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N-4 अन्य लोक क्या है?

• भगवद् गीता का श्लोक नं. १५.८ इस
प्रकार है:-

शरीयम् यत् अवाप्नोति यत् च अपि उत्क्रामति ईश्वरः
गृहीत्वा एतानि संयाति वायुः गन्धान् इव आशयात् ।।१५.८।।


मनुष्य जो शरीर मृत्यु के समय छोड़ जाता है, नि:संदेह प्रलय के दिन उसे दोबारा प्राप्त करता है। वह शरीर जिससे आत्मा दूर हो जाती है, ईश्वर उसे लाता है कर्मों का हिसाब लेने के स्थान पर इसी तरह जिस तरह वायु स्थानांतरण करती है सुगंध का।

• अर्थात प्रलय के दिन ईश्वर सबको फिर जीवित करेगा और कर्मों का हिसाब लेगा और पुण्य का फल स्वर्ग और पाप का दण्ड नरक में जीवन व्यतित करना होगा। इस मृत्यु के बाद फिर से जीवित होकर स्वर्ग या नरक में जीवन •बिताने को hereafter या आखिरत या अन्य या अन्य लोक कहते हैं।

अन्य लोक से सम्बन्धित भगवद् गीता के श्लोक इस प्रकार हैं।

• अपरा इयम् इतः तु अन्याम् प्रकृतिम् विद्धि मे पराम् ।
जीव-भूताम् महाबाहो यथा इदम् धार्यते जगत् ।७.५।।


किन्तु हे अर्जुन इस हीन (पृथ्वी के) अतिरिक्त मेरी श्रेष्ठ रचना अन्य लोक (मृत्यु के बाद के जीवन) को जानने का प्रयास करो जिस पर इस संसार के सारे प्राणियों की (सफलता या असफलता) निर्भर करती है।

● एतत् योनीनि भूतानि सर्वाणि इति उपधारय ।
अहम् कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयः तथा ॥७.६॥


इस प्रकार सभी धरती पर जन्म लेने वाले प्राणियों की (सफलता और असफलता) निर्भर करती है इन दोनों पर, अर्थात पृथ्वी लोक और अन्य लोक पर। (तथा) और मैं (ही) इस सृष्टि का आरंभ करने वाला हूँ। और सम्पूर्ण जगत का (मैं ही) विनाश करने वाला हूँ।

• परः तस्मात् तु भाव: अन्य: अव्यक्त: अव्यक्तात् सनातनः ।
य: स: सर्वेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।।८.२०।।


किन्तु ईश्वर द्वारा हर दिन निर्माण करने के बाद भी एक और निर्माण है और वह है अन्य लोक। वह लोक जहाँ मनुष्य मृत्यु के बाद फिर जीवित किए जाएंगे और फिर वहाँ अन्त काल तक रहेंगें। जो न दिखाई देने वाली से अधिक न दिखाई देने वाली है। सदा स्थित रहने वाली है। और वह जो सारे प्राणियों के मृत्यु पर भी जिसका विनाश नहीं होगा।

• वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणति नरः अपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही ।। २.२२ ।।

जैसे मनुष्य पुराने कपड़े त्याग देता है और दूसरे नये कपड़े धारण करता है। वैसे ही यह रुह पुराना शरीर त्याग कर नया शरीर दूसरे लोक में धारण करती है।

• पार्थ न एव इह न अमुत्र विनाश: तस्य विद्यते ।
न हि कल्याण-कृत् कश्चित् दुर्गतिम् तात गच्छति ।।६.४०।।


हे अर्जुन, न इस संसार में और न अन्य लोक में (सत्य कर्म करने वाले ) व्यक्ति का विनाश होता है। मेरे प्यारे (अर्जुन) लोगों का कल्याण करने वाला व्यक्ति नि:संदेह कभी नरक के स्थान को नहीं पाता।

• यज्ञ-शिष्ट अमृत-भुजः यान्ति ब्रह्म सनातनम् ।
न अयम् लोकः अस्ति अयज्ञस्य कुतः अन्यः कुरुसत्तम ।।४.३१।।


अपनी प्रार्थना फल स्वरुप (ईश्वर की प्रार्थना करने वाले पाते हैं ईश्वर की सदा रहने वाला स्वर्ग, और अमर जीवन का आनंद । हे कुरु श्रेष्ठ (अर्जुन) जो ईश्वर की प्रसन्नता के लिए प्रार्थना नहीं करते हैं उन्हें इस संसार में शांति नहीं मिलती है। यदि इस संसार में शान्ति नहीं मिलती है तो) मृत्यु के बाद के जीवन में शान्ति कहाँ से मिलेगी।

• अज्ञः च अश्रद्दधानः च संशय आत्मा विनश्यति ।
न अयम् लोकः अस्ति न परः न सुखम् संशय आत्मनः ।।४.४०।।


वह जिसे ईश्वरी ग्रंथ का ज्ञान नहीं और (वह) जिसकी ईश्वर में श्रद्धा नहीं और वह लोग जो ईश्वर और उसके अवतरित ज्ञान में संदेह (शक) करते हैं। उनका विनाश होगा। ऐसे संदेह करने वाले लोगों का न इस लोक ( पृथ्वी) में भला होगा। न अन्य लोक में भला होगा और इन्हें न कहीं सुख मिलेगा।

प्रलय के दिन फिर जीवित होने से सम्बन्धित श्लोक इस प्रकार है।

• इदम् ज्ञानम् उपाश्रित्य मम साधर्म्यम् आगताः ।
सर्गे अपि न उपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ।।१४.२॥


इस ज्ञान के सहारे जीवन व्यतीत करने से व्यक्ति) मेरी इच्छा के अनुसार स्वभाव को प्राप्त कर लेता है। और फिर न ही इस संसार में और न ही प्रलय के दिन फिर से जीवित किए जाने के बाद भी उसे किसी प्रकार की कठिनाई होगी।

• सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिम् यान्ति मामिकाम् ।
कल्प-क्षये पुनः तानि कल्प-आदौ विसृजामि अहम् ।।९.७।।


हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन) मैंने ब्रह्मांड के आरम्भ में इन सारे (मनुष्यों) को निर्माण किया है। और ब्रह्माण्ड के अंत (प्रलय) के समय मेरी इच्छा से ईश्वरीय प्रकृति के द्वारा सारे मनुष्य दुबारा (उठाए) जाऐंगे। (जीवित किए जाएंगे)

• प्रकृतिम् स्वाम् अवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूत-ग्रामम् इमम् कृत्स्नम् अवशम् प्रकृते: वशात् ।।९.८।।


मेरी अपनी प्रकृति के सहारे प्राणियों के विभिन्न समुदाय का बार-बार निर्माण कर रहा हूँ। इसी प्रकार इन सबका प्रलय के समय दुबारा अवश्य निर्माण करूंगा। कारण कि यह मेरी निर्माण करने वाली प्रकृती के वश में है।

• शरीयम् यत् अवाप्नोति यत् च अपि उत्कामति ईश्वरः
गृहीत्वा एतानि संयाति वायुः गन्धान् इव आशयात्।।१५.८।।


मनुष्य जो शरीर मृत्यु के समय छोड़ जाता है, निःसंदेह प्रलय के दिन उसे दोबारा प्राप्त करता है। वह शरीर जिससे आत्मा दूर हो जाती है, ईश्वर उसे लाता है कर्मों का हिसाब लेने के स्थान पर इसी तरह जिस तरह वायु स्थानांतरण करती है सुगंध का।

• श्रोत्रम् चक्षुः स्पर्शनम् च रसनम् घ्राणम् एव च ।
अधिष्ठाय मनः च अयम् विषयान् उपसेवते ।।१५.९।।


कान, आँख, स्पर्श का एहसास, और जीभ,
नाक और मन (बुद्धि)। नि:संदेह यह सब फिर से जीवित हो जाते हैं। इस तरह मनुष्य फिर से मन को अच्छा लगने वाली वस्तुओं का आनंद ले सकता है।

• उत्क्रामन्तम् स्थितम् वा अपि भुजानम् वा गुण-अन्वितम् ।
विमूढाः न अनुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञान-चक्षुषः ।।१५.१०।।


मरने के बाद प्रलय के दिन दोबारा स्थित जीवित होना, और वस्तुओं से आनंद लेना या मरे हुए शरीर का सम्बन्ध गुणों से होना, यह सारी बातें मूर्ख और अज्ञानी कभी नहीं समझ सकते। बल्कि इन्हें केवल ज्ञान की आँखे रखने वाले लोग ही देख सकते हैं।

ईश्वर प्रलय के दिन कर्मों का हिसाब लेगा।

• न आदत्ते कस्यचित् पापम् न च एव सु-कृतम् विभुः
अज्ञानेन आवृत्तम् ज्ञानम् तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।।५.१५।।


अज्ञानता ने मनुष्य के ज्ञान को घेर लिया है। जिसके कारण मनुष्य मोहित हो गया है भ्रम में है और कल्पना करता है कि वह ईश्वर जो सर्वव्यापी है वह न किसी के अच्छे कर्म स्वीकार करेगा और न पापों का दंड देगा।

पवित्र कुरआन की अन्य लोक से सम्बंधित आयते निम्नलिखित है-

• इसी ज़मीन से हमने तुमको पैदा किया है। इसी में हम तुम्हें वापस ले जाएँगे और इसी से तुमको दुबारा निकालेंगे। (पवित्र कुरआन, सूरे ताहा २० आयत. ५५)

• तुम्हारा ईश्वर बस एक ही ईश्वर है। मगर जो लोग आखिरत (अन्य लोक) को नहीं मानते उनके दिलों में इन्कार बसकर रह गया है और वे घमण्ड में पड़ गए हैं। ( पवित्र कुरआन, सूरे अन नहल १६. आयत नं. २२)

• (ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि ) वास्तव में यह कुरआन वह मार्ग दिखाता है जो सबसे सीधा है और उन मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते है, शुभ सूचना देता है कि उनके लिए बड़ा बदला है। और जो लोग आखिरत (अन्य लोक) को न माने, उन्हें यह सूचना देता है कि उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब (यातना) तैयार रखा है। (पवित्र कुरआन, सूरे बनी इस्राईल १७. आयत ९-१०)

• और यह दुनिया की ज़िन्दगी कुछ नहीं है मगर एक खेल और दिल का बहलावा । वास्तविक ज़िन्दगी का घर तो आखिरत का घर है। काश! ये लोग जानते । ( पवित्र कुरआन, सूरे अनकाबूत २९, आयत६४)

• और यदि तुम ईश्वर और उसके पैगम्बर और (अन्य लोक) आखिरत में घर के इच्छुक हो तो जान लो कि तुममें से जो उत्तमकार हैं ईश्वर ने उनके लिए बड़ा बदला तैयार कर रखा है।
(पवित्र कुरआन, सूरे अल-अहजाब ३३, आयत२९)

इस प्रकार मृत्यु के बाद एक अनन्त जीवन है। उस जीवन में सफल होने के लिए हमें संघर्ष
करना चाहिए।