Home Chapters About



N-13 यज्ञ क्या है?

• स्वामी सुखराम दास जी साधक संजीवनी में भगवद् गीता के अध्याय नं. १६ के पहिले श्लोक में 'यज्ञ' का निम्नलिखीत अर्थ लिखते हैं।

• 'यज्ञ' शब्द का अर्थ आहुति देना होता है। अतः अपने वर्णाश्रम के अनुसार होम, बलिवैश्वदेव आदि करना यज्ञ है। इसके सिवाय गीताकी दृष्टि से अपने वर्ण, आश्रम, परिस्थिति आदि के अनुसार जिस किसी समय जो कर्तव्य प्राप्त हो जाय, उसको स्वार्थ और अभिमान का त्याग करके दूसरों के हित की भावना से या भगवत्प्रीत्यर्थ करना यज्ञ है। इसके अतिरिक्त जीविका सम्बन्धी व्यापार, खेती आदि तथा शरीर - निर्वाह सम्बन्धी खाना पीना, चलना फिरना, सोना-जागना, देना- लेना आदि सभी क्रियाएँ भगवत्प्रीत्यर्थ करना यज्ञ है। ऐसे ही माता-पिता, आचार्य, गुरुजन आदि की आज्ञा का पालन करना, उनकी सेवा करना, उनको मन, वाणी, तन और धन से सुख पहुँचाकर उनकी प्रसन्नता प्राप्त करना, परमात्मा आदि का पूजन करना, ये सभी यज्ञ है।