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N-2.2.4 कम्प्युटर के उदाहरण से आत्मा को समझने का प्रयास करते है।

कम्प्युटर के अंग इस प्रकार हैं

१. कम्प्युटर की बॉडी (Computer body)
२. बिजली की सप्लाई ( Electric supply)
३. सी.पी.यु (CPU)
४. हार्ड डिस्क (Hard disk) ५. अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application software)

१. कम्प्युटर की बॉडी के समान हमारा शरीर है।
२. बिजली की सप्लाई यह हमारे प्राण है। (जो
हमें सीधे ईश्वर से मिलते है)
३. सी. पी. यु यह हमारी रुह है। (यह भी हमें
ईश्वर से मिलते है )
४. हार्ड डिस्क यह हमारी आत्मा है।
५. अॅप्लिकेशन सॉफ्टवेयर यह हमारी बुद्धि योगम है।

• जैसे जब बिजली की सप्लाई होगी तो कम्प्युटर काम करेगा, इसी प्रकार ईश्वर के तेज के एक अंश से हम और सारा ब्रह्माण्ड जीवित है और हमारे शरीर में प्राण है।

• CPU या Central processing unit, इसी अंग से कम्प्युटर में सोच विचार करने के योग्य होता है। इसे कम्प्युटर इस्तेमाल करने वाला बदल नहीं सकता है। एक मॉडेल के सारे कम्प्युटर में एक समान CPU होते हैं।

• हमारी रुह यह CPU के समान है, होमोसेपीयन और मनुष्य में इसी रुह का अंतर था। यह ईश्वर के तरफ से है। सदैव पवित्र रहती है। प्राण और रुह सभी मनुष्य में एक समान है। हम में विवेक इसी रुह के कारण है। और यही हमारी अंतरात्मा है।

• हमारी आत्मा कम्प्युटर के हार्ड डिस्क के समान है। जिस कम्पनी से आप कम्प्युटर लेंगे वह इस हार्ड डिस्क में बहुत सारे, अलग अलग काम के लिए सॉफ्टवेयर लोड करके हैं।

• उसी प्रकार ईश्वर हमारी इस आत्मा में सत्वगुण, रजो गुण, तमो गुण, काम भावना, लोभ, क्रोध, इत्यादि सॉफ्टवेयर लोड करके मनुष्य को जन्म देते हैं।

• जैसे हार्ड डिस्क में कभी भी सॉफ्टवेयर बदला जा सकता है। इसी प्रकार हम अपने स्वभाव को भी तमो गुण से रजो या सत्वगुण कर सकते हैं।

• कम्प्युटर पर आप जो भी काम करते हैं आपका सारा डाटा हार्ड डिस्क में जमा रहता है। किसी कारण हार्ड डिस्क निकाल कर आप सारा कम्प्युटर नष्ट कर दे। और फिर दुसरे कम्प्युटर में हार्ड डिस्क लगा दें तो आपको आपका सारा डाटा मिल जाएगा। और आपका नया कम्प्युटर भी पुराने की तरह हो जाएगा तो कम्प्युटर में आपके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु उसकी हार्ड डिस्क है।

इसी प्रकार आपकी आत्मा है। इसी में आपके सारे कर्म और गुण हैं। आप यही आत्मा है। मृत्यु के समय ईश्वर इसे निकाल लेगा। और प्रलय के समय शरीर उत्पन्न करके फिर शरीर में डालेगा तो आप फिर पहले जैसे हो जाओगे।

• ईश्वर ने इसी आत्मा में छह प्रकार की इच्छा रखी है। तो जब आप कहते हैं कि मेरा मन चाहता है तो वह चाह इसी आत्मा की होती है। इसलिए हम इस आत्मा को self, मन, हृदय इत्यादी भी कहते हैं।

• अपनी आत्मा को तप से पवित्र भी किया जा सकता है, और पाप से दोषी भी किया जा सकता है।