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अध्याय 16 - दैवासुर संपद विभाग योग


INTRODUCTION :


● इस दिव्य ग्रंथ में ईश्वर ने मनुष्य को स्वर्ग प्राप्त करने की सारी बातें समझाई। किन्तु इस संसार में सदैव ऐसे होशियार (Smart) लोग रहे हैं जो हमेशा स्वयं को परिपूर्ण ही समझते हैं और वह सोचते हैं कि हम तो कोई बड़ा पाप नहीं करते हैं। यह धार्मिक बातें तो पापियों के लिए हैं।

● ईश्वर एक माँ से अधिक दयालु है। अपने अतिविश्वास (over-confidence) के कारण कोई व्यक्ति नरक में न चला जाए, इसलिए ईश्वर ने अब यह एकदम सरल (चेकलिस्ट) जांच सूची भी मनुष्य को दे दी, कि कम से कम इसको पढ़ो और इसके अनुसार अपने आपको जांच लो और यदि एक भी असुरी गुण हो तो सुधार लो। कारण कि जिसमें एक भी असुरी गुण होंगे वह नरक में ही जाएगा।

SUMMARY OF SHLOKS :


● श्लोक नं. १६.१ १६.३ तक ऐसे गुणों का वर्णन है जिनसे स्वर्ग प्राप्त होती है।

● श्लोक नं. १६.४ से १६.२० तक ऐसे गुणों का वर्णन है जिसके कारण मनुष्य नरक में जाएगा।

●श्लोक नं. १६.२१ १६.२७ में काम, क्रोध और लोभ से बचने के लिए कहा है, क्योंकि यह भी नरक के द्वार हैं। इनका अध्याय में वर्णन करने का कारण यह है कि कड़ी मेहनत से यदि • कोई अपने स्वभाव को तमस से सात्विक भी कर ले तब भी यह तीन भावनाएं उसमें स्वाभाविक तौर से हमेशा रहेंगी। सात्विक स्वभाव होने से काम, क्रोध और लोभ की भावना समाप्त नहीं हो जाएगी। इस कारण उन पर विशेष रूप से ध्यान देना होता है।

SHLOKS :

भगवद गीता - श्लोक 16.1 View

ईश्वर ने कहा, (कि उसके आदेश का पालन करने से जो अच्छे व्यवहार मनुष्य होते हैं वह यह है।) में उत्पन्न निडर होना, शरीर और आत्मा की शुद्धि, पवित्र, स्वच्छ होना। ज्ञान के प्रकाश में ईश्वर से निकट होना (ईश्वर के सम्पर्क में रहना) ईश्वर की प्रार्थना में दृढता से स्थित रहना । दान देना । इच्छाओं को वश में रखना और अनिवार्य कर्तव्यों को पूरा करना और वेदों का अध्ययन करना । तप करना, सरल जीवनशैली अपनाना।

भगवद गीता - श्लोक 16.2 View

हिंसा को त्याग देना, सदैव सत्य बोलना, क्रोध न करना, शानदार जीवन त्याग देना, अपने जीवन में और समाज में शान्ति के लिए प्रयास करना, चुगली न करना, (किसी की निंदा न करना) सारे प्राणियों पर दया करना, लोभ, लालच से दूर रहना, नरम स्वभाव का बनना, बुरे काम करने में शर्म महसूस करना (शील ग्रहण करना), वचन (प्रतिज्ञा) को पूरा करना।

भगवद गीता - श्लोक 16.3 View

स्वास्थ का अच्छा होना ( शक्तिशाली होना )। दुसरों को क्षमा करना, अपने लक्ष्य पर दृढ़ता से स्थित रहना, स्वच्छ रहना, न द्वेष न शत्रुता रखना, दूसरों से आदर की अपेक्षा न रखना । हे अर्जुन, यह सब गुण ईश्वर के आदेश का पालन करने से मनुष्य को प्राप्त होते हैं, या उनमें उत्पन्न होते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 16.4 View

(ईश्वर ने कहा की,) हे अर्जुन! नि:संदेह यह गुण आसुर (शैतान के प्रभाव से) उत्पन्न होते हैं। धोखा देना (छल करना), अंहकार का होना, घंमड का होना, क्रोध करना, और कठोरता रखना, और ज्ञान और विवेक का न होना।

भगवद गीता - श्लोक 16.5 View

(ईश्वर ने कहा) यह मेरा निर्णय है कि दिव्य गुण ईश्वर की क्षमा की तरफ ले जाते हैं। आसुरी गुण ईश्वर की पकड़ की तरफ ले जाते हैं। (किन्तु) हे अर्जुन (तुम) चिंता मत करो (कारण कि तुमने) दिव्य गुणों के साथ जन्म लिया है ।

भगवद गीता - श्लोक 16.6 View

नि:संदेह, इस पृथ्वी लोक में मनुष्य के अंदर दो प्रकार के गुण होते हैं। दिव्य गुण और आसुरी (शैतानी) गुण | दिव्य गुणों को हे अर्जुन (तुम्हें) विस्तार से बता दिया गया। (अब) आसुरी (शैतानी) गुणों के बारे में मुझसे सुनो।

भगवद गीता - श्लोक 16.7 View

आसुरी गुणों वाले लोग (यह) नहीं जानते कि उचित व्यवहार (क्या है) और अनुचित व्यवहार (क्या है)? और मन और शरीर की स्वच्छता को भी नहीं जानते। और उनके अच्छ चरित्र भी नहीं होते और न उनमें सच्चाई होती है।

भगवद गीता - श्लोक 16.8 View

वह कहते हैं, इस जगत (का) निर्माण बिना किसी उद्देश्य के हुआ है। यह असत्य है (इसकी कोई हकीकत नहीं ) । न इसकी कोई बुनियाद है। (और) न ईश्वर का अस्तित्व है। और जीवन का उद्देश्य यौन संतुष्टि (Sexual gratification) के अतिरिक्त और क्या है ?

भगवद गीता - श्लोक 16.9 View

यह मूर्ख लोग ऐसा विनाशकारी दृष्टिकोण स्वयम अपनाते हैं, और एक शत्रु की तरह यह उठ खड़े होते हैं और ऐसे क्रूरता वाले काम करते हैं जो जगत का विनाश कर दे।

भगवद गीता - श्लोक 16.10 View

कभी पूरी न होने वाली इच्छाओं के सहारे, छल और घमंड में डूबे हुए, अशुद्ध (नापाक) संकल्प को अपनाते हुए, अस्थायी और सांसारिक मामलों में यह उन्नति करते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 16.11 View

(असुरी गुणों वाले लोग) इच्छाओं को पूरा करना (यही) (जीवन का) सबसे बड़ा (उद्देश्य) अपनाते हैं। “अभी तो मेरे पास केवल इतना ही है" ( मुझे और बहुत कुछ प्राप्त करना है) (इस तरह का उनका) मज़बूत (दृष्टिकोण होता है), और (फिर) जीवन के अंत तक अनंत चिन्ताओं में घिरे रहते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 16.12 View

(असुरी गुणों के लोग) सैकडों आशाओं के जाल में फंसे रहते हैं। उनके मन पर सदैव इच्छाएं और क्रोध सवार रहते हैं।(वह) अवैध तरीके से धन-सम्पत्ति जमा करने में और मनचाही वस्तुओं से आनंद लेने के प्रयास में लगे रहते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 16.13 View

(असुरी गुणों वाले लोगों का दृष्टिकोण यह होता हैं कि) आज यह जो कुछ भी मुझे प्राप्त है वह मेरे कारण है। मेरे इस बुद्धिमान मस्तिष्क और प्रयास से है। यह जो कुछ है वह मेरा है। भविष्य में भी यह धन और अधिक होगा।

भगवद गीता - श्लोक 16.14 View

(असुरी गुणों के लोग सोचते हैं कि:) वह शत्रु मेरे द्वारा ही मारा गया है और दूसरों को भी मैं ही मारूंगा। मैं सबसे बड़ा हूँ। सबसे अधिक मौज-मस्ती करने वाला हूँ। मैं हर प्रकार से परिपूर्ण हूँ। मैं शक्तिशाली हूँ (और) सुखी हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 16.15 View

अज्ञानता के कारण, गुमराह होकर (वह) इस तरह विचार करता है कि, मैं धनवान सम्बन्धियों से घिरा हूँ। मेरे द्वारा ही बड़े-बड़े ईश्वर की प्रसन्नता वाले कार्य किये जाते हैं। में बहुत अधिक दान देने वाला हूँ। मैं मौजमस्ती करने वाला है? अब बताओ कि मेरे समान दूसरा कौन है?

भगवद गीता - श्लोक 16.16 View

अनेक चिंताओं और उलझनों (और) भ्रम के जाल में फंसे हुए, मन की इच्छाओं को पूरा करने के आदि (addicted), मरने के बाद गंदे नर्क में उतर जाते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 16.17 View

(असुरी गुणों के लोग) अपने गलत श्रद्धाओं को सही समझते हैं। इनकी प्रार्थनाएं, धन और सम्मान का दिखावा, घमंड, बेशर्म ढ़िठाई से भरी होती है। यह लोग नाम और दिखावे के लिए प्रार्थनाओं का आयोजन करते हैं। वह भी धार्मिक नियमों का पालन न करते हुए।

भगवद गीता - श्लोक 16.18 View

(ईश्वर ने कहा की) घमंड, शक्ति, गर्व, काम भावना, और क्रोध में डुबे हुए यह लोग, मैं जो आत्मा और शरीर से परे हूँ मुझसे शत्रुता रखता है. और आलोचना करता है।

भगवद गीता - श्लोक 16.19 View

मैं (इन) घिनौने, निर्दयी, और मनुष्यों में सबसे नीच लोगों को सदा के लिए गंदे संसार (नर्क में) (जहाँ) असुरों के वंश रखे जाते हैं उसमें फेंक देता

भगवद गीता - श्लोक 16.20 View

यह मूर्ख लोग असुरों के वंश में हर मृत्यु के बाद जीवन पाते हैं और नर्क के सबसे निचले भाग तक चले जाते है। इस तरह नि:संदेह, हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! यह मुझे कभी प्राप्त नहीं कर पाते।

भगवद गीता - श्लोक 16.21 View

तीन भावनाएं भी मनुष्य के लिए विनाश का कारण है (वह है) अपनी इच्छाओं को पूरा करना, लालच और क्रोध। यह तीनों भावनाएं भी नर्क के द्वार हैं। इस कारण इन तीनों भावनाओं को भी त्याग देना चाहिए।

भगवद गीता - श्लोक 16.22 View

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! जो मनुष्य इन तीनों भावनाओं से मुक्ति पा लेता है, जो की अज्ञानता के द्वार हैं, और अपने आचरण को ऊपर उठाता है, वह ईश्वर की शरण प्राप्त कर लेता है। इस तरह वह सबसे महान लक्ष्य अर्थात स्वर्ग प्राप्त कर लेता है।

भगवद गीता - श्लोक 16.23 View

जो व्यक्ति (केवल) अपनी इच्छाओं को पूरा करने का काम करता है। धार्मिक नियमों को छोड़ देता है, वह न प्रार्थनाओं में परिपूर्णता (Perfection) प्राप्त कर पाता है और न जीवन में सुख पाता है और न सबसे श्रेष्ठ जीवन का लक्ष्य अर्थात स्वर्ग प्राप्त कर पाता है।

भगवद गीता - श्लोक 16.24 View

इस कारण तुम्हारे कर्तव्य क्या है? और क्या कार्य आपको नहीं करना है, इसका निर्णय करने के लिए धार्मिक ज्ञान ही तुम्हारा प्रमाण होना चाहिए। इस कारण शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करो, धर्म के नियमों को समझो, ईश्वर के आदेशों को जानो, और इस संसार में इन्हीं के अनुसार अपने कर्तव्य को पूरा करो।