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N-2.2.9 आत्मा अमर है

भगवद् गीता के दो श्लोक इस प्रकार हैं।

• उत्तमः पुरुषः तु अन्य परम आत्मा इति उदाहृतः
शय: लोक त्रयम् आविश्य विभिर्ति अव्ययः ईश्वरः ।। १५.१७॥


(तु) किन्तु (उदाहृतः) (ईश्वर) कह रहा है कि (इति) वह (ईश्वर) ईश्वर (खुद) (अन्य) दूसरों से (उत्तम:) महानतम (पुरुष) दिव्य व्यक्तित्व है। (आत्मा) (वह) आत्मा ( से भी) (परम) महानतम है (अव्ययः) वह अविनाशी है (लोक त्रयम्) तीन लोकों पर (आविश्य) छाया हुआ है (बिभिर्ति) और उनकी रक्षा करता है।

किन्तु (ईश्वर) कह रहा है कि वह ईश्वर (खुद) दूसरों से महानतम दिव्य व्यक्तित्व है। (वह) आत्मा ( से भी) महानतम है, वह अविनाशी है, तीनों लोकों पर छाया हुआ है और उनकी रक्षा करता है।

यस्मात् क्षरम् अतीतः अहम् अक्षरात् अपि च उत्तमः ।
पअत: अस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुष-उत्तमः ।।१५.१८।।


(यस्मात) कारण कि (अहम) मैं (क्षरम्) नाशवान (शरीर से) (अतीत) परे हूँ (च) और (अक्षरात) अविनाशी (आत्मा से) (अपि) भी (उत्तम) महानतम् हूँ (अत:) इसलिए (लोके) इस संसार में (च) और (वेद) वेदों में (उत्तम पुरुष) महानतम दिव्य व्यक्तित्व पुरुषोत्तम (प्रथितः) के (नाम से) प्रसिद्ध हूँ।

कारण कि मैं नाशवान (शरीर से) परे हूँ, और अविनाशी (आत्मा से) भी महानतम् हूँ इसलिए इस संसार में और वेदों में महानतम दिव्य व्यक्तित्व पुरुषोत्तम के (नाम से) प्रसिद्ध हूँ।

• पवित्र कुरआन कि एक आयत इस प्रकार है। "प्रत्येक आत्मा को मृत्यु का स्वाद चखना है। फिर तुम हमारी ओर वापस लौटोगे।” (सूरे अल अनकबूत- २९, आयत ५७ )

इन श्लोक और आयत से हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि आत्मा अमर है किन्तु शरीर को त्यागते समय उसे मृत्यु का अनुभव करना होगा। आत्मा का अंत नहीं होगा केवल वह धरती से पितरलोक की ओर प्रस्थान करेगी।