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N-17 शैतान कौन?

• श्री राम चन्द्र जी के तेत्रा युग में देवताओं के साथ दानव भी धरती पर रहते थे। रावण उन में से एक था। जिससे हम सब परिचित है। रावण एक महाज्ञानी दानव था।

• डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय ने कई पुस्तकें लिखी हैं। उनमें से एक है "वेदों और पुराणों के आधार पर धार्मिक एकता की ज्योति"। इस पुस्तक के प्रस्तावना में आपने लिखा है कि श्री राम, श्री कृष्ण यह मनुष्य नहीं थे। यह सब देवता थे। यह अलौकिक अस्तित्व वाले थे।

इसी प्रकार दानव भी अलौकिक (Super natural entity) थे। वह मनुष्य के समान सामान्य नहीं थे।
सत्य युग ३९ लाख पूर्व आरम्भ हुआ किन्तु द्वापर युग के अंत तक (१२००० BC तक) कोई मनुष्य धरती पर नहीं था।

सारे दानव दुष्ट स्वभाव के न थे। उनमें सज्जन भी थे और ऋषि भी थे।

डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय (वेदों व पुराणों के आधार पर धार्मिक एकता की ज्योति) इस पुस्तक में लिखते हैं कि जब ऋषियों को पता चला कि धरती पर मनुष्य राज करेंगे तो वह पहाड़ों पर चले गए।
वह श्लोक इस प्रकार है।

• आर्यदेशा क्षीणवन्तो म्लेच्छवंशा बलान्विता ।
भविष्यन्ति भृगुश्रेष्ठ तस्माच्च तुहिनाचलम् । गत्वा विष्णुं समाराध्य गमिष्यामो हरे: पदम् ।

इति श्रुत्वा द्विजाः सर्वे नैमिषारण्यवासिनः। अष्टाशीति सहस्राणि गतास्ते तुहिनाचलम् ।
(भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ अध्याय ४)

यह ऋषि कौन थे ? यदि यह देवता होते तो देवता तो स्वर्ग की ओर जाते हैं। पहाड़ों की ओर क्यो जाएंगे। यह दानव ऋषि थे जो पहाड़ों में चले गए।
इसी प्रकार डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय लिखते हैं कि देवताओं और दानव में युद्ध हुआ था। अन्त में में देवता विजयी रहे और उन्होंने दानवों को धरती से निकाल दिया।

• पवित्र कुरआन में दानवों को जिन्न कहा गया है और धार्मिक ग्रन्थों में यह भी लिखा है कि फरिश्तों ने जिन्नों को पराजित करके जंगल और पहाड़ों की ओर खदेड़ दिया।

अजाजील नाम का एक ऋषि दानव था। उसने
इतनी अधिक ईश्वर की प्रार्थना की थी कि ईश्वर ने उसे फरिश्तों के साथ स्वर्ग में रहने की अनुमति दे दी।

दानव को धरती से भगाने के बाद ईश्वर ने मानवजाति को धरती पर बसाने का निर्णय लिया।
जब ईश्वर पैगम्बर आदम का शरीर मिट्टी से निर्माण कर रहे थे तब यह अज़ाजील दानव ऋषि वहाँ उपस्थित था।

जब ईश्वर पहले मानव (स्वयमभव मनु) आदम का निर्माण किया तो फरिश्तों से कहा कि जब मैं अपनी रुह से आदम में रुह फुंकू और जब वह

जीवित हो जाए तो तुम सब उनका आदरपूर्वक प्रणाम (सजदा) करना।

• जब आदम जीवित हुए तो सबने आदरपूर्वक प्रणाम (सजदा) किया किन्तु अज़ाजील ने नहीं किया।

दानव आग से बनते हैं इस कारण उनमें अहंकार, क्रोध, इर्षा, द्वेष अधिक होता है।

ईश्वर ने जब अज़ाजील से पूछा कि तुने आदम से को सज़दा क्यों नहीं किया? तो उसने कहा कि, मैं आग से बना हूँ। आदम मिट्टी से बने हैं। मैं इनसे श्रेष्ठ हूँ तो मैं उनका आदर क्यों करूँ?

ईश्वर को अज़ाजील का अहंकार और घमंड अच्छा नहीं लगा और उसे स्वर्ग से निकल जाने कहा।
इस पर अज़ाजील और विद्रोह पर उतर आया और उसने ईश्वर को चुनौती दी कि जिस मानव के कारण तू मुझे स्वर्ग से निकाल रहा है, यदि तू मुझे प्रलय तक मृत्यु न दे तो मैं कुछ को छोड़कर सारी मानवजाती को सत्य मार्ग से हटा दूँ।

ईश्वर ने उसकी चुनौती को स्वीकार किया और उसे प्रलय तक जीवित रहने का वरदान दे दिया। और साथ में यह भी कहा कि जो तेरी बात मानेगा ।
उसको और तुझको नरक में भर दूंगा।

• अज़ाजील पर ईश्वर के प्रकोप के कारण उसका नाम इबलीस हो गया, जिसका अर्थ है "वह जिसके मुक्ति की कोई सम्भावना नहीं है।”


और वह मानवजाति को सत्य मार्ग से हटाता है इस कारण उसे शैतान कहते हैं। यह उसका नाम नही है। उसे दी गई उपाधि (Title) है।

तो यह ऋषि दानव अजाजील है जो आज मानवजाति का सबसे बड़ा शत्रु है । और उसका प्रयास है की सारी मानवजाति को सत्य मार्ग से हटा दे।

• पवित्र कुरआन की वह आयत जिसमें इबलीस को जिन्न कह कर सम्बोधित किया है वह निम्नलिखित है :

“याद करो, जब हमने फरिश्तों से कहा कि, आदम को सज्दा करो तो उन्होंने सज्दा किया मगर इब्लीस ने न किया। वह जिन्नों में से था इसलिए अपने रब के आदेश का उल्लंघन किया। (हे मानवजाति) अब क्या तुम मुझे छोड़कर उसको और उसकी संतति को अपना संरक्षक बनाते हो हालाँकि वे तुम्हारा शत्रु है ? बड़ा ही बुरा विकल्प है जिसे ज़ालिम लोग अपना रहे हैं।” (पवित्र कुरआन, सूरे अल-कहेफ १८, आयत नं. ५०)

• भगवद् गीता के इनके बारे में छह श्लोक इस प्रकार है।

दम्भ: दर्प: अभिमान: च क्रोध: पारुष्यम् एव च
अज्ञानम् च अभिजातस्य पार्थ सम्पदम् आसुरीम् ।। १६.४॥


(ईश्वर ने कहा की, )
हे अर्जुन नि:संदेह यह गुण शैतान के प्रभाव से उत्पन्न होते हैं। धोखा देना, छल करना, अहंकार का होना, घमंड का होना, क्रोध करना, और कठोरता रखना, और ज्ञान और विवेक का न होना।

नमाम् दुष्कृतिनः मूहा: प्रपद्यन्ते नर-अधमा: ।
मायया अपह्यत ज्ञाना: आसुरम् भावम् आश्रिताः ।। ७.१५।।


इस दिव्य ज्ञान पर आधारित परीक्षा से पार कराने वाले दिव्य ज्ञान को असुर (शैतानी / राक्षसी) स्वभाव अपनाने वालों से असुर / शैतान ने अपहरण कर लिया है (भुला दिया है।) कारण कि यह मूर्ख दुष्कर्म करने वाले, नरक में गिरने वाले, यह मनुष्य मेरी शरण नहीं लेते (मेरी प्रार्थना नही करते। )

• मोघ आशा: मोघ-कर्माण: मोघ-ज्ञाना: विचेतसः ।
राक्षसीम् आसुरीम् च एव प्रकृतिम् मोहिनीम् श्रिताः ।।९.१२।।


निःसंदेह ईश्वर को मनुष्य के समान शरीर वाला समझना राक्षसी सोच या दृष्टिकोण है। और इस भ्रम के कारण लोगों ने आसुरिक शक्तियों की शरण ली है। इस कारण उनके मृत्यु के बाद के जीवन में सफलता की कोई के आशा नहीं है। उनके सब सत्कर्म नष्ट हो गए। और उनका ज्ञान भी व्यर्थ हो गया।

• दौ भूत-सर्गो लोके अस्मिन् दैव: आसुरः एव च ।
दैव: विस्तरश: प्रोक्त; आसुरम् पार्थ मे शृणु ।। १६.६।।


नि:संदेह, इस पृथ्वी लोक में मनुष्य के अंदर दो प्रकार के गुण होते हैं। दिव्य गुण और आसुरी शैतानी गुण। दिव्य गुणों को हे अर्जुन तुम्हें विस्तार से बता दिया गया। अब आसुरी शैतानी गुणों के बारे में मुझसे सुनो।

• तान् अहम् द्विषत: कुरान् संसारेषु नर-अधनाम् ।
क्षिपामि अजस्त्रम् अशुभान् आसुरीषु एव योनिषु ।।१६.१९।।


मैं इन घिनौने, निर्दयी, और मनुष्यों में सबसे नीच लोगों को सदा के लिए गंदे नर्क में जहाँ असुरों के वंश रखे जाते है फेंक देता हूँ।

• आसुरीम् योनिम् आपन्ना: मूढाः जन्मनि जन्मनि ।
माम् अप्राप्य एव कौन्तेय ततः यान्ति अधमाम् गतिम् ।।१६.२०॥


यह मूर्ख लोग असुरों के वंश में हर मृत्यु के बाद जीवन पाते हैं और नर्क के सबसे निचले भाग तक चले जाते हैं। इस तरह नि:संदेह, हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! यह मुझे कभी प्राप्त नहीं कर पाते।

बुद्ध धर्म में इब्लीस को 'मारा' कहा गया है।