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N-1.8 ईश्वर के गुण क्या है?

• ईश्वर का जो वर्णन हमें भगवदगीता में प्राप्त होता है वह निम्नलिखित है,

भगवद्गीता में ईश्वर के ६ मुख्य गुणों का
वर्णन है।

१) अजन्मा

२) अदर्शी

३) अविनाशी

४) ईश्वर ही ब्रह्माण्ड का रचयिता है।

५) सबका पालनपोषण ईश्वर ही करता है।

६) सृष्टि का अंत ईश्वर के आदेश से होगा।

इन ६ गुणों से संबंधित श्लोक निम्नलिखित हैं,


अजन्मा (Unborn):-

यः माम् अजम् अनादिम् च वेत्ति लोक महा-ईश्वरम् ।
असम्मूढः सः मर्त्येषु सर्व-पापैः प्रमुच्यते ।।१०-३।।


जो मुझे अजन्मा अनादि (आरंभ के बिना) और ब्रह्माण्ड का महान ईश्वर मानता है व मूर्ख नहीं है । मृत्यु के बाद (वह) सब पापों से भी मुक्त हो जाएगा।


अदर्शी (Formless):-

अव्यक्तम् व्यक्तिम् आपत्रम् मन्यन्ते माम् अबुद्धयः ।
परम् भावम् अजानन्तः सम अव्ययम् अनुत्तमम् ।।७:२४।।


मेरे महान और सबसे श्रेष्ठ अविनाशी भाव को न जानते हुए, बुद्धिहीन मनुष्य, में (जो) अदृश्य (निर्गुण और निराकार हूँ) (मैंने) मनुष्य की तरह शरीर धारण कर लिया है, ऐसा मानते हैं।

अविनाशी (Immortal) :-

• अविनाशि तु तत् विद्धि येन सर्वम् इदम ततम् ।
विनाशम् अव्ययस्य अस्य न कश्चित् कर्तुम् अर्हति। २-१७॥


(हे अर्जुन) नि:संदेह तुम्हें जानना चाहिए कि वह (ईश्वर) अविनाशी है। जिसके कारण इस सारे विश्व का अस्तित्व हैं। उस ईश्वर का विनाश कोई नहीं कर सकता है।

ईश्वर ही ब्रह्माण्ड का रचयिता है।

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिम् यान्ति मामिकाम् ।
कल्प-क्षये पुन: तानि कल्प-आदौ विसृजामि अहम् ।।९.७।।


हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन) मैंने ब्रह्मांड के आरम्भ में इन सारे (मनुष्यों) को निर्माण किया है और ब्रह्माण्ड के अंत (प्रलय) के समय मेरी इच्छा से ईश्वरीय प्रकृति के द्वारा सारे मनुष्य दुबारा (उठाए) जाऐंगे। (जीवित किए जाएंगे)

स्वयम् एव आत्मना आत्मानम् वेत्थ त्वम् पुरुष-उत्तम ।
भूत-भावन भूत-ईश देव-देव जगत्-पते ।।१०.१५।।


(अर्जुन ने कहा) नि:संदेह (हे ईश्वर) आप ही अपने आपको स्वयम ही (सबसे अच्छी तरह) जानते हैं। (हे ईश्वर) आप महान व्यक्तित्व वाले हैं। सारे प्राणियों के ईश्वर है, देवताओं के ईश्वर हैं, ब्रह्माण्ड के शासक हैं।

सबका पालनपोषण ईश्वर ही करता है।

मया ततम् इदम् सर्वम् जगत् अव्यक्त-मूर्तिना
मत्-स्थानि सर्व-भूतानि न च अहम् तेषु अवस्थितः ।।९.४।।


मेरी न दिखाई देने वाले अस्तित्व के कारण इस संपूर्ण जगत का फैलाव है। सर्व प्राणी मुझसे स्थित हैं (मुझपर निर्भर है), और मैं उनसे स्थित (उनपर निर्भर) नहीं हूँ।

अन्नात भवन्ति भूतानि पर्जन्यात् अन्न सम्भवः ।
यज्ञात् भवति पर्जन्यः यज्ञः कर्म समुद्भवः ।।३.१४।।


सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर अन्न से उत्पन्न होते हैं (जीवित रहते हैं)। अन्न की उत्पति वर्षा से होती है, वर्षा होती है ईश्वर की आज्ञा और कृपा से। (और ईश्वर की आज्ञा और कृपा मनुष्य के) कर्म (के अनुसार) होते हैं।

सृष्टि का अंत ईश्वर के आदेश से होगा।

पुरुष: स: पर: पार्थ भव त्या लभ्य: तु अनन्यया ।
यस्य अन्त:-स्थानि भूतानि येन सर्वम् इदम् ततम् ॥८.२२॥


हे अर्जुन! वह (ईश्वर) मनुष्य (होने से) परे है। निःसंदेह किसी और (प्राणी या देवता) की भक्ति के बिना उसकी भक्ति करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। (यह वह ईश्वर है) जिसके द्वारा सारे संसार का यह अस्तित्व है और जिसके द्वारा सारे प्राणियों का अंत (अर्थात प्रलय का) स्थित होना है।

एतत् योनीनि भूतानि सर्वाणि इति उपधारय ।
अहम् कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलय: तथा ॥६॥


इस प्रकार सभी धरती पर जन्म लेने वाले प्राणियों की (सफलता और असफलता) निर्भर करती है इन (दोनों पर, अर्थात पृथ्वी लोक और अन्य लोक पर)। (तथा) और मैं (ही) इस सृष्टि का आरंभ करने वाला हूँ। (और) सम्पूर्ण जगत का (मैं ही) विनाश करने वाला हूँ।