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N-2.2.5 आत्मा का परीचय

भगवद् गीता में आत्मा का परिचय निम्नलिखीत श्लोक में है।

• अर्जुन उवाच,

किम तत् ब्रह्म किम अध्यात्मम् किम कर्म पुरुष उत्तम|
अधि-भूतम् च किम् प्रोक्तम् अधि-दैवम् किम् उच्यते ।।८.१।।


(अर्जुन उवाच) अर्जुन ने कहा (तत) वह (ब्रह्म) ईश्वर (किम) कौन है (अध्यात्मम) आत्मा (किम) क्या है (पुरुष उत्तम) पुरुष उत्तम (ईश्वर के) (कर्म) काम (किम) क्या है (च) और (अधि-भूतम्) सभी प्राणियों का ईश्वर (किम) किसे (प्रोक्तम्) कहते हैं। (अधि-दैवम्) देवताओं का ईश्वर (किम) किसे (उच्यते) कहते हैं।
अर्जुन ने कहा, वह ईश्वर कौन है ? आत्मा क्या है? पुरुष उत्तम (ईश्वर के) काम क्या हैं? और सभी प्राणियों का ईश्वर किसे कहते है? देवताओं का ईश्वर किसे कहते हैं?


ईश्वर ने अर्जुन के प्रश्न का उत्तर इस तरह दिया।

श्री भगवान उवाच, अक्षरम् ब्रह्म परमम् स्वभाव: अध्यात्मम् उच्यते ।
भूत-भाव- उद्भव कर: विसर्गः कर्म संज्ञितः ।।८.३।।


(श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा, (परमम्) महान (अक्षरम्) अविनाशी ईश्वर (ॐ) को (ब्रह्म) ब्रह्म (उच्यते) कहते है । (स्वभाव) मनुष्य का अपना जो स्वभाव (व्यक्तीत्व) है उसे (अध्यात्मम) आत्मा कहते है। (भूत) प्राणियों के (भाव) स्वभाव की (उदभव) रचना करना और (कर:) (उन्हें उनके प्राकृतिक जीवन के) कर्म (उनको) (विसर्ग) प्रदान करना (कर्म) (इसे ईश्वर का) कर्म (संज्ञितः) कहा जाता है।

ईश्वर ने कहा, महान अविनाशी ईश्वर (ॐ) को ब्रह्म कहते हैं। मनुष्य का अपना जो स्वभाव (व्यक्तित्व) है उसे आत्मा कहते हैं। प्राणियों के स्वभाव की रचना करना और उन्हें उनके • प्राकृतिक जीवन के) कर्म (उनको) प्रदान करना (इसे ईश्वर के) कर्म कहा जाता है।