Home Chapters About

अध्याय 11 - विश्वरुप दर्शन योग


INTRODUCTION :


आस्तिक का विश्वास है कि ईश्वर, स्वर्ग, नरक, (फरिश्ते) इन सबका अस्तित्व है किन्तु जब नास्तिक कहेगा कि यह सब काल्पनिक बातें हैं। इनके होने का कोई प्रमाण नहीं है तो आस्तिक चुप हो जाता है, क्योंकि ईश्वर, स्वर्ग, नरक और फरिश्तों के अस्तित्व का प्रमाण देना एक साधारण व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है। किन्तु इस अध्याय द्वारा कोई भी श्रद्धालु नास्तिक को चुप कर सकता है।

इस अध्याय में, जो कुछ लिखा है। उसके सच होने का प्रमाण इस प्रकार है।

दिसंबर ३०, १९२४ को Edwin Hubble ने यह खोज निकाला कि Spiral nebula Andromeda एक आकाशगंगा है और १९९० में Hubble space Telescope के द्वारा पहली बार आकाशगंगा को साफ तौर से देखा गया। अर्थात सन १९०० के पहले किसी को घूमती आकाशगंगा की कल्पना तक न थी। किन्तु अर्जुन ने द्वापर युग में अपनी आँखों से मुकुट की तरह चमकते हुए धुमकेतु को घूमती आकाशगंगा और सितारों को देखा। (भगवद् गीता ११.७)

‘तो जिसने द्वापरयुग में ही घूमती आकाशगंगा को देखा, जो आज सच साबित हुआ, तो अर्जुन ने ईश्वर के तेज और अनेक प्रकार के देवताओं (फरिश्तों) का जो वर्णन किया गया है, "क्या वह केवल कल्पना हो सकता है?” कभी नहीं, वह भी सत्य है। ईश्वर का अस्तित्व है, और उसका तेज हजारों सूर्य से अधिक है। देवताओं (फरिश्तों) का अस्तित्व है और इन्हीं को सच मानना अन्य लोक में श्रद्धा रखना है। हम मृत्यु के बाद इसी लोक में जाएंगे और इसी लोक में स्वर्ग और नरक है जहाँ हमें सदैव रहना है।

SUMMARY OF SHLOKS :


● श्लोक नं. ११.१ ११.४ में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ईश्वर के दिव्य रचना को देखने के लिए विनती किया है।

● श्लोक नं. ११.५ ११.७ में ईश्वर ने अर्जुन की विनती को स्वीकार करके कुछ दिव्य रचनाएं दिखाई।

● श्लोक नं. ११.८ - ११.९ में ईश्वर ने कहा कि और रचनाएं तुम साधारण आँखों देख सकते हो, इस कारण ईश्वर ने अर्जुन को दिव्य दृष्टी प्रदान की थी।

● श्लोक नं. ११.१०-११.११ में अर्जुन ने अनेक प्रकार के देवता (फरिश्तों) को देखा।

● श्लोक नं. ११.१२ में अर्जुन द्वारा ईश्वर के तेज को देखने का वर्णन है।

● श्लोक नं. ११.१३ से ११.२२ तक अर्जुन द्वारा ईश्वर की प्रशंसा किए जाने का वर्णन है।

● श्लोक नं. ११.२३ में अर्जुन द्वारा
यमराज को देखे जाने का वर्णन है।

● श्लोक नं. ११.२४ से ११.३१ तक यमराज के भयानक व्यक्तित्व का वर्णन है।

● श्लोक नं. ११.३२ में यमराज ने अपना परिचय दिया और अर्जुन को युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया।

●श्लोक नं. ११.३५ से ११.४० तक अर्जुन द्वारा ईश्वर की प्रशंसा किए जाने का वर्णन है।

SHLOKS :

भगवद गीता - श्लोक 11.1 View

अर्जुन ने ( श्री कृष्ण से कहा ), मुझ पर कृपा करते हुए महान गुप्त और दिव्य ज्ञान जो आपके द्वारा (मुझे) कही गई। उनसे मेरे वह सब भ्रम दूर हो गए।

भगवद गीता - श्लोक 11.2 View

हे कमल के पत्तों के समान आँखो वाले (कृष्ण) । नि:संदेह! मैंने तुमसे प्राणियों जीवन और मृत्यु के बारे में विस्तार से सुना, और अविनाशी और महान ईश्वर के बारे में भी.

भगवद गीता - श्लोक 11.3 View

हे महापुरुष श्री कृष्ण! जिस तरह स्वयम् आपने ईश्वर (की) महानता का प्रमाण देने इन ईश्वर की दिव्य सांसारिक निर्माण के बारे में कहा, इसी तरह (मैं) आपसे ईश्वर (की) आध्यात्मिक रचना को देखने का इच्छुक हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.4 View

दर्शय आत्मानाम् हे योगेश्वर, यदि आप सोचते हैं कि मेरे लिए ईश्वर की आध्यात्मिक रचना को देखना सम्भव है, तो स्वयम् आप मुझे उस अविनाशी (ईश्वर की महान आध्यात्मिक रचनाओं को) दिखाऐं।

भगवद गीता - श्लोक 11.5 View

ईश्वर ने ( श्री कृष्णजी के माध्यम से) कहा, हे अर्जुन, अब मेरे अलग अलग रंग और अलग- अलग प्रकार की दिव्य आकार के सैंकडों (और) हजारों महान रचनाओं को देखो।

भगवद गीता - श्लोक 11.6 View

हे भारत (अर्जुन)! देखो, सूर्य को नियंत्रण करने वाले देवता आदित्य को। जल को नियंत्रण करने वाले देवता वसून। घोडों के देवता अश्विन को । वायु को नियंत्रण करने वाले देवता मारुत को । रुद्र (तथा), देखो बहुत सारे आश्चर्यजनक चीजें, (जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया।

भगवद गीता - श्लोक 11.7 View

हे अर्जुन! अब इस एक स्थान से सारे जगत को, जीवित प्राणी, (और) अजीवित के साथ देखो। और मेरे तेज (के द्वारा ) जो कुछ दूसरी (वस्तूऐं देखने की) इच्छा है (उन सबको भी) देखो।

भगवद गीता - श्लोक 11.8 View

किन्तु, नि:संदेह मुझको इन (तुम्हारी) अपनी (साधारण) आँखों से देखना संभव नहीं है। मुझसे जुड़ी दिव्य रचनाओं को देखने के लिए (मैं) तुम्हें दिव्य आँखे दे रहा हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.9 View

संजय ने कहा, हे राजन (धृतराष्ट्र)! इस तरह कहते हुए योग-ईश्वर महान श्री "कृष्ण के स्थान से उस ईश्वर ने पार्थ (अर्जुन को) ईश्वर द्वारा निर्माण की गई महान रचनाओं को दिखाया।

भगवद गीता - श्लोक 11.10 View

अर्जुन ने देवताओं को देखा अनेक चेहरे वाले, अनेक आँखो वाले, अदभुत दृश्य था। अनेक (देवता) दिव्य वस्त्र पहने हुए थे। अनेक देवता दिव्य शस्त्र लिए हुए थे।

भगवद गीता - श्लोक 11.11 View

(अनेक देवता) अंबर की माला धारण किए हुए थे। (बहुत से देवता) दिव्य सुगंध लगाए हुए थे। हर तरफ अनन्त देवता थे। हर वस्तु अद्भुत थी।

भगवद गीता - श्लोक 11.12 View

उस समय अर्जुन ने ईश्वर के तेज को देखा। वह ऐसा था कि “यदि आकाश में हज़ारों सूर्य एक साथ उदय हो तो उनका तेज उस महान ईश्वर के तेज के बराबर हो पाए।”

भगवद गीता - श्लोक 11.13 View

उस समय अर्जुन ने ऐसा देखा कि वहाँ (एक स्थान पर) सारा जग विभाजित हो रहा है (निर्माण हो रहा है) अनेक प्रकार में देवताओं के ईश्वर की दैहिक शक्ति और संघटक तत्त्व से।

भगवद गीता - श्लोक 11.14 View

आश्चर्य के साथ, आनंद (खुशी) से भरे हुए, रोमांचित अर्जुन ने उस ईश्वर को प्रणाम किया, और हाथ जोड़कर कहने लगे।

भगवद गीता - श्लोक 11.15 View

अर्जुन ने कहा, हे ईश्वर, आपके तेज में (मैं) सारे देवताओं को और प्राणियों को और विशेष रुप से ब्रह्माजी (और) शंकरजी (को) एक साथ कमल के फूल पर बैठे देख रहा हूँ। और सभी ऋषियों को, और दिव्य सांपों को भी देख रहा हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.16 View

हे ईश्वर आपकी अनन्त दिव्य रचनाओं को देख रहा हूँ। (और) सभी देवताओं को देख रहा हूँ जिनके बहुत सारे बाँह हैं, पेट है, चेहरे है, आँखे है । हे जगत के ईश्वर, जिसने इस ब्रह्मांड को रुप प्रदान किया, न (मैं आपके) आरंभ (को) न मध्य (को) न अंत को देख रहा हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.17 View

हे ईश्वर मैं मुकुट के समान चमकते हुए धूमकेतु, घूमती हुई आकाशगंगा, और सितारों को हर तरफ देख रहा हूँ। हे ईश्वर मैं आपके अनंत तेज को हर दिशा में देख रहा हूँ। जैस भड़कती आग, जिसे सूर्य के तेज की तरह देखना कठिन है।

भगवद गीता - श्लोक 11.18 View

हे ईश्वर आप अविनाशी हैं, सबसे महान हैं, (और) जानने के योग्य हैं। (हे ईश्वर) आप ही इस ब्रह्मांड के सबसे महान आश्रय हैं। (हे ईश्वर) आप हमेशा रहने वाले हैं। शाश्वत धर्म (सनातन धर्म के) रक्षक हैं। आपका व्यक्तित्व सनातन (न बदलने वाला है), ऐसी मेरी श्रद्धा है।

भगवद गीता - श्लोक 11.19 View

के (मध्य) मध्य (अनन्त) (और) अन्त (के हैं) (अनन्त वीर्यम्) (हे ईश्वर आप सबसे) शक्तिशाली हैं (अनन्त बाहुम्) (हे ईश्वर) सब हे ईश्वर आप बिना आरंभ के मध्य (और) अन्त के हैं। हे ईश्वर आप सबसे शक्तिशाली हैं। हे है)। (शशि सूर्य नेत्रम्)

भगवद गीता - श्लोक 11.20 View

हे महान ईश्वर, नि:संदेह आकाश से धरती तक, और इन दोनों के बीच में और हर दिशा में एक अकेले आप ही का अस्तित्व छाया हुआ है। आपकी इन तीव्र और अद्भुत स्थिती को देखकर तीनों लोक व्याकुल हैं।

भगवद गीता - श्लोक 11.21 View

नि:संदेह! वह सभी देवताओं के समूह आपकी शरण चाह रहे हैं कुछ डरे हुए हैं। और हाथ जोड़कर विनती कर रहे हैं आपसे सुरक्षा की। इसी प्रकार महाऋषियों और सिद्धों के समूह (आपकी) प्रार्थना कर रहे हैं। (और) वेदों के श्लोकों द्वारा आपकी प्रशंसा कर रहें हैं।

भगवद गीता - श्लोक 11.22 View

हे ईश्वर नि:संदेह रुद्र, आदित्य, वसु और पितृगण और गंधर्व, यक्ष, असुर, और सिद्धी के समुदाय भी आपको चकित होकर देख रहे है।

भगवद गीता - श्लोक 11.23 View

(इस श्लोक में यमराज का वर्णन है) अर्जुन ने कहा हे महाबाहो ! आप (के) महान रुप को जिसमें बहुत सारे मुख और आँखें, बहुत सारे हाथ, जंघे, चरण, बहुत सारे पेट, बहुत सारे दांतों की भयानकता देखकर सारा जगत और मैं भी भयभीत हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.24 View

हे विष्णु, आपका आकाश को छूता हुआ उज्जवल कई रंगो वाला खिला हुआ चेहरा और प्रकाशित बड़ी आँखें देखकर नि:संदेह (मेरा) मन अंदर से भयभीत है और मैं धैर्य और शांति प्राप्त नहीं कर पा रहा हूँ

भगवद गीता - श्लोक 11.25 View

आपके भयंकर दांत और प्रलय काल की अग्नि के समान मुख को देखकर न (मैं) दिशा जान पा रहा हूँ और न शांति पा रहा हूँ। हे देवताओं के देवता, हे जगत् निवास मुझ पर कृपा करो ।

भगवद गीता - श्लोक 11.26 View

निःसंदेह आपकी शक्ति मापी नहीं जा सकती (असीम है)। धृतराष्ट्र के सारे पुत्र, सहायक राजाओं के समूह के साथ, और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, और हमारे साथ के यह विशेष योद्धा भी। भयंकर दांतो वाले आपके भयानक मुंह में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। कुछ दांतो के बीच लटके हुए दिखाई दे रहे हैं और कुछ के सर कुचल गए

भगवद गीता - श्लोक 11.27 View

निःसंदेह आपकी शक्ति मापी नहीं जा सकती (असीम है)। धृतराष्ट्र के सारे पुत्र, सहायक राजाओं के समूह के साथ, और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, और हमारे साथ के यह विशेष योद्धा भी। भयंकर दांतो वाले आपके भयानक मुंह में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। कुछ दांतो के बीच लटके हुए दिखाई दे रहे हैं और कुछ के सर कुचल गए

भगवद गीता - श्लोक 11.28 View

जिस प्रकार बहुत सारी नदियाँ पूरी गति से समुद्र की तरफ दौड़ती हैं; (तेज़ी से बहती हैं)। नि:संदेह इसी तरह आपके मापे न जाने वाले और भड़कते हुए मुंह में संसार के शूरवीर मनुष्य प्रवेश कर रहे हैं। जिस प्रकार जलती हुई अग्नि में पतिंगे विनाश के लिए पूरी गति से प्रवेश करते हैं। नि:संदेह उसी तरह सारे लोग भी विनाश के लिए आपके मुख में पूरी गति से प्रवेश कर रहे हैं।

भगवद गीता - श्लोक 11.29 View

जिस प्रकार बहुत सारी नदियाँ पूरी गति से समुद्र की तरफ दौड़ती हैं; (तेज़ी से बहती हैं)। नि:संदेह इसी तरह आपके मापे न जाने वाले और भड़कते हुए मुंह में संसार के शूरवीर मनुष्य प्रवेश कर रहे हैं। जिस प्रकार जलती हुई अग्नि में पतिंगे विनाश के लिए पूरी गति से प्रवेश करते हैं। नि:संदेह उसी तरह सारे लोग भी विनाश के लिए आपके मुख में पूरी गति से प्रवेश कर रहे हैं।

भगवद गीता - श्लोक 11.30 View

हे विष्णो, आपके जलते हुए मुख की आग संसार के सभी लोगों को हर तरफ से चाट कर खा रही है। यह संसार आपकी भड़कती भयंकर आग की किरणों से (गर्मी से) भरा हुआ है।

भगवद गीता - श्लोक 11.31 View

हे उग्र, तीव्र रुप वाले, मुझे बताऐं आप कौन हैं? हे देवताओं से महान आपको मैं नमस्कार करता हूँ मुझ पर कृपा कीजिए। आपको जानने का मैं इच्छुक हूँ। हे आदिरुप, नि:संदेह! मैं नहीं समझ पा रहा हूँ आपके काम को।

भगवद गीता - श्लोक 11.32 View

आदरणीय यमराज बोले, मैं यमराज हूँ। संसार के लोगों को मृत्यु देना मेरा काम है। इस संसार को सुरक्षित रखने के लिए मैं संसार के अहंकारी लोगों का विनाश करता हूँ। तुम्हारे बिना भी भविष्य में यह सारे सैनिक जो प्रतिपक्ष में खड़े हैं नहीं रहेंगे।

भगवद गीता - श्लोक 11.33 View

इस कारण हे दोनों हाथों से बाण चलाने वाले अर्जुन तुम उठो, शत्रु पर विजय पाओ और उससे लाभ प्राप्त करो, (और प्राप्त होने वाले) राज्य से यश: और समृद्धि भोगो। तुम केवल कारण बनो, नि:संदेह! वह सब मेरे ( द्वारा ही) मार दिए जाएंगे।

भगवद गीता - श्लोक 11.34 View

द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह और जयद्रथ और कर्ण और दुसरे वीर योद्धा का भी मैं ही वध

भगवद गीता - श्लोक 11.35 View

संजय ने कहा, श्री कृष्ण के द्वारा कहे गए यमराज के इन शब्दों को सुनकर कांपते हुए हाथ जोड़कर अर्जुन ने नमस्कार करके डरते हुए फिर प्रणाम किया। और धीमी वाणी से श्री कृष्ण द्वारा ईश्वर से कहा।

भगवद गीता - श्लोक 11.36 View

श्री कृष्ण के स्थान से (अपना तेज दिखाने वाले) हे ईश्वर, आपकी महिमा से सारा जगत खुश हो रहा है, और आनंदित हो रहा है और राक्षस अलग अलग दिशाओं में भाग रहे हैं, और सारे सिद्ध पुरुषों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।

भगवद गीता - श्लोक 11.37 View

(हे ईश्वर आप), कल्पना से भी परे हो । ब्रह्मा से भी पहले के सृष्टि का निर्माण करने वाले हो । आप अनंत हो। देवताओं के ईश्वर हो । जगत को सहारा देने वाले हो। आप अविनाशी (अमर/शाश्वत) हो। आप उस अविनाशी अन्य लोक और इस नाशवान पृथ्वी लोक और जो कुछ इसके परे है (उन सबके ईश्वर हो) । (तो) क्यों न आपको नमस्कार करे महापुरुष भी।

भगवद गीता - श्लोक 11.38 View

(हे ईश्वर) आप आरंभ से हैं। आपका अस्तित्व सबसे प्राचीन है। (हे ईश्वर) आप ही इस विश्व का सबसे बड़ा सहारा है । (हे ईश्वर आप) सबकुछ जानने वाले और जानने के योग्य हैं। स्वर्ग लोक और अनंत सृष्टि जो ब्रह्मांड में फैली हुई है। वह सब) आप (से ही है।)

भगवद गीता - श्लोक 11.39 View

(हे ईश्वर आप) वायु, यमराज, अग्नि, पानी, चन्द्रमा और सारे मनुष्यों के स्वामी हैं। (हे ईश्वर) आप (का अस्तित्व) ब्रह्मा ( से भी) पहले था। (मैं आपको) नमस्कार करता हूँ। आपको हजार बार नमस्कार करता हूँ। और बार-बार (मैं) आपको नमस्कार करता हूँ ।

भगवद गीता - श्लोक 11.40 View

(हे ईश्वर मैं) आपको सामने से और पीछे से नमस्कार करता हूँ। आपको हर जगह से नमस्कार करता हूँ। (कारण कि आप) सब कुछ हैं। हे अनन्त ( शक्ति वाले ईश्वर), नि:संदेह, आप (के) महान शक्ति (से ही) (इस संसार को) सब कुछ प्राप्त हो रहा है और उस (अन्य लोक में भी आपकी शक्ति से) सब कुछ प्राप्त होगा।

भगवद गीता - श्लोक 11.41 View

हे ईश्वर आपकी बड़ाई और गुणों को न जानते हुए, जल्दी में, बिना सोचे समझे मुर्खतावश या तो प्रेम से इस तरह (योग- ईश्वर श्री कृष्ण को ) अपना मित्र समझकर हे हे यादव! हे कृष्ण, मित्र! यह इस तरह जो भी मेरे द्वारा कहा गया।और अकेले में या मित्रों के बीच, हंसी के लिए,आराम करते समय, लेटे रहने पर बैठे हुए, खाते हुए, अच्युत अर्थात कृष्ण कहने जैसा जो भी अपमान किया गया हो, उन सभी के लिए हे असीम ईश्वर! मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.42 View

हे ईश्वर आपकी बड़ाई और गुणों को न जानते हुए, जल्दी में, बिना सोचे समझे मुर्खतावश या तो प्रेम से इस तरह (योग- ईश्वर श्री कृष्ण को ) अपना मित्र समझकर हे हे यादव! हे कृष्ण, मित्र! यह इस तरह जो भी मेरे द्वारा कहा गया।और अकेले में या मित्रों के बीच, हंसी के लिए,आराम करते समय, लेटे रहने पर बैठे हुए, खाते हुए, अच्युत अर्थात कृष्ण कहने जैसा जो भी अपमान किया गया हो, उन सभी के लिए हे असीम ईश्वर! मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 11.43 View

हे ईश्वर! आप इस ब्रह्माण्ड के जीवित और अजीवित प्राणी और वस्तुओं की रचना (निर्माण) करने वाले हो । आप ही प्रार्थना के योग्य हो, और आप ही ज्ञान प्रदान करते हैं। आप की महिमा महान है। आपके समान कोई नहीं। आपकी कोई मूर्ति नही, और न आपको समझा जा सकता है। तीनों लोकों में दूसरा कोई आपसे बढ़कर कैसे हो सकता है?

भगवद गीता - श्लोक 11.44 View

इसलिए (हे ईश्वर!) मैं आपकी कृपादृष्टि पा सकूँ इसके लिए अपने शरीर को झुका कर (सजदे करके) आपको प्रणाम करता हूँ। हे स्तुति करने योग्य ईश्वर, पिता जैसे पुत्र को । मित्र जैसे मित्र को। प्रेम करने वाला जैसे अपने प्रेमी को क्षमा करता है। हे ईश्वर आपको भी ऐसे ही मुझे क्षमा करना चाहिए।

भगवद गीता - श्लोक 11.45 View

पहले जो कभी नहीं देखा गया उन्हें देखकर (मैं) प्रसन्न हूँ और (यम - राज के) भय से मेरा मन व्याकुल भी है। हे देवताओं के ईश्वर, सारे जग का सहारा, मुझ पर कृपा करो और उस दिव्य रचनाओं को मुझे फिर से दिखाइए ।

भगवद गीता - श्लोक 11.46 View

(हे ईश्वर) मैं आप की मुकुट के समान चमकदार धूमकेतु, घूमती आकाशगंगा और आपकी महान रचनाएँ, जैसे कि चार बाहों वाले देवता हजार बाहों वाले देवताओं को (भी देखना चाहता हूँ। हे ब्रह्माण्ड को अस्तित्व और रूप देने वाले (ईश्वर मुझ पर कृपा करें ) ।

भगवद गीता - श्लोक 11.47 View

ईश्वर ने कहा, हे अर्जुन, तुम्हें प्रसन्न करने के लिए मेरे द्वारा यह मुझसे जुड़ी हुई दिव्य रचनाएँ (तुम्हें ) दिखाई गयी। मेरा यह तेज अनंत है और विश्व में फैला हुआ है (और) मूल या आदिम (अति प्राचीन) है। मेरे इस (तेज को) तुमसे पहले किसी ने नही देखा।

भगवद गीता - श्लोक 11.48 View

हे कुरुश्रेष्ठ (अर्जुन), मनुष्य लोक में मेरे इस प्रकार के दिव्य रचनाओं को देखना तुम्हारे सिवा किसी और के लिए सम्भव (नहीं) है। न वेद के अभ्यास से। न यज्ञ और दान से। न किसी क्रिया से। और न घोर तपस्या से।

भगवद गीता - श्लोक 11.49 View

(हे अर्जुन) न तुम भयभीत हो जाओ और न उलझन में पड़ो, देखकर मेरी इन भयानक रचनाओं (निर्माण) को ( यमराज को)। नि:संदेह भय से मुक्त होने और मन की शांति के लिए फिर से देखो मेरे इस महान रचना को ।

भगवद गीता - श्लोक 11.50 View

इस तरह कहते हुए अपने प्राकृतिक शक्ति से (ईश्वर ने) फिर से अपनी (महान रचना) को श्री कृष्ण के स्थान पर दिखाया। और भयभीत अर्जुन को दिलासा देने (उनके) मित्र (और) महान आत्मा ( श्री कृष्ण) का शरीर दोबारा प्रकट हो गया।

भगवद गीता - श्लोक 11.51 View

(हे ईश्वर) आपके इस मनुष्य रचना, मेरे प्रिय श्री कृष्ण (को) देखकर अब मैं शांत (हूँ) और मेरा मन भी अपनी मूल अवस्था में आ गया है।

भगवद गीता - श्लोक 11.52 View

ईश्वर ने कहा मेरे इन रचनाओं को या मेरे तेज को जिसे (तुमने) देखा है, देखना बहुत कठिन है। देवता भी सदैव (मेरे ) इन रचनाओं को या तेज को देखने की इच्छा करते हैं। न वेदों के अभ्यास से न तपस्या से न दान देने से और न (घोर) प्रार्थना करने से मुझे इस तरह देखना सम्भव है। जिस तरह तुमने देखा।

भगवद गीता - श्लोक 11.53 View

ईश्वर ने कहा मेरे इन रचनाओं को या मेरे तेज को जिसे (तुमने) देखा है, देखना बहुत कठिन है। देवता भी सदैव (मेरे ) इन रचनाओं को या तेज को देखने की इच्छा करते हैं। न वेदों के अभ्यास से न तपस्या से न दान देने से और न (घोर) प्रार्थना करने से मुझे इस तरह देखना सम्भव है। जिस तरह तुमने देखा।

भगवद गीता - श्लोक 11.54 View

हे अर्जुन, किन्तु (जो मनुष्य) अन्य शक्तियों की प्रार्थना नहीं करते (उनके लिए यह ) सम्भव है। कि जिस तरह से (तुमने मेरे) ज्ञान और तत्त्व को (सत्य को) (अपनी आंखों) देखकर श्रद्धा अपनाया। मैं (इसी प्रकार की श्रद्धा उनके हृदय में) प्रवेश करा दूँ (उनकी हृदय में ईश्वर की दृढ श्रद्धा उत्पन्न कर दूँ)

भगवद गीता - श्लोक 11.55 View

हे अर्जुन, जो (व्यक्ति केवल) मेरे लिए कर्म करता है मुझे सबसे महान मानता है। केवल मेरी प्रार्थना करता है। संगम (शिर्क) को छोड़ देता है। सारे प्राणियों से दुश्मनी नहीं रखता वह व्यक्ति मुझे पा लेता है (मेरा स्वर्ग प्राप्त कर लेता है)