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N-2.2.10 आत्मा को पवित्र कैसे करें?

श्लोक नं. १७.३ में कहा गया है की,

सत्व- अनुरुपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धा मय: अयम् पुरुष: य: यत् श्रद्धः सः एव सः ।।१७.३।।


हे भारत (अर्जुन)! सारे लोगों में (एक ईश्वर में ) श्रद्धा सत्वगुण की तरह ही ( जन्म से ही मनुष्य के अंदर) होता है। उसके बाद) जो मनुष्य जिस प्रकार के श्रद्धा (के साथ) इस संसार में (जीवन व्यतीत करता है) वह नि:संदेह उसी श्रद्धा (के साथ) होता है जब वह (मृत्यु पाता है ) ।

इस श्लोक के अनुसार बच्चा संसार में ईश्वर पर श्रद्धा के साथ जन्म लेता है किन्तु जैसा जीवन व्यतीत करता है वैसे ही उसका स्वभाव होता है।

किस प्रकार के जीवन व्यतीत करने पर मनुष्य में किस प्रकार के गुण उत्पन्न होते हैं उसका वर्णन निम्नलिखित है।

रजोगुण:- यदि परिवार की संस्कृति व्यवसायिक है। आधुनिक विश्व के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं जैसे कि,

१. अपना जीवन अपनी इच्छा अनुसार व्यतीत करो।
२. जीवन का भरपूर आनंद लो।
३. धन ही सब कुछ है।
४. अच्छी नींद लो, अच्छा भोजन करो, अच्छे
वस्त्र धारण करो।
५. संसार को छोड़कर अपनी चिंता करो। इत्यादी ।

यदि इस प्रकार की विचारधारा के साथ बच्चा बड़ा होगा तो उसमें रजो गुण होंगे।

सतोगुण:-

१. यदि परिवार की संस्कृति धार्मिक है।
२. सुबह जल्दी उठते हैं।
३. धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं।
४. बहुत सवेरे ईश्वर की प्रार्थना करते हैं।
५. कम सोते हैं, मध्यम भोजन करते हैं और कम बाते करते हैं।

यदि इस प्रकार के पारिवारिक संस्कृति के साथ बच्चा बड़ा होगा तो उसका स्वभाव सात्विक होगा।


तमोगुण:- यदि पारिवारीक संस्कृति के समय अपराधिक, सांप्रदायिक, भ्रष्ट मानसिकता वाली है तो बच्चे में भी तमो गुण ही होंगे।

• यदि किसी को इस बात का एहसास हो की उसमें रजो या तमो गुण है। तो बड़े परिश्रम से वह अपने आपमें सत्वगुण उत्पन्न कर सकते