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N-2.2.11 सतो गुण उत्पन्न करने के उपाय

आत्मा सदैव सुख से, आराम से, स्वतंत्र रहना चाहती है और निरंतर आनंद लेना चाहती है। यदि मनुष्य सदैव सुख से जीवन व्यतीत करे और आनंद का अनुभव करता रहे तो आत्मा में रजो या तमो गुण उत्पन्न होते हैं। जब हम अपने आत्मा को शरीर द्वारा कष्ट देते हैं और देते रहते हैं तो उसका स्वभाव बदलने लगता है। यदि कष्ट धार्मिक ज्ञान और शिक्षा के अनुसार हो तो आत्मा का स्वभाव धीरे धीरे सात्विक या अतीत हो जाता है।

आत्मा को शरीर द्वारा जिन कर्मों से कष्ट होता है वह निम्नलिखीत है;

१. बहुत सवेरे उठना
२. बहुत सवेरे ईश्वर की प्रार्थना करना।
३. उपवास रखना।
४. दान देना।
५. धार्मिक नियमों के अनुसार अपने शारीरिक अंगो को वश में रखना।
६. भोजन, निंद और व्यवहार को धार्मिक
नियमों के अनुसार और संतुलन में रखना ।

यदि यह काम हम मन और शरीर को कष्ट देकर करते रहे, तो हमारा स्वभाव सात्विक हो जाएगा।
• आत्मा को पवित्र करने के बारे में जो हमने कहा उसका संदर्भ इस प्रकार है।

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा,

" हे मुहम्मद रात को उठकर नमाज़ में खड़े रहा करो। सिवाय रात के थोडा हिस्सा। आधी रात या उससे कुछ थोड़ा कम कर लो या उससे कुछ अधिक बढ़ा लो। और कुरआन को भली भाँति ठहर-ठहरकर पढ़ों। निश्चय ही हम तुम पर एक भारी बात (जिम्मेदारी) डालने वाले हैं। नि:स्संदेह रात का उठना आत्मा को बहुत कष्ट देता है और उस समय प्रार्थना भी दुरुस्त होती है।" (सूरह अल-मुज्जम्मिल-७३, आयत- १ - ६, अनुवाद फतेह मोहम्मद)

• सभी धर्मों में बहुत सुबह को उठने का बहुत महत्त्व रहा है।

सनातन धर्म में भी सूर्योदय से १ घंटा ३६ मिनट पहले समय को ब्रह्म मुहुर्त कहते हैं। यह ईश्वर की प्रार्थना और सभी शुभ कर्मों के लिए सबसे उचित समय है और अपने आपमें सात्विक गुण उत्पन्न करने के लिए अनिवार्य है।

लगभग इसी समय को मुसलमान सुबह सादिक कहते हैं। रोज़े (उपवास) इसी समय से आरम्भ होता है। अहले हदीस समुदाय इस समय के १० मिनट बाद अजान देते हैं।

इसलिए जब पहली अज़ान हो तो हर व्यक्ति को उठकर ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए।

• साधारण मुसलमान को पांच समय की नमाज अनिवार्य है। उसमें से पहले नमाज का समय सुबह सादीक (ब्रह्म मुहुर्त) से सूर्योदय तक है। किन्तु पैगंबर मुहम्मद साहब (स.) पर छह समय की नमाज़ अनिवार्य थी। उनमें पहली नमाज का समय आधी रात से आरंभ होता था और (ब्रह्म मुहुर्त) सुबह सादिक तक था और दूसरी नमाज का समय सुबह सादिक सेसूर्योदय तक था।

सुबह सादिक (ब्रह्म मुहुर्त) से पहले जो नमाज होती है उसे तहज्जुद कहते हैं। इस नमाज के बिना कोई वली (ऋषी) नहीं हो सकता।

• हमारी आत्मा या हमारा मन, धन, सम्पत्ती को जमा करना चाहता है। जब हम दान देते हैं तो हमारी रजो और तमो गुण वाली आत्मा को कष्ट होता है। यदि हम कष्ट निरंतर देते रहे तो वह स्वयम् बदलने लगती है। सात्विक गुण वाली हो जाती है। इस कारण हमेशा दान देना चाहिए।

• हमारी आत्मा चाहती है कि हमेशा हमारा पेट अच्छे-अच्छे भोजन से भरा हो । जब हम उपवास रखते हैं, तो शरीर को कष्ट होता है यही कष्ट आत्मा को सात्विक बनाती है।

रोज़ा (उपवास) रखने का कारण पवित्र कुरआन में ईश्वर ने इस प्रकार कहा है।

“हे इमान लाने वालों! तुम पर रोज़ा फर्ज (अनिवार्य) किया गया, जिस तरह तुमसे पहले के लोगों पर फर्ज किया गया था, ताकि तुम अतीत गुण (मुत्तकी गुण) वाले बन जाओ।" (पवित्र कुरआन, सूरह अल बकराह २, आयत १८३)

(अतीत गुण सतो गुण से भी श्रेष्ठ है) इसका वर्णन अध्याय नं. १४ में है।

तो ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए, चाहे मन को अच्छा न लगे। और तप करना, अर्थात उपवास रखना चाहिए और दान देना चाहिए और ब्रह्म मुहूर्त के समय उठकर ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए। इससे हमारा स्वभाव सात्विक हो जाता है जो कि स्वर्ग पाने के लिए जरूरी है।