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अध्याय 8 - अक्षर ब्रह्म योग


INTRODUCTION :


श्लोक नं. १८.१८ के अनुसार तीन कारणों से मनुष्य सत्कर्म के लिए प्रेरित होता है। दिव्य ज्ञान का होना, ईश्वर में श्रद्धा और अन्य लोक पर विश्वास ।

इस भगवद् गीता के हर श्लोक में ज्ञान है। अध्याय नं. ७ से १३ में ईश्वर में श्रद्धा को प्रबल करने का ज्ञान है। और पूरे भगवद् गीता में उचित अवसर पर ईश्वर ने अन्य लोक का भी वर्णन किया है।

अन्य लोक में सफल होने के लिए मनुष्य को जो ज्ञान चाहिए वह सबसे अधिक ज्ञान इसी अध्याय नं. ८ में है।

अन्य लोक की यात्रा का आरम्भ होता है मृत्यु से। अर्थात मृत्यु उचित स्थिती में हो। उचित स्थिती में मृत्यु होने के लिए मनुष्य को उचित तरीके से जीवन व्यतीत करना होगा और अपने मन में ईश्वर के बारे में उचित श्रद्धा रखना होगा।

दूसरे शब्दों में इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि यदि मनुष्य ईश्वर के बारे में उचित श्रद्धा रखता है। अपने योग्यता के अनुसार ईश्वर की प्रार्थना करता है, तो उसकी उचित स्थिती में मृत्यु होगी। वह उज्ज्वल मार्ग से स्वर्ग की ओर जाएगा। और सत्कर्मों के कारण यदि उसे ईश्वर से स्वर्ग में प्रवेश की अनुमति मिल गई तो फिर वह सदैव के लिए स्वर्ग में रहेगा।

इस अध्याय नं. ८ को पढ़कर और इसके कथन में पूर्ण विश्वास करने से हमारा जीवन उचित मार्ग पर होगा। मृत्यु उचित स्थिती में होगी और मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने का उज्ज्वल मार्ग भी मिलेगा।

● Hereafter या अन्य लोक की श्रद्धा इस प्रकार है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति परलोक में प्रलय तक रहेगा। प्रलय के दिन ईश्वर आत्मा को फिर शरीर में प्रवेश करायेगा। उसके बाद कर्मों का लेखा-जोखा होगा। फिर कर्मों के अनुसार व्यक्ति उज्वल या अंधेरे मार्ग से स्वर्ग या नर्क में चला जाएगा। ईश्वर में श्रद्धा वाले नर्क में अपनी सज़ा पूरी करके स्वर्ग में आ जाएगें और जो ईश्वर को नहीं मानते वह सदैव नर्क में रहेंगे।

● वह लोक जहाँ स्वर्ग और नर्क है उसी को अन्य लोक कहते हैं। वहाँ मनुष्य को अनन्त
काल तक रहना है।

● अन्य लोक का वर्णन निम्नलिखित श्लोकों में है।

● ४.३१, ४.४०, ६.४०, ७.५, ७.६, ८.२०

● प्रलय का वर्णन ३.२४, ७.६, ८.२२, ९.७, श्लोकों में है।

● प्रलय के दिन जीवित किए जाने का वर्णन ९.७, १५.८, १५.९, १५.१०, १५.११ श्लोकों में है। कर्मों का लेखा-जोखा देने का वर्णन श्लोक नं. ५.१५ में है।

SUMMARY OF SHLOKS :


इस अध्ययन का सार इस प्रकार है।

● श्लोक नं. ८.१ से ८.४ तक ईश्वर का इस प्रकार से वर्णन है कि ईश्वर के बारे में जो गलतफहमी (भ्रान्ति) है वह दूर हों।

● श्लोक नं. ८.५ से ८.९ तक ईश्वर को याद करने के महत्त्व का वर्णन है। जो व्यक्ति ईश्वर को याद करते हुए मृत्यु पाएगा। वह स्वर्ग पाएगा और ऐसा तभी होगा जब मनुष्य जीवन में भी ईश्वर को याद करता होगा।

● श्लोक नं. ८.१० से ८.१५ तक स्वर्ग कैसे प्राप्त किया जाए इसका वर्णन है।

● श्लोक नं. ८.१७ में है कि ईश्वर का एक दिन मनुष्य के १००० वर्ष के बराबर है, तो मनुष्य को प्रयास करना चाहिए कि उसका स्वर्ग
जाने में एक दिन की देरी न हो।

● श्लोक नं. ८.१८ और ८.१९ में लिखा है कि हर रात मनुष्य की अस्थायी (Temporary) मृत्यु हो जाती है। सुबह वह जीवित हो जाता है। इस अस्थायी जीवन और मृत्यु के समान, स्थायी मृत्यु के बाद भी स्थायी जीवन है।

● श्लोक नं. ८.२२ में अन्य लोक में सफलता के महत्वपूर्ण सुत्र का वर्णन है। और वह संगम से बचना है। अर्थात एक ईश्वर के साथ किसी और की प्रार्थना न करना।

● श्लोक नं. ८.२८ में कहा गया है कि मनुष्य जो कुछ भी पुण्य करता है उसका फल
उसे स्वर्ग में मिलेगा।

SHLOKS :

भगवद गीता - श्लोक 8.1 View

अर्जुन ने कहा, वह ईश्वर कौन है ? आत्मा क्या है? पुरुष उत्तम (ईश्वर के) काम क्या है? और सभी प्राणियों का ईश्वर किसे कहते हैं? देवताओं का ईश्वर किसे कहते हैं ?

भगवद गीता - श्लोक 8.2 View

वह ईश्वर जिसके लिए सारी प्रार्थनाएं की जाती हैं (उसे मैं) कैसे (जानू)? हे कृष्ण यहाँ इस शरीर में कौन है ? और मृत्यु के समय मन को वश में करके कैसे (उस ईश्वर को) जाना (जा सकता) है? (या स्मरण किया जा सकता है।)

भगवद गीता - श्लोक 8.3 View

ईश्वर ने कहा, महान अविनाशी (ॐ) को ब्रह्म (ईश्वर) कहते हैं। मनुष्य का अपना जो स्वभाव (व्यक्तीत्व) है उसे आत्मा कहते हैं। प्राणियों के स्वभाव की रचना करना और (उन्हें उनके प्राकृतिक जीवन के) कर्म (उनको) प्रदान करना (इसे ईश्वर का) कर्म कहा जाता है।

भगवद गीता - श्लोक 8.4 View

हे देहधारियों में श्रेष्ठ (अर्जुन)! (मैं) सारे प्राणियों का ईश्वर हूँ और मनुष्य नाश होने वाली प्रकृति वाला (नाशवान) है। मैं (ही) देवताओं का ईश्वर हूँ। सारी प्रार्थनाएं केवल मेरे लिए हैं। नि:संदेह इस शरीर पर (मेरा ही राज है) ।

भगवद गीता - श्लोक 8.5 View

मृत्यु के समय शरीर को त्यागते हुए जो (मेरा स्मरण) करता है, नि:संदेह वह मेरी आज्ञाकारी स्वभाव (सात्विक गुणों वाला स्वभाव) प्राप्त कर चुका इस तरह (मानने में कोई संदेह नहीं है।

भगवद गीता - श्लोक 8.6 View

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! जीवन के अन्तिम क्षणों में शरीर को त्यागते समय (मृत्यु के समय) (मृतक) जिस-जिस व्यक्तीत्व (देवता या प्राकृतिक शक्ति को भी) स्मरण करता है, निःसंदेह वह उसी को पाता है। क्योंकि) सदा वह व्यस्त रहा उस (देवता या शक्ति की) प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए। (श्लोक नं. ७.२३ में है की ऐसे लोगों का विनाश होगा।)

भगवद गीता - श्लोक 8.7 View

इस कारण हर समय मुझे ही स्मरण (याद) करते रहो। मन और बुद्धि को मुझे अर्पण करने के लिए (अपने आपसे) युद्ध करो। नि:संदेह (इस तरह तुम) मुझे पा लोगे।

भगवद गीता - श्लोक 8.8 View

वेदों के पढ़ने में और ईश्वर की प्रार्थना में लगे रहो। अपने मन को किसी दुसरी ओर मत भटकाओ। हे अर्जुन, (इस प्रकार तुम ) ( ऐसी बुद्धि) पाओगे जो सदैव व्यस्त रहता है महान दिव्य ईश्वर (की याद में ) ।

भगवद गीता - श्लोक 8.9 View

(ऐसा व्यक्ति जिसका मन सदैव ईश्वर के स्मरण में व्यस्त रहता है) वह (ईश्वर को इस प्रकार ) याद करता है (कि ईश्वर) ब्रह्मा (सृष्टि का रचयिता है)। सबसे प्राचीन है। ब्रह्माण्ड का नियंत्रण करने वाला । अणु और उससे भी छोटे कण को जानता है। सबका पोषण करने वाला है। (वह ऐसा है कि उस) के रुप को समझ नहीं सकता। वह सूर्य की तरह प्रकाश स्वरुप (सबको जीवन देने वाला), और वह बिना दोष के हैं।

भगवद गीता - श्लोक 8.10 View

(सज्जन व्यक्ति जो अपनी) प्रार्थना की शक्ति से अपनी सांस को (अपने मन को ) दो भौऔ (Eyebrow) के मध्य में पूरी तरह से स्थित करता है। (अर्थात बलपूर्वक अपने मन को ईश्वर के ध्यान में स्थित करता है)। और ऐसे ही जीवन भर ईश्वर की प्रार्थना में व्यस्त रहता है। जीवन के अंतिम क्षणों में (वह) अपने मन को किसी ओर भटकने नहीं देता। निःसंदेह वह (पवित्र व्यक्ति) उस महान ईश्वर की दिव्य स्वर्ग को पा लेता है।

भगवद गीता - श्लोक 8.11 View

(वह स्वर्ग) जिसमें प्रवेश करने के लिए वेदों के विद्वान अविनाशी ईश्वर के (नाम का) जाप करते हैं। बड़े मुनि क्रोध को छोड़ देते हैं (और) ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन बिताते हैं। उस स्थान (स्वर्ग के बारे में ) संक्षिप्त में कहूँगा।

भगवद गीता - श्लोक 8.12 View

(ईश्वर के स्वर्ग को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कर्म आवश्यक है) शरीर के सब द्वारो पर (अंगो पर) नियंत्रण रखो। इच्छाओं को हृदय में सीमित (कैद) रखो, और ईश्वर से जोड़ने वाली प्रार्थना को स्थापित करो (कायम करो)। मन को (दो भौऔं Eyebrow के मध्य में) मस्तक में स्थापित करके ईश्वर में ध्यान लगाओ।

भगवद गीता - श्लोक 8.13 View

इस प्रकार जो (मुनि) शरीर को त्यागते समय (मृत्यु के समय) मुझ (ईश्वर को) याद करता है। (और) कहता है ॐ, अविनाशी ईश्वर एक है। वह (मुनि) प्राप्त करता है, सबसे महान जीवन का लक्ष्य (अर्थात स्वर्ग)। (श्लोक नं. १७.२३ में है कि ॐ तत सत यह तीन ईश्वर के नाम है।)

भगवद गीता - श्लोक 8.14 View

हे पार्थ! जो मुनि किसी अन्य (देवता) के बारे में सोचे बिना नियमित तौर पर सदैव मेरे स्मरण ( में व्यस्त रहता है)। उसके लिए मुझे पाना सरल है। (यह वह) भक्त ( है जो सदैव मेरी प्रार्थना में) व्यस्त रहता है।

भगवद गीता - श्लोक 8.15 View

(इस तरह) मुझे प्राप्त करके पवित्र व्यक्ति स्थायी कष्ट से भरी नर्क के स्थान में बार-बार नया जीवन नहीं पाता है। (बल्कि) पुर्णत: मेरी प्रार्थना में लगकर (स्वर्ग को जो) सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य है उसे प्राप्त करता है।

भगवद गीता - श्लोक 8.16 View

हे अर्जुन! ईश्वर (के) स्थान (स्वर्ग के) चारों ओर जो लोक हैं (८४ लाख जो नर्क हैं) वहाँ चक्कर चलता रहता है (शरीर के नष्ट होने का और नया शरीर मिलने का)। किन्तु हे अर्जुन, मुझको (ईश्वर को) प्राप्त करने के बाद (मेरे स्वर्ग को प्राप्त करने के बाद) फिर नया जीवन नहीं है। (अर्थात जिसे स्वर्ग मिल गया, तो वह सदैव जीवित रहेगा) ।

भगवद गीता - श्लोक 8.17 View

मनुष्य के एक हजार वर्ष के बराबर है (ईश्वर का) एक दिन। (ईश्वर के एक) रात की अवधि भी (मनुष्य के) एक हजार वर्ष के बराबर है। जो ईश्वर को जानते हैं, वह मनुष्य (ईश्वर के) रात और दिन को अच्छी तरह जानते हैं।

भगवद गीता - श्लोक 8.18 View

दिन के आने पर (आत्मा) जो दिखाई नहीं देती है (वह प्राणियों में) दिखाई देती है। (अर्थात जीवन) • सारे प्राणियों में दिखाई देता है। नि:संदेह (इसी तरह) रात के आने पर (आत्मा) जो की दिखाई नहीं देती (उसकी) मृत्यु हो जाती है।

भगवद गीता - श्लोक 8.19 View

रात के आने पर (सारे प्राणी) अपने आप मृत्यु पाते हैं। दिन के आने पर (उनमें जीवन) दिखाई देता है। हे पार्थ (अर्जुन) सारे प्राणियों का निःसंदेह वह सब ( मेरे द्वारा) उनका बार-बार निर्माण करना या जीवन देना है।

भगवद गीता - श्लोक 8.20 View

किन्तु (ईश्वर द्वारा हर दिन निर्माण करने के) बाद (भी) (एक) निर्माण (है) (और वह है) अन्य लोक (वह लोक जहाँ मनुष्य मृत्यु के बाद फिर जीवित किए जाएंगे और फिर वहाँ अन्त काल तक रहेंगें) जो न दिखाई देने वाली की अपेक्षा न दिखाई देने वाली है। सदा स्थित रहने वाली है और वह जो सारे प्राणियों के मृत्यु पर भी (जिसका) विनाश नहीं होगा।

भगवद गीता - श्लोक 8.21 View

इस (अन्य लोक) को ईश्वर न दिखाई देने वाली और अविनाशी कह रहा है। इसी तरह (ईश्वर) इसे सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य, स्थान भी कह रहा है। जिसे प्राप्त कर लेने के बाद (मनुष्य संसार में ) दोबारा नहीं आते। (ईश्वर यह भी कह रहा है कि) वह (अन्य लोक का) सबसे श्रेष्ठ धाम ही मेरे रहने का स्थान है।

भगवद गीता - श्लोक 8.22 View

हे अर्जुन! वह (ईश्वर) मनुष्य (होने से) परे है। नि:संदेह किसी और (प्राणी या देवता) की भक्ति के बिना उसकी भक्ति करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। (यह वह ईश्वर है) जिसके द्वारा सारे संसार का यह स्तित्व है और जिसके द्वारा सारे प्राणियों का अंत (अर्थात प्रलय का) स्थित होना है।

भगवद गीता - श्लोक 8.23 View

निःसंदेह, हे भारत में श्रेष्ठ (अर्जुन)! जिस समय ईश्वर की प्रार्थना करने वाला मृत्यु के बाद स्वर्ग में और नर्क (में) भी जाएंगे, उस समय (के बारे में तुम्हें) बताता हूँ।

भगवद गीता - श्लोक 8.24 View

वह मनुष्य (जो) ईश्वर को जानते हैं (और उसकी प्रार्थना करते हैं) मृत्यु के बाद ईश्वर (के स्वर्ग में) प्रकाशित पथ से जाएँगे। वह (मार्ग) दिव्य तेज से प्रकाशित है। (जैसे) दिन ( के समय प्रकाश होता है) जब छह महिने सूर्य उत्तर की ओर होता है।

भगवद गीता - श्लोक 8.25 View

नर्क प्राप्त करने वाले भक्त अंधेरे मार्ग के द्वारा (नरक) जाएंगे। वहाँ (ऐसा लगेगा जैसे) छह महीने सूर्य दक्षिण में चला गया है। (जिसके कारण) अंधेरी रात है। धुआँ है और चंद्र के महीनों की धुंधली रौशनी है।

भगवद गीता - श्लोक 8.26 View

मेरे द्वारा वेदों में भी ( मृत्यु के बाद) (इस) लोक (से) (जाने के लिए दो) रास्ते (मार्ग बताए गए हैं)। इन (दोनों मार्ग में) नि:संदेह (एक) प्रकाशित मार्ग है। (और दुसरा) अंधेरे (का मार्ग है)। एक मार्ग स्वर्ग की ओर जाता है (और) दुसरा (मार्ग ) नर्क की ओर जाता है (जहाँ जीवन मृत्यु का कर्म चलता रहता है)

भगवद गीता - श्लोक 8.27 View

हे अर्जुन इन दोनों मार्गों को जानने वाला भक्त थोडा सा भी भ्रम में नहीं रहता। इसलिए हे अर्जुन हर समय (मेरी) भक्ति में लगे रहो।

भगवद गीता - श्लोक 8.28 View

ईश्वर की प्रार्थना करने वाले भक्त को नि:संदेह वेदों के अभ्यास, प्रार्थना, तप और दान इत्यादी पुण्य के फल की जानकारी दी गई है। जो कभी नष्ट नहीं होगी। इन ( पुण्य को) (भक्त) अच्छी तरह जानता है (और पुण्य कर्म करता है)। और (वह) इन सब ( पुण्य के कर्मों के फल को) (ईश्वर के आश्वासन के अनुसार) मूल रुप में (स्वर्ग में अवश्य) प्राप्त करेगा।