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N-12 भाग्य क्या है?

• यदि आप विज्ञान क्षेत्र (Science stream) के विद्यार्थी हैं तो आपने Periodic Table पढ़ा होगा। पिरीओडीक टेबल में पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी Element तत्त्व को एक विशिष्ट प्रकार से रखा है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए Wikipedia पर पिरीओडीक टेबल को समझ लें।

इस टेबल में २०१६ तक कुछ कुछ स्थान अपूर्ण (खाली) थे। और उन Element या तत्त्व का खोज नहीं हुआ थी। खोज के पहले इन तत्त्व को नाम दिया गया Ununseptium और Ununtrium और पेरीवडीक टेबल में जिस स्थान पर उनको लिखा जाना था। उस स्थान के अनुसार हम खोज के पहले ही उन तत्त्वों के बारे में सब कुछ जानते थे, जैसे उनकी Density, Boiling Temperature, Mechanical and Chemical property etc.
हम इन तत्त्वों को उनकी खोज के पहले इतनी अच्छी तरह क्यों जानते थे? क्योंकि पेरीवडीक टेबल में जिस स्थान पर उन्हें लिखा जाना था उस स्थान के तत्त्व में उन गुणों का होना अनिवार्य था।

पेरीवडीक टेबल में केवल ११८ स्थान है। किन्तु ईश्वर के पास एक और Periodic Table है। उसमें इस धरती पर जितने मनुष्य जन्म लेंगे उतने स्थान है और हर स्थान पर जो होगा उसका जन्म, मृत्यु, और क्या भोजन करेगा? क्या व्यवसाय करेगा? क्या शिक्षा प्राप्त करेगा? इत्यादि सभी पहले से सुनिश्चित है। इसी को भाग्य कहते हैं ।

• पंडीत ईश्वरचंद ने अपने संस्कृत हिन्दी शब्द कोश में ( पेज नं. ५७७ ) में प्रकृतिः का अर्थ लिखा है माया, और सृष्टि रचना में परमात्मा की इच्छा। इसे हम दूसरे शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि सृष्टि में जो कुछ होता है वह ईश्वर की इच्छा से हो रहा है और जो पहले से सुनिश्चित हैं।

इस कारण जो कुछ ईश्वर की इच्छा से पृथ्वी पर होता है उसका कारण हम 'प्रकृति' कहते हैं। और जो कुछ मनुष्य के जीवन में होता है वास्तव के में वह भी प्रकृति है मगर हम दूसरे शब्द 'भाग्य' से अधिक परिचित है। तो भाग्य और प्रकृति यह ईश्वर की सुनिश्चित इच्छा है।

• भगवद् गीता में भाग्य विषय में पांच श्लोक इस प्रकार हैं।

• प्रकृतिम् पुरुषम् च एव विद्धि अनादी उभी अपि । विकारान् च गुणान् च एव विद्धि प्रकृति सम्भवान्
।।१३.२०।।


नि:संदेह भाग्य और मनुष्य दोनों भी (eternal) अनादि ईश्वर से जानो। मनुष्य के शरीर में जो बदलाव होता है और मनुष्य में जो गुण हैं, निःसंदेह (ईश्वर की) प्राकृतिक शक्ति से उत्पन्न किए जाते हैं ऐसा जानो।

• कार्य कारण कर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिः उच्यते ।
पुरुषः सुख दुःखानाम् भोक्तृत्वे हेतुः उच्यते ।। १३.२१॥


ईश्वर ने कहा कर्म करने के कारण, कर्मों को करने वाला (यह सब) भाग्य के कारण होते हैं। ईश्वर यह भी कह रहा है कि मनुष्य सुख, दुख का जो अनुभव करता है उसका कारण भी भाग्य है।

• पुरुषः प्रकृतिस्थ: हि भुडक्ते प्रकृति-जान् गुणान् ।
कारणम् गुण-सड्ः अस्य सत् असत् योनि जन्मसु ।।१३.२२॥


भाग्य में विश्वास रखने वाला मनुष्य अनुभव करते हैं कि मनुष्य के गुण, और कर्म करने के कारण, भाग्य से ही उत्पन्न होते हैं। (और) मनुष्य वीर्य स्थिति से ही (सत्य) अच्छे और बुरे गुणों के साथ जन्म लेता है।

• उपद्रष्टा अनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महा-ईश्वर: ।
परम् आत्मा इति च अपि उक्त: देहे अस्मिन् पुरुषः परः ॥१३.२३॥


ईश्वर साक्षी है (अर्थात सृष्टि में आरम्भ से अन्त में तक जो हो चुका और होगा वह उसे देख रहा है।) ब्रह्माण्ड में जो कुछ होता है वह उसके आदेश से होता है। और (वह) प्राणियों का पालन पोषण करता है। सारी प्रार्थनाएं उसी ईश्वर के लिए की जाती हैं। वह ईश्वर सबसे महान है। और (ईश्वर) कह रहा है कि, “नि:संदेह वह इस शरीर वाले मनुष्य होने से परे है (महान है), और आत्मा से भी महान है।"


• य एवम् वेत्ति पुरुषम् प्रकृतिम् च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानः अपि नसः भूय: अभिजायते ।। १३.२४॥



इस तरह जो व्यक्ति, भाग्य को और मनुष्य को गुणों के साथ जान लेता है और हर तरफ जो कुछ हो रहा है (अर्थ जो कुछ हो रहा है वह भाग्य और ईश्वर के आदेश से हो रहा है ऐसा मान लेता है तो) नि:संदेह वह नरक में बार बार जन्म नहीं लेता उसे स्वर्ग प्राप्त होता है।

• पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, ईश्वर ने सबसे पहले कलम (Pen) को निर्माण किया। फिर ईश्वर ने कलम को लिखने का आदेश दिया। कलम ने पूछा क्या लिखूं। ईश्वर ने कहा 'भाग्य लिख।' फिर कलम ने ब्रह्माण्ड के आरम्भ से अन्त तक जो कुछ होगा सब लिख दिया।

(तिरमिजी, मुन्तखब अबवाब, वॉल्युम १, हदीस ८८)

• ईश्वर ने कुरआन में कहा,
हमने सांसारिक जीवन में इनके बीच इनकी जीविका बाँटी है, और हमने इनमें एक को दूसरे पर दर्जों में उच्चता प्रदान की ताकि इनमें एक दूसरे से काम लेता रहे।
( पवित्र कुरआन ४३:३२ )

अर्थात समाज में जो मालिक है और जो नौकर
है दोनों ईश्वर की आज्ञा के अनुसार हैं।

जब सब कुछ भाग्य से होता है तो हमारे पाप के जिम्मेदार हम क्यों?

भगवद् गीता के दो श्लोक इस प्रकार है;

• ईश्वर: सर्व-भूतानाम् हत- देशे अर्जुन तिष्ठति ।
भ्रामयन् सर्व-भूतानि यन्त्र आरुढानि मायया ।। १८.६१।।

हे अर्जुन! सारे मनुष्यों के हृदय में ईश्वर स्थित है (मौजूद है)। (और वह) सभी मनुष्यों का परीक्षा लेने के लिए (उनको समय के) यन्त्र पर सवार करके घूमता रहता है।

• दैवी हि एषा गुण-मयी मम माया दुरत्यया ।
माम् एव ये प्रपद्यन्ते मायाम् एताम् तरन्ति ते ॥७.१४।।


नि:संदेह मेरे द्वारा (बनाई गई ) इन दिव्य गुणों ( पर आधारित) मेरे परीक्षा को पार करना बहुत कठिन है। (किन्तु) जो लोग मेरी शरण में आ जाते हैं वह इस परीक्षा को नि:संदेह पार कर जाते हैं।

• इस परीक्षा में मनुष्य अपना लक्ष्य बनाने, इरादा करने, और प्रयास करने में स्वतंत्र है।

और अपने लक्ष्य या इरादे के अनुसार वह जो के कुछ कर्म करेगा वह पुण्य या पाप होगा। उस कर्म का परिणाम या नतीजा मनुष्य के कर्म पर नही बल्कि ईश्वर की इच्छा के अनुसार होगा।

• यही बात इस श्लोक में है।

• कर्मणि एव अधिकार मा पलेषु कदाचन ।
मा कर्म-पल हेतु: भूः मा तेस: अस्तु अकर्मणि ।।२.४७।।


निःसंदेह! अपने कर्तव्य के पालन करने का अधिकार तुम्हे हैं किन्तु कार्य के परिणाम (पर तुम्हारा) कोई नियंत्रण नहीं है। न तुम अपने कर्मों के परिणाम का अपने आपको कारण या करने वाला समझो और ना तुम ऐसे विचारधारा को अपनाओ जिसमें अपने कर्तव्य को पूरा नहीं किया।

• पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, “ इरादा करना और प्रयास करना यह मनुष्य के वश में है किन्तु परिणाम ईश्वर की इच्छा के अनुसार होंगे।” (मस्नद अहमद बिन हम्बल)
इसलिए हम जो कुछ कर्म करते हैं उस कर्म के करने के लक्ष्य और प्रयास के अनुसार वह कर्म
हमारे लिए पाप या पुण्य लिखा जाएगा।

एक उदाहरण से हम भाग्य को समझने का प्रयास करते है।

दो व्यक्ति एक घर की छत पर लड़ रहे थे। क्रोध में आकर एक ने दूसरे पर गोली चला दी। दुसरे को बचाने के उद्देश्य से तीसरे ने दूसरे को धक्का दे दिया कि गोली उसे ना लगे । और गोली उसे नहीं लगी परंतु दूसरा व्यक्ति धक्के के कारण छत से नीचे गिर गया।

अब दूसरा व्यक्ति छत से गिरकर जीवित बचेगा या मर जाएगा यह उसके भाग्य के अनुसार होगा। यदि वह मर गया तो पहले व्यक्ति को हत्या का पाप मिलेगा। क्योंकि उसका लक्ष्य और प्रयास हत्या का था।

तीसरे व्यक्ति के हाथ से हत्या हुई किन्तु उसे जीवन बचाने का पुण्य मिलेगा। क्योंकि उसका लक्ष्य और प्रयास जीवन बचाना था।

इस प्रकार जो होगा वह भाग्य के अनुसार होगा और मनुष्य को उनके लक्ष्य और प्रयास के अनुसार पाप या पुण्य मिलेगा क्योंकि लक्ष्य और प्रयास में वह स्वतंत्र है। केवल परिणाम उसके वश में नहीं है।