पर चलना, अपने आपको वश (नियंत्रण) में रखना, तथा सुख, में दुःख, जन्म, मृत्यु, भय, (साहस) अभय में एक समान रहना, और अहिंसा, न्याय का पालन करना, संतुष्ट रहना, तप करना, दान देना, यश: और अपयश में संयम बरतना, निःसंदेह यह अनेक प्रकार के भाव (भावनाएँ) हैं, जो मैंने रचना की है। (यह सब भावनाएं ईश्वर की महानता को सिद्ध करती है। वैज्ञानिक सुपर कम्प्युटर का निर्माण कर सकते हैं। किन्तु यह सब भावना वह किसी रोबोट में नहीं डाल सकते हैं। वह ईश्वर ही है जो मिट्टी के शरीर में यह सब भावनाएं रच देता है।)

भगवद गीता - श्लोक 10.5 View

बुद्धिः ज्ञान का उपयोग करना, मोहित न होना, क्षमा करना, सत्य मार्ग पर चलना, अपने आपको वश (नियंत्रण) में रखना, तथा सुख, में दुःख, जन्म, मृत्यु, भय, (साहस) अभय में एक समान रहना, और अहिंसा, न्याय का पालन करना, संतुष्ट रहना, तप करना, दान देना, यश: और अपयश में संयम बरतना, निःसंदेह यह अनेक प्रकार के भाव (भावनाएँ) हैं, जो मैंने रचना की है। (यह सब भावनाएं ईश्वर की महानता को सिद्ध करती है। वैज्ञानिक सुपर कम्प्युटर का निर्माण कर सकते हैं। किन्तु यह सब भावना वह किसी रोबोट में नहीं डाल सकते हैं। वह ईश्वर ही है जो मिट्टी के शरीर में यह सब भावनाएं रच देता है।)

भगवद गीता - श्लोक 10.6 View

प्राचीन काल के सात बड़े ऋषि और मनु की पीढ़ी (सन्तानों) से भेजे जाने वाले चौदह ऋषि विचार करते हुए मेरी इच्छा पर चलने वाले थे। इस संसार में यह सारी मानवजाति सबसे पहले निर्माण किये जाने वाले मनुष्य से और इन ऋषियों की पीढ़ी से ही पैदा हुए हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.7 View

जो (व्यक्ति) इन सब (मेरी) महानता की निशानी में चिंतन करता है। वह मुझे जान लेता है । वह व्यक्ति सत्य को भी पहचान लेता है फिर मेरी प्रार्थना में लग जाता है। इस बात में कोई संशय नहीं है। “(ईश्वर की महानता की निशानी मनुष्य में बीस प्रकार की भावनाएँ हैं। और मनुष्य का मनुष्य को जन्म देना है। जिनका वर्णन पिछले दो श्लोकों में हुआ है।)"

भगवद गीता - श्लोक 10.8 View

मैं संपूर्ण (प्राणियों का) रचयिता (निर्माता) हूँ। संपूर्ण (प्राणी) मेरे द्वारा ही जीवित है। बुद्धीमान व्यक्ति (जो) मुझे इस प्रकार मानता है, वह पूरे ध्यान के साथ मेरी प्रार्थना करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.9 View

वह जो हमेशा मुझे अपने मन में रखते हैं। और मुझे अपने जीवन का लक्ष्य बनाते हैं। और धार्मिक ज्ञान ग्रहण ( प्राप्त करके) वह एक दूसरे से मेरी महानता का कथन करते हैं। ऐसे लोग सदैव सन्तुष्ट और दिव्य आनंद अनुभव करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.10 View

उन मुनि / पवित्र व्यक्तियों को जो प्रेमपूर्वक सदैव मेरी प्रार्थना में लगे हुए हैं। उनको मैं मुझसे जुड़ी रहने वाली बुद्धि देता हूँ, जिससे वह मुझे पा लेते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.11 View

नि:संदेह, उन पवित्र व्यक्तियों पर अपना विशेष कृपा करने के लिए मैं उनके हृदय के अन्दर ज्ञान का दीपन स्थापित कर देता हूँ। जिसके प्रकाश में जो अंधकार अज्ञानता के कारण हृदय में जन्म लेते हैं वह नष्ट हो जाते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.12 View

अर्जुन ने, (श्री कृष्ण जी के माध्यम से ईश्वर से कहा) हे प्रभु, आप महान ईश्वर हो । सबसे श्रेष्ठ शरण देने वाले हो । दोष रहित (पवित्र) हो। आपका व्यक्तित्व सदैव रहने वाला है। आपका अस्तित्व देवताओं के अस्तित्व से भी प्राचीन है। आप जन्म नहीं लेते हो। आप हर जगह हो। (सर्व व्यापक हो)।

भगवद गीता - श्लोक 10.13 View

(हे ईश्वर) आपको सभी ऋषि, देव ऋषि नारद मुनि, और असित, देवल, अर्थात महा ऋषि वेद व्यास जी (भी) आपको (इन्हीं गुणों वाला) कहते हैं। और नि:संदेह, आप स्वयं भी अपने बारे में मुझे यही कहते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.14 View

जो कुछ भी श्री कृष्ण जी मुझे आपके बारे में कह रहे हैं उन सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे ईश्वर न देवता और न ही दानव आपकी व्यक्तित्व को समझ सकते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.15 View

नि:संदेह! हे ईश्वर आप ही अपने आपको स्वयम ही सबसे अच्छी तरह जानते हैं। हे ईश्वर! आप महान व्यक्तित्व वाले हैं। सारे प्राणियों के ईश्वर हैं। देवताओं के ईश्वर हैं। ब्रह्माण्ड के शासक हैं।

भगवद गीता - श्लोक 10.16 View

हे ईश्वर, कृपा करके विस्तार से वर्णन कीजिए आपकी उन दिव्य रचनाओं का जिन्हें आपने निर्माण करके इस ब्रह्माण्ड में फैला दिया है, और स्थापित किया है।

भगवद गीता - श्लोक 10.17 View

हे ईश्वर मैं (आपके) किन-किन रचनाओं के बारे में विचार करूँ? किस तरह से मैं विचार करते हुए आपसे सदा जुड़ा रहने को जान सकता हूँ?

भगवद गीता - श्लोक 10.18 View

हे ईश्वर! फिर से कहिये विस्तार से आप की दिव्य रचनाओं को और आपसे जोड़ने वाली प्रार्थना को। नि:संदेह मैं कभी तृप्त नहीं होता (आपकी बातें) सुनने (से)। (जो कि मेरे लिए) अमृत के समान हैं। (अध्याय ७ में ईश्वर की कुछ रचनाओं का वर्णन था। अर्जुन और जानना चाहते हैं।)

भगवद गीता - श्लोक 10.19 View

ईश्वर ने कहा, हे कौरवों में श्रेष्ठ (अर्जुन), मेरे रचना के वर्णन की कोई सीमा नहीं है। हाँ फिर भी तुम्हें, नि:संदेह जो मेरी विशेष, दिव्य और अति उत्तम रचनाऐं हैं, उनके विषय में कुछ कहूँगा।

भगवद गीता - श्लोक 10.20 View

हे अर्जुन! सारे मनुष्यों के हृदय में स्थित रहने वाली आत्मा मैं हूँ। और निःसंदेह मनुष्यों का आरम्भ (जन्म) और बीच जीवन और अन्त करने वाला मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.21 View

आरम्भ में जन्म लेने वालो में) विष्णु मैं हूँ। प्रकाश देने वाली वस्तुओं में किरणों वाला सूर्य (मैं हूँ)। रेगिस्तान में मृगतृष्णा (मैं) हूँ। तारों में चंद्रमा मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.22 View

वेदों में सामवेद हूँ। देवताओं (फरिश्तों) में वासव हूँ। इच्छाओं में मन हूँ और मनुष्यों की बुद्धि हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.23 View

रुद्रा में शंकर हूँ। हर तरह के जल में पवित्र करने वाला जल हूँ। और देवताओं के रक्षक यक्ष का रक्षक मैं हूँ। और सारे पर्वतों में मेरु मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.24 View

हे पार्थ (अर्जुन)! पुरोहितों में सबसे मुख्य बृहस्पति मुझको ही समझो। सेनापतियों में मैं कार्तिकेय हूँ और जलाशयों में समुद्र हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.25 View

बड़े और महान ऋषियों में भृगु मैं हूँ। शब्दों में एक ईश्वर के नाम को बताने वाले शब्द (अ-उ म अर्थात ओम) हूँ। सारे भलाई के कर्मों में धीमी आवाज में या मन में वेदों को याद करना (पढ़ना) हूँ। जड़ पदार्थों में हिमालय हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.26 View

सारे वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ। देव-ऋषियों में नारद मुनि हूँ। और गन्धर्व में चित्ररथ हूँ। सिद्धि प्राप्त करने वाले मुनियों में कपिल हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.27 View

स्वर्ग में निर्माण किया गया घोडों में सबसे श्रेष्ठ धन और सम्मान के तौर पर मिलने वाला घोड़ा मुझे जानो। हाथियों में ऐरावत हूँ और मनुष्यों में राजा और शासक हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.28 View

हथियारों में वज्र में हूँ। गायों में कामधेनू गाय हूँ। संतान के जन्म के कार्य में लगाए गए देवताओं में कामदेव हूँ। और साँपों में वासूकि: हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.29 View

नागों में अनन्त हूँ और जल के कार्यों में लगाए गए देवताओं में वरुण, मैं हूँ। और पितरों में अर्यमा हूँ। नियमों का पालन कराने वाले देवताओं में मौत का देवता (यम) मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.30 View

देवताओं में शान्ति, सुख और आनंद देने वाला देवता प्रहलाद हूँ और गणना और हिसाब रखने वालों में काल, मैं हूँ। और पशुओं में सिंह मैं हूँ, और पक्षियों में गरुड़ हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.31 View

पवित्र करनेवालों में वायु हूँ। हथियार चलाने वालों में, “राम, मैं हूँ।” मछलियों में मगर हूँ और नदियों में गंगा नदी हूँ।”

भगवद गीता - श्लोक 10.32 View

हे अर्जुन! "सारी निर्मित वस्तुओं का आरम्भ और अन्त मैं हूँ। “नि:संदेह, सारे ज्ञानों में, मैं आध्यात्मिक ज्ञान हूँ।” सारे विवादों का सही निर्णय, मैं हूँ।”

भगवद गीता - श्लोक 10.33 View

हे अर्जुन! सारे शब्दों में 'अ' का पहला शब्द हूँ। शब्दों के जोड़ में द्वन्द्व समास, 'मैं हूँ।' और निःसंदेह सदैव स्थित रहने वाला काल मैं हूँ। पालने वाला (ईश्वर मैं हूँ।) ब्रह्माण्ड में सब ओर अपना मुख रखने वाला, 'मैं हूँ।'

भगवद गीता - श्लोक 10.34 View

सारे मनुष्यों को मौत की ओर ले जाने वाला और भविष्य में प्रलय के दिन (दुबारा) जीवित करने वाला मैं हूँ और स्त्रियों से प्राप्त होने वाला यश, आनंद व सुख और उनकी बातचीत, (मैं हूँ।) स्मरणशक्ति, बुद्धि, धैर्य और क्षमा भी मैं हूँ ।

भगवद गीता - श्लोक 10.35 View

सामवेद के गीतों में बृहतसाम और सारे छन्दों में गायत्री मंत्र मैं हूँ। महीनों में, मौसमों में मार्गशीष हूँ, बसन्त का मौसम मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.36 View

धोखा देने वालों की चाल मैं प्रकाश देने वालों का प्रकाश मैं हूँ। दृढ़ श्रद्धा वालों के मनपर विजय मैं हूँ। भलाई करने वालों और सच्चे लोगों की भलाई और सच्चाई मैं हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.37 View

वृष्णी की पीढ़ी में वासुदेव अर्थात कृष्ण हूँ। पाण्डवों में अर्जुन हूँ। मुनि लोगों में व्यास भी मैं हूँ। कवियों में उशना कवि हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 10.38 View

अपराध रोकने के समस्त साधनों में दण्ड हूँ। विजय की आकांक्षा करने वालों की नीति हूँ और नि:संदेह रहस्यों में चुप्पी हूँ। ज्ञानियों का ज्ञान मैं हूँ ।

भगवद गीता - श्लोक 10.39 View

अर्जुन सारी निर्मित वस्तुओं का जो भी बीज है वह मैं हूँ। सारी बातों का तात्पर्य यह है कि बेजान और जानदार जो भी निर्मित वस्तु है वह मेरे बिना निर्माण नहीं हो सकती है।

भगवद गीता - श्लोक 10.40 View

हे अर्जुन! मेरी दिव्य रचनाओं का कोई अन्त नहीं है। मैंने तुम्हारे सामने जो अपनी दिव्य रचनाओं का विस्तार से वर्णन किया है यह तो केवल संक्षेप में उदाहरण है।

भगवद गीता - श्लोक 10.41 View

संसार में जो जो दिव्य रचनाऐं या समृद्धि, ऊर्जा (या ज्ञान) या सुख शान्ति (और) मानवता सच्चाई मानी जाती है। नि:संदेह उन सबको तुम मेरे तेज के अंश से उत्पन्न हुई है ऐसा समझो।

भगवद गीता - श्लोक 10.42 View

किन्तु हे अर्जुन! तुम्हें इस प्रकार बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है? मैंने इस सम्पूर्ण जगत को अपने केवल एक तेज के अंश से स्थित और फैला रखा है।