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N-3 बुद्धी योगम का परिचय

• Stephen Hawking स्टीफन हॉकींग एक महान वैज्ञानिक थे। आपने एक सुप्रसिद्ध पुस्तक “A brief History of time" लिखा है। जिसमें आप ने Big bang theory से लेकर Black hole तक सभी का विस्तार से वर्णन किया है।

आप लिखते हैं कि यह ब्रह्माण्ड एक परफेक्ट मशीन के समान स्थित है, और काम कर रहा है। इस ब्रह्माण्ड में सितारों की गति कुछ सेकंड भी कम या अधिक हो जाए तो पूरा ब्रह्माण्ड नष्ट हो जाएगा।

ऐसा परफेक्ट ब्रह्माण्ड एक महान ईश्वर ही निर्माण करके चला सकता है, इस सच्चाई को जानने के बावजूद स्टीफन हॉकींग नास्तिक थे।

• पैगंबर मुहम्मद साहब (स.) के पिता की मृत्यु आपके जन्म से पहले हो गई थी। आपको से आपके चाचा अबु तालीब ने पाला था। जब पैगंबर मुहम्मद साहब (स.) जवान हुए और अपने पैगंबरी की घोषणा की तो सारा मक्का शहर आपका दुश्मन हो गया। अबु तालीब अपने कबीले के सरदार थे और सदैव आपकी रक्षा करते थे। किन्तु जब भी पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) अपने चाचा को इस्लाम को स्वीकार करने का आमंत्रण देते, तो अबू तालिब कहते कि मैं जानता हूँ तू सच्चा है, तेरा धर्म सच्चा है, किन्तु मैं अपने पुरखों के धर्म का पालन ही करूंगा। और उसी धर्म पर उनका देहांत हो गया।

• ऐसा क्यों होता है कि एक महान वैज्ञानिक जो अच्छी तरह जानता है कि इतना परफेक्ट ब्रह्माण्ड एक ईश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं बना सकता। फिर भी वह ईश्वर का इन्कार करता है, और नास्तिक रहता है। और ऐसा क्यों होता है कि एक व्यक्ति जानता है कि यह सच्चा पैगंबर है इनका धर्म सच्चा है फिर भी वह उस धर्म को स्वीकार नहीं करता है।

• इस प्रश्न का उत्तर ईश्वर ने कुरआन में इस तरह दिया है।

“हे मुहम्मद तुम जिसे चाहो, (सत्य धर्म के ) मार्ग पर नहीं ला सकते हो, परन्तु ईश्वर जिसे चाहता है (सत्य धर्म के) मार्ग पर लाता है। और वह (ईश्वर) सत्य मार्ग पाने वालों को भली भाँति जानता है।” (पवित्र कुरआन, अल-कासस, सूरह २८, आयत ५६)

अर्थात सत्य धर्म का अनुसरण वही लोग करेंगे जिन्हें ईश्वर चाहेगा। और ईश्वर उन्हीं को अनुसरण की बुद्धि देता है जो मन से ईश्वर से डरते हैं और सत्य मार्ग पर चलना चाहते हैं। भगवद् गीता के दो श्लोक इस प्रकार हैं।

• श्री भगवान उवाच,
तेषाम् सतत - युक्तानाम् भजताम् प्रीति - पूर्वकम् ।
दामि बुद्धि-योगम् तम् येन माम् उपयान्ति ते ॥१०॥


“ईश्वर ने कहा, उन (मुनी / पवित्र व्यक्तियों को) जो प्रेमपूर्वक सदैव मेरी प्रार्थना में लगे हुए हैं। उनको (मैं) मुझसे जुड़ी रहने वाली बुद्धि देता हूँ। जिससे वह मुझे पा लेते है।”

तेषाम् एव अनुकम्पा-अर्थम् अहम् अज्ञान-जम् तमः ।
नाशयामि आत्म-भाव स्थ: ज्ञान दीपेन भास्वता ॥११॥


निःसंदेह, उन (पवित्र व्यक्तियों) पर अपना विशेष कृपा करने के लिए मैं उनके हृदय के अन्दर ज्ञान का दीप स्थापीत कर देता हूँ। जिसके प्रकाश में जो अंधकार अज्ञानता के कारण हृदय में जन्म लेते हैं वह नष्ट हो जाते हैं।

• बुद्धि योगम या Divine consciousness को मुस्लिम ईमान कहते हैं। जिसे ईश्वर बुद्धि योगम देगा वही सत्य मार्ग पर चलेगा। और यह बुद्धि योगम वह उन्हीं को देता है जो इसकी चाह करते हैं। और जीवन के अंत तक यह उन्हीं के पास रहता है जो ईश्वर से इसके लिए प्रार्थना करते हैं। वेद और कुरआन की कुछ ऐसी ही प्रार्थनाएं निम्नलिखित हैं।

• ऋग्वेद यह धरती पर सबसे प्राचीन ईश्वर वाणी है। ईश्वर ने इसमें मानवजाति को बताया कि कैसे उसकी प्रार्थना करे और कैसे उसकी कृपा मांगे। ऋग्वेद के मंडल नं. ३ सुक्त नं. ६२ कां मंत्र नं. १०० ऐसा ही एक मंत्र है। इसे गायत्री मंत्र भी कहते हैं। ऐसी आस्था है कि विश्वामित्र ने इसे रचा था। किन्तु यह मंत्र ऋग्वेद का मंत्र है और ऋग्वेद ईश्वर वाणी है। विश्वामित्र ने लोगों को इसके महत्त्व का परिचय दिया होगा।

गायत्री मंत्र :-


भूर्भुव: स्व:
तत्सवितुर्वरेन्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
(ऋग्वेद ३:६२:१०)

ॐ - प्रार्थना का आरंभ ईश्वर के नाम से करता हूँ।
भू - धरती
भूर्व - अन्य लोक
स्व - स्वर्ग
तत - वह (ईश्वर)
सवितुर-जो सत्य मार्ग दिखाता है
वरेण्यम - जिसके लिए सारी प्रशंसा है भर्गो-पापों को क्षमा करने वाला
धियो - मन और आत्मा से
धीमहि - ईश्वर की प्रार्थना करते हैं देवस्य ईश्वर
यो - जो
न: - हमें
प्रचोदयात - प्रकाशित करें (सत्यमार्ग दिखाए)


(ॐ) प्रार्थना का आरंभ ईश्वर के नाम से करता हूँ। (यो) जो (भू) धरती (भूर्व) अन्य लोक (स्व) स्वर्ग लोक ( का स्वामी है) (तत्) वह (ईश्वर) (सवितुर ) सत्य मार्ग दिखाता है (वरेण्यम्) उसके लिए सारी प्रशंसाएं है (भर्गो) पापों को क्षमा करने वाला है (धियो) मन और आत्मा से ( धीमहि) (हम) ईश्वर की प्रार्थना करते है (देवस्य) (हे) ईश्वर (नः) हमें (प्रचोदयात) प्रकाशित करें (सत्यमार्ग दिखाए)

प्रार्थना का आरंभ ईश्वर के नाम से करता हूँ। जो धरती, अन्य लोक, स्वर्ग लोक ( का स्वामी है)। वह (ईश्वर) सत्य मार्ग दिखाता है। उसके लिए सारी प्रशंसाएं हैं। पापों को क्षमा करने वाला है। मन और आत्मा से (हम) ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। (हे) ईश्वर हमें प्रकाशित करे (सत्यमार्ग दिखाए ) |

जो इस मंत्र को हर दिन अर्थ को समझते हुए ईश्वर की प्रार्थना के तौर पर पढ़ेगा, तो उसे ईश्वर अवश्य सत्य मार्ग दिखाएगा, जो स्वर्ग की ओर जाने वाला होगा।

पवित्र कुरआन (सूरह नं.१) :-

● पवित्र कुरआन की पहली सूरह भी इसी प्रकार ईश्वर की प्रार्थना है, जो हर नमाज में पढ़ी जाती है, वह सूरह निम्नलिखित हैं।

अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन - सब प्रशंसा ईश्वर के लिए है जो सारे संसार का प्रभु है। (१)
अर्रहमानिर्रहीम - अत्यंत कृपाशील और दयावान है।(२)
मालिकि यौमिद्दीन - प्रलय के दिन का मालिक है। (३)
इय्या क न बुदु व इय्या-क नस्तीइन - हे ईश्वर हम तेरी ही प्रार्थना करते हैं और तुझी से सहायता से मांगते हैं। (४)
इहदिनस्सिरातल-मुस्तकीम - हे प्रभु हमें सत्य का मार्ग दिखा। (५)
सिरातल्लजी-न अनअम्त अलैहिम - उन लोगों का मार्ग जो तेरे कृपा के योग्य हुए (६)
गैरिल्-मगजूबि अलैहिम् व लज्जॉल्लीन - न उनका मार्ग जिन पर तेरा प्रकोप हुआ और न पथभ्रष्ट का मार्ग। (७)
(सूरह हम्द- १ आयत १-७)